शिलाजीत के यह लाभ नहीं जानते होंगे आप

 शिलाजीत क्या है:


 टेस्टोस्टेरोन (Low testosterone), भूलने की बीमारी (अल्जाइमर), क्रोनिक थकान सिंड्रोम, आयरन की कमी से होने वाला रक्ताल्पता, पुरुष प्रजनन क्षमता में कमी (पुरुष बांझपन /Male infertility) अथवा हृदय के लिए लाभदायक है ।

शिलाजीत एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला खनिज पदार्थ है जो भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालय और हिंदुकुश पर्वतमाला में पाया जाता है। यह एक दुर्लभ राल है जो पौधों और पौधों की सामग्री के हजारों वर्षों के अपघटन द्वारा बनाई गई है। यह फंसा हुआ पौधा पदार्थ फिर चट्टानों से भूरे से काले चिपचिपे गोंद जैसे पदार्थ के रूप में निकलता है। आयुर्वेद भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली लंबे समय से अपने स्वास्थ्य-निर्माण गुणों के लिए शिलाजीत का उपयोग कर रही है। शिलाजीत का उल्लेख चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में मिलता है जिसमें इसे "सोने की तरह धातु के पत्थर" और एक जिलेटिन पदार्थ के रूप में कहा जाता है। आयुर्वेद में शिलाजीत को समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में शिलाजीत के लाभों का चर्चा करते हुए एक "रसायन" (टॉनिक) माना जाता है। वास्तव में शिलाजीत नाम का अनुवाद "पहाड़ों को जीतने वाला और कमजोरी का नाश करने वाला" है। सदैव की भांति आधुनिक विज्ञान को अभी भी इस प्राकृतिक आश्चर्य का पता लगाने की आवश्यकता है।

 शिलाजीत कम 

शिलाजीत खाने के फायदे- 

खून की कमी में फायदेमंद ...

ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में फायदेमंद ...

डायबिटीज में फायदेमंद ...

कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करने में उपयोगी ...

थकान में फायदेमंद ...

टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन के स्तर में सुधार ...

अर्थराइटिस में फायदेमंद


सावधानियाँ:    

  👉 धातु भस्म, पारे से बनी दवाई, रत्न और अन्य उपरत्नों की भस्म को बहुत अधिक समय तक प्रयोग नही करना चाहिए। इनका प्रयोग एक माह तक करना पर्याप्त होता है, अतः शिलाजीत का भी प्रयोग एक साथ एक माह तक ही करना चाहिये। इसके बाद कुछ काल का अंतर देकर पुनः प्रयोग किया जा सकता है।   

   

👉 थेलिसिमिया के रोगी को सावधानी रखनी चाहिए ,क्योंकि इसमे आइरन (लौह) की मात्र पर्याप्त होती है। 

 

👉 जिनका URIC एसिड बढ़ा हो, सावधानी रखनी चाहिए।    

   

👉  कच्चा (RAW) शिलाजीत मानवीय प्रयोग के लिए अनुचित माना जाता है।   

👉बिना वैध्यकीय सलाह के इसका प्रयोग न करें ।

जानिए दुर्लभ पोई के साग के बारे में

 

आमतौर पर जब साग  की बात आती है तो हमारे ज़ेहन में पालक का नाम आता है। ज्यादातर लोगों को पता है कि पालक में आयरन की भरपूर मात्रा पाई जाती है जो स्वास्थ्य के लिए श्रेस्कर है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पोई साग में पालक की अपेक्षा कई गुना ज्यादा आयरनहोता है। इस साग का उपयोग बेहद कम है, क्योंकि लोग जानते ही नहीं इसके बारे में। आइए इस पोस्ट में इस बहुमूल्य साग की जानकारी जन-जन तक पहुंचाते हैं।


पोई एक सदाबहार बहुवर्षीय लता है। इसकी पत्तियाँ मोटी, मांसल तथा हरी होतीं हैं जिनका शाक-सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है। यह प्राकृतिक रूप से उगती है तथा वृक्षों और झाड़ियोंं का सहारा लेकर ऊपर चढ़ जाती है। इसके फल मकोय केे फलों जैसे दिखते हैैं जो पकने पर गाढ़े जामुनी रंग के हो जातेे है। इन पके फलों सेे गुलाबी आभा लिये वाल रंग का रस निकलता है।


पोई की लता और पत्तियाँ

पोई के पत्तों का पालक के पत्तों जैसे पकौड़ा बनाने, साग बनाने में उपयोग होता है। इसे दाल में डालकर भी खाया जाता है

पोई की दो किस्में हमारे आसपास मिलती हैं एक हरी और दूसरी लाल। लाल किस्म की टहनियां लाल होती हैं और पत्तियों का निचला हिस्सा भी हल्का जामुनी, लाल होता है। ऐसा इसमें पाए जाने वाले एन्टीऑक्सीडेन्ट पदार्थ एंथोसायनीन के कारण होता है। इसका एक नाम देसी पालक (इंडियन स्पीनेच) भी है। जो पालक हम अधिकतर बाजार से खरीदकर खाते हैं वह तो पर्सियन साग यानी ईरानी पालक है। यह देश के सभी प्रांतों में घर आंगन के बगीचे में बोई जाती है या फिर आसपास अपने आप भी उग जाती है। इसका फैलाव चिडिय़ा, बुलबुलों की मदद से होता है जो इसके पके जामुनी फल खाते हैं और बीजों को यहां- वहां बिखेरते हैं। मैंने सोचा चलो आज खनिज तत्वों, विशेषकर लौह तत्व को लेकर जरा देसी- विदेशी पालकों की तुलना करें। इसके परिणाम से मुझे तो आश्चर्य हुआ ही और आपको भी होगा। क्योंकि इस मामले में यह देसी पालक जिसके पत्ते दिल के आकार के हैं, हाथ के आकार के पत्तों वाले पालक से कहीं बेहतर है।

पालक में प्रति 100 ग्राम लौह तत्व 1.7 से 2.7 मिलीग्राम होता है, वहीं पोई में 10 मिलीग्राम होता है। फॉस्फोरस भी 100-100 ग्राम पालक और पोई में क्रमश: 21 में 35 मिलीग्राम होता है।

प्याज ,लहसुन न खाने के वैज्ञानिक और अध्यात्मिक कारण

 


अन्न का मन पर प्रभाव

कहते है जैसा अन्न वैसा मन अर्थात हम जो कुछ भी खाते है वैसा ही हमारा मन बन जाता है।अन्न चरित्र निर्माण करता है।इसलिए हम क्या खा रहे है इस बात को सदा ध्यान रखना चाहिये।


  भोजन भी तीन प्रकार का  होता है।

1. सात्विक अन्न

2. रजोगुणी अन्न मैदा से बनी आइटम्स

3. तमोगुणी आहार


इनमें से मुख्य दो आहार है :

1. सात्विक व 

2.तामसिक 

  योग पथ पर चलने वाले को सात्विक आहार ही लेना चाहिए। सात्विक आहार मानसिक पवित्रता को बढ़ाता है। हमारे इस दिव्य ज्ञान का ध्येय है-

"पवित्र बनो, योगी बनो "

पवित्रता ही सुख-शान्ति की जननी है......

"PURITY IS THE MOTHER OF ALL VALUES"

पवित्रता की धारणा मन्सा, वाचा, कर्मणा द्वारा होती है।मानसिक पवित्रता ही शारीरिक पवित्रता का आधार है।मानसिक पवित्रता अर्थात आत्मा के स्वधर्म की स्मृति शांति, सुख, ज्ञान, आनन्द, प्रेम के विचारों में रमण करना। सहज, सरल, मृदुभाव, आत्मिक भाव में रहना पवित्रता है।


 तामसिक भोजन मानसिक अपवित्रता है।अन्न की शुद्वता हो जिसमें तामसिक भोजन लहसुन, प्याज, तीखा मिर्च मसाला, नॉन वेज(मीट) आदि ना हो। आधिक भोजन भी वर्जित है।


कोई भी व्यसन स्मोकिंग शराब आदि नशे हमें हमारे मूल स्वभाव में ठहरने नहीं देते हैं। शारीरिक कमजोरी पैदा करते हैं। मन में भारीपन, डर, शंका, ईर्ष्या, घृणा, बदले की भावना पैदा करते हैं। काम , क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, कुद्दष्टि, कुवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। संकल्पों में वेग उत्पन्न कराते हैं।

   कहा जाता है कि जो भी प्याज और लहसुन खाता है उनका शरीर राक्षसों के शरीर की भांति मज़बूत हो जाता है लेकिन साथ ही उनकी बुद्धि और सोच-विचार राक्षसों की तरह दूषित भी हो जाते हैं। इन दोनों सब्जियों को मांस के समान माना जाता है। जो लहसुन और प्याज खाता है उसका मन के साथ-साथ पूरा शरीर तामसिक स्वभाव का हो जाता है।

  श्रीमद् भगवद्गीता में 17 वें अध्याय में भी कहा गया है व्यक्ति जैसा भोजन (लहुसन, प्याज..... तामसिक) खाता है, वैसी अपनी प्रकृति (शरीर) का निर्माण करता है।


 अनियन, मॉस, शराब या कोई भी प्रकार का नशा जिसे लेने से ये शरीर भी अस्वीकार करता है।आपने देखा होगा, कोई भी ऐसा भोजन जो इस देह के लिए नही है उसको ये देह में डालते ही देह उसके कणों को बाहर फेंकता है और मुख से दुर्गन्ध आती है।जैसे- अनियन, अण्डा, शराब, बीड़ी, सिगरेट आदि।

प्याज को तामसिक माना जाता है।इसलिए देवी- देवताओ को भी इसका भोग नही लगाया जाता।

जितने व्रत रखते है उसमे भी इसका परहेज बताया जाता है।

इसे तामसिक माना गया है।क्योंकि इससे तीव्र गंध आती है जो एकदम आसुरी लक्षण है। अभी हम देवता बन रहे है। देवियों की जड़ मूर्तियों के आगे भी कभी ऐसे तामसिक चढ़ावा नहीं रखते है। इसे खाने से मन पर कंट्रोल नहीं हो पाता और मन स्थिर न हो तो ध्यान नहीं लग सकता है।

जैसा होगा अन्न, वैसा होगा मन  अगर हम लहुसन और प्याज खाते रहे तो पुरुषार्थ में जो रूकावट आएगी वो हमें पता नही पड़ेगा इसलिए शुद्ध भोजन पर भी पूरा-पूरा ध्यान देना पड़ेगा। लहसुन और प्याज दोनों ही तामसिक भोजन की श्रेणी में आते हैं।

  जरा गौर करें जो प्याज काटने पर आँखों में आंसू ला देता है, जो लहुसन खाने पर या जीभ पर रखने पर ही मुख में दुर्गन्ध पैदा कर देता है, तो उसको हमारा पेट कैसे झेलता होगा?

  इनको खाने सेे गैस भी ज्यादा बनती है और सिर में दर्द भी पैदा होता है और मस्तिष्क में भी कमजोर हो जाता है।

  मन बड़ा भटकता है योग नहीं लगने देता और कर्मेन्द्रियाँ भी धोखा देती है क्योंकि जैसा की हम सब जानते है कि शास्त्रों में भी यह तामसिक पदार्थ की श्रेणी में ही आते है, इसलिए ही तो मंदिरों में देवताओं को भी इसका भोग नहीं लगता, यह भक्तिमार्ग में भी निषेध माना गया है। 

  तामसिक पदार्थ में अवगुण रूपी जहर होता है जो हमें धीरे-धीरे ज्ञान और योग से दूर ले जाता है। ब्राह्मण प्याज और लहसुन खाने से परहेज करते हैं ये देर से पचते है और योग साधना में हानिकारक है। इनसे चित की शांति और प्रसन्न्ता भंग होती है। यदि पवित्र बनना है तो इनका त्याग ही करना उचित हैं।

 जैसा होगा अन्न, वैसा होगा मन अगर हम लहुसन और प्याज खाते रहे तो पुरुषार्थ में जो रूकावट आएगी वो हमें पता नही पड़ेगा इसलिए शुद्ध भोजन पर भी पूरा-पूरा ध्यान देना पड़ेगा। लहसुन और प्याज दोनों ही तामसिक भोजन की श्रेणी में आते हैं।


चमत्कारी हल्दी का दूध,कैसे करें इसका सेवन

हल्दी दूध सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होता है. ये ही वजह है कि घरेलू नुस्खों के तौर पर हल्दी वाला दूध पीने की सलाह दी जाती है. आयुर्वेद में भी हल्दी को सबसे बेहतरीन नेचुरल एंटीबायोटिक माना गया है. अगर आप हल्दी वाला दूध पीते हैं, तो आपको कई तरह के स्वास्थ्य लाभ होते हैं. स्किन से लेकर पेट और शरीर के कई रोगों के लिए हल्दी वाला दूध लाभकारी होता है. हल्दी वैसे भी कई औषधीय गुणों से परिपूर्ण है.

बचपन में सर्दियों में नानी-दादी घर के बच्चों को सर्दी के मौसम में रोज हल्दी वाला दूध पीने के लिए देती थी। हल्दी वाला दूध जुकाम में काफी फायदेमंद होता है क्योंकि हल्दी में एंटीआॅक्सीडेंट्स होते हैं जो कीटाणुओं से हमारी रक्षा करते हैं। रात को सोने से एक दो घंटे पहले इसे पीने से तेजी से आराम पहुचता है. हल्दी में एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल प्रॉपर्टीज मौजूद रहती है जो की इन्फेक्शन से लडती है. इसकी एंटी इंफ्लेमेटरी प्रॉपर्टीज सर्दी, खांसी और जुकाम के लक्षणों में आराम पहुंचाती है.

चोट और दर्द के साथ ही सर्दी खांसी में बेहद लाभकारी होता है हल्दी और दूध.

2- हल्दी और दूध पीने से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.

3- हल्दी और दूध पीने से हड्डियों में होने वाला दर्द दूर होता है.

4-हल्दी और दूध पेट की समस्याओं से निजात दिलाता है.

5- हल्दी दूध पीने से शरीर के सारे विषैले टॉक्सिन बाहर निकल जाते हैं और पाचन क्रिया भी ठीक रहती है.

6- रोजाना हल्दी वाला दूध पीने से चेहरे पर निखार आता है.

7-हल्दी में एंटीसेप्टिक व एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो खुजली और मुंहासे में फायदेमंद होते हैं.

8- यहां तक कहा जाता है कि हल्दी वाला दूध पीने से अर्थराइटिस की बीमारी नहीं होती है.

9- हल्दी और दूध पीने से तनाव दूर होता है और अनिद्रा की समस्या भी दूर होती है.

10- गर्म हल्दी और दूध पीने से दमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों में कफ और साइनस जैसी समस्याओं में राहत मिलती है.

हल्दी में अमिनो एसिड अनिद्रा को दूर करता है.।

हल्दी का दूध पीरियड्स के दर्द को कम करता है।

हल्दी दूध कैंसर मरीज़ को भी पिलाया जाता है।

हल्दी दूध एक एंटी-माइक्रोबायल है, जो बैक्टीरियल इंफेक्शन और वायरल इंफेक्शन के साथ लड़ता है. ये दूध सांस संबंधी समस्याओं से निपटने में मदद करता है, क्योंकि इसे पीने से शरीर का तापमान बढ़ता है जिसकी वजह से लंग कंजेशन और साइनस में आराम पहुंचता है. ये अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी समस्याओं में भी राहत पहुंचाता है

एक कप दूध लें और इसे उबाल लें.  एक चुटकी हल्दी(एक capsule जितनी) और स्वाद के लिए थोड़ी चीनी / गुड़ मिलाएं.सुबह भी ले सकतें हैं, श्याम को भी ले सकते हैं।

गुम चोट ठीक करें

अंडे का पीला पार्ट और हल्दी का पेस्ट बना कर गुम चोट पर लगाने से गुम चोट ठीक हो जाती है।पहले हल्का तेल लगाएं फिर पेस्ट लगाएं फिर रुई लगाये फिर पट्टी करदे।

यदि व्यक्ति किडनी रोगी है यानि व्यक्ति को किडनी से जुड़ी कोई भी समस्या है तो ऐसे में हल्दी का दूध सेहत को नुकसान पहुंचा जा सकता है. खासतौर पर पथरी की समस्या होने पर, दरअसल हल्दी में ऑक्सालेट होता है, जो किडनी स्टोन की समस्या को ट्रिगर कर सकता है. ऐसे में किडनी की समस्या के दौरान इस ड्रिंक का सेवन न करें.


आयुर्वेद के छह रसों से कीजिये अपनी हर बिमारी दूर



अपने खान-पान को संतुलित रखकर हम अपनी स्वास्थ्य संबंधी बहुत-सी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। इसका ज्ञान हमारे पास है। जरूरत है बस उसके पन्नों पर पड़ी धूल को झाड़ने की

स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। यह बात जितनी जल्दी समझ में आए, उतना अच्छा। इसमें सबसे बड़ी भूमिका होती है आहार की। मनुष्य का शरीर हर क्षण कुछ न कुछ करता रहता है।

स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। यह बात जितनी जल्दी समझ में आए, उतना अच्छा। इसमें सबसे बड़ी भूमिका होती है आहार की। मनुष्य का शरीर हर क्षण कुछ न कुछ करता रहता है। गहरी नींद में सोते समय भी फेफड़े और हृदय लगातार काम करते हैं, जिससे शरीर में ‘सेल्स’ निरन्तर बनते और टूटते रहते हैं जिसकी जीवनी शक्ति द्वारा मरम्मत होती है जो आहार के माध्यम से ही संभव है। हमें यह जानने के लिए कहीं बाहर के शोध के इंतजार की जरूरत नहीं कि अगर खान-पान गलत होगा तो शरीर कष्ट में आएगा ही, मन भी बीमार होगा।

जानलेवा कैंसर

कैंसर समूची दुनिया में भयावह रूप लेता जा रहा है। इस मामले में दुनिया के 172 देशों की सूची में भारत का स्थान 155वां है। इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के मुताबिक भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या में तेजी आई है और इसके लगातार बढ़ने का अनुमान है। 2020 में कैंसर पीड़ित पुरुषों की संख्या 6,79,421 थी, जिसके 2025 में बढ़कर 7,63,585 हो जाने का अनुमान है।

महिला कैंसर रोगियों की संख्या 2020 में 7,12,758 थी, जिसके 2025 में बढ़कर 8,06,218 हो जाने का अनुमान है। भारत में प्रति लाख 70.23 लोग कैंसर से पीड़ित हैं। 1990 के मुकाबले देश में प्रोस्टेट कैंसर के मामले 22 प्रतिशत तथा महिलाओं में बे्रस्ट कैंसर के मामलों में 33 प्रतिशत, जबकि सर्वाइकल कैंसर के मामले करीब 3 प्रतिशत बढ़े हैं। अब तो ब्रेस्ट कैंसर के मामले 23 से 30 वर्ष की महिलाओं में अधिक पाए जा रहे हैं।

आंवला चिकित्सा शास्त्र में अमृत के समान लाभकारी बताया गया है। लोग कसैलेपन के कारण इसका उपयोग कम करते हैं। इसे चटनी बनाकर खाया जा सकता है। कच्चे आंवले में खांड मिलाकर खाने से अधिक लाभ मिलेगा।


छह रसों का महत्व:


देश के कैंसर विशेषज्ञों के मुताबिक, जिस तरह मधुमेह और हृदय रोग एक कारण से नहीं होते, उसी तरह कैंसर का भी एक कारण नहीं होता। इसके पीछे पश्चिमी जीवनशैली, डेयरी उत्पादों का गलत तरीके से सेवन, रासायनिक प्रदूषण, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, कब्ज व गैस्ट्रिक समस्या की भी अहम भूमिका है।


व्यक्ति की शारीरिक सक्रियता में कमी आना, दोषपूर्ण व असंतुलित तैलीय व मसाला युक्त खान-पान, व्यायाम नहीं करना, नशीले और मादक पदार्थों के अत्याधिक सेवन से कैंसर होने की संभावना अधिक होती है।

आहार-विहार के प्रति सजगता से न केवल बीमारियों से बचाव होता है, बल्कि स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। जन्म से मृत्युपर्यन्त प्राणी का पालन, संवर्धन और अनुवर्धन आहार के आधार पर ही होता है। इसीलिए अन्न को शास्त्रों में प्राण की संज्ञा दी गई है। प्राकृतिक दृष्टि से फल, शाक और अन्न को ही मनुष्य का भोजन माना गया है।


इन खाद्यानों को वैज्ञानिक दृष्टि से पांच भागों में बांटा गया है, जिसमें सभी पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज लवण और जल उचित मात्रा में हों तो शरीर स्वस्थ रहता है। जिस तरह पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने शरीर निर्माण वाले तत्वों को पांच भागों में बांटा है, उसी तरह भारतीय मनीषियों ने पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश के आधार पर छह रसों का सिद्धान्त बनाया है।


ये रस हैं-:

मधुर रस- इसमें पृथ्वी और जल का भाग अधिक रहता है। यह रस पौष्टिक और दूध को बढ़ाने वाला होता है। पुराने चावल, जौ, गेहूं, मूंग, शहद और खांड मधुर रस के स्रोत हैं।

अम्ल या खट्टा रस- इसमें पृथ्वी और अग्नि का भाग अधिक होता है। यह अग्नि-वर्धक, पाचक, कफ-पित्त, रक्त-पित्त उत्पन्न करने वाला है।

लवण रस- इसमें जल और अग्नि तत्व का भाग अधिक होता है। यह रक्त नलिकाओं को स्वच्छ करता है और स्वेद रन्ध्रों को खोलकर पसीना लाता है। यह अग्निवर्धक और तीखा होता है।

कटु रस- इसमें वायु और आकाश की अधिकता होती है। यह कृमि, तृष्णा, विष, मूर्च्छा का नाश करता है। यह हल्का और बुद्धि को बढ़ाने वाला होता है।

तिक्त अथवा चरपरा रस- इसमें वायु और अग्नि की अधिकता होती है। यह मलरोग, गलरोग, कोढ़, सूजन को नष्ट करने वाला होता है

कसैला रस- इसमें वायु और पृथ्वी तत्व की अधिकता होती है। यह पित्त और कफ का नाश करने वाला, घाव को भरने वाला, ठण्डा तथा त्वचा और वर्ण को सुन्दर बनाने वाला होता है।

खाना आधा, पानी दूना

भोजन करते समय कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए। जैसे- खाना आधा, पानी दोगुना, व्यायाम तिगुना और हंसी चौगुना होनी चाहिए। आमाशय को तीन भागों में विभाजित करके एक भाग को भोज्य पदार्थ से, एक भाग को पेय पदार्थ से और एक भाग को वात पित्त-कफ के विचरण के लिए खाली छोड़ना चाहिए। अन्न को पीना चाहिए, जल को खाना चाहिए अर्थात अन्न को खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए और पानी को घूंट-घूंट कर पीना चाहिए। महीने में एक बार उपवास या तरल पदार्थ लें, ताकि आमाशय को आराम मिल सके और शरीर के भीतरी विकार निकल सकें, जिसे आजकल ‘बॉडी डिटॉक्सीफाई’ कहते हैं। कम खाओ और अधिक काम करो। इसी सिद्धान्त को व्यावहारिक जीवन में कार्यान्वित करके अपना स्वास्थ्य सही रखें। आहार में सात्विकता का यदि समुचित ध्यान रखा जाए और उसमें तामसिकता की मात्रा नहीं बढ़ने दी जाए तो रोगों से सहज ही बचाव हो सकता है। यदि सात्विक, सुपाच्य, स्वल्प और स्वच्छ आहार करने की नीति अपनाई जाए, भूख से कम और नियत समय पर खाया जाए तथा निरंतर श्रम किया जाए, हंसते-खेलते दिन बिताया जाए तो निस्संदेह हम निरोगी जीवन प्राप्त कर सकते हैं। -प्रज्ञा शुक्ला (प्राकृतिक, एक्यूप्रेशर, सूजोक, कलर, वैकल्पिक चिकित्सक)

सादा और ताजा भोजन उत्तम

शरीर पंचतत्व से बना है। जब तक ये पांचों तत्व उचित परिमाण में रहते हैं, शरीर निरोगी बना रहता है। इसके कम-ज्यादा होने पर शरीर रोगों से ग्रस्त हो जाता है। वहीं, रस की कमी से शरीर में दुर्बलता आती है, जबकि अधिक मात्रा में सेवन से अनेक रोग शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जैसे-मधुर रस की अधिकता से रक्त विकार, श्वास, मधुमेह जैसे रोग होते हैं। खट्टे रस अथवा विटामिन सी की अधिकता से दांत, छाती, गला, कान, नाक आदि में विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कसैले रस की अधिकता से गैस बनना, हृदय की कमजोरी, पेट फूलना जैसी बीमारियां होती हैं।

व्यक्ति अपनी कार्यशैली में बदलाव नहीं ला सकता, किन्तु आहार के प्रति सजग रह कर ऊर्जावान हो सकता है। अच्छा आहार स्वास्थ्य और मन, दोनों को प्रफुल्लित करता है। अधिकांश लोग स्वाद को ही स्वस्थ आहार की कसौटी मानते हैं, वहीं बहुत से लोग महंगे और पौष्टिक पदार्थों के अत्यधिक सेवन को ही लाभप्रद मानते हैं। सच यह है कि स्वास्थ्य के लिए वही भोजन उत्तम होता है जो सादा और ताजा हो। फ्रिज भंडारण के लिए सही हो सकते है, किन्तु बने हुए भोजन को एक-दो दिन उसमें रखकर खाने से उसकी पौष्टिकता खत्म हो जाती है।

वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कम समय में पौष्टिक आहार को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। भोजन में आधा भाग साग और फल रहें और आधा भाग अन्न का हो। यही सन्तुलित और पौष्टिक आहार होगा।

वाग्भट का मंत्र

महर्षि वाग्भट के अनुसार ‘मित भुक’ अर्थात् भूख से कम खाना, ‘हित भुक’ अर्थात् सात्विक खाना और ‘ऋत भुक’ अर्थात् न्यायोपार्जित खाना। जो इन तीनों बातों का स्मरण रखेगा, वह बीमार नहीं पड़ेगा। सृष्टि के सभी प्राणी सजीव आहार ग्रहण करते हैं। प्रकृति प्रदत्त भोज्य उपहारों को उन्हीं रूप में ग्रहण करना स्वास्थ्यप्रद होता है। इनमें शरीर के पोषण के लिए आवश्यक तत्व विद्यमान होते हैं, परन्तु आजकल कीटनाशक दवाओं के अत्यधिक प्रयोग के कारण इन्हें गरम पानी में धोकर उपयोग में लाया जा सकता है।


शरीर को निरोगी बनाना कठिन नहीं है। आहार, श्रम एवं विश्राम का संतुलन हर व्यक्ति को आरोग्य एवं दीर्घजीवन दे सकता है। आलस्य रहित, श्रम युक्त, व्यवस्थित दिनचर्या का पालन किया जाना चाहिए। स्वाद रहित सुपाच्य आहार लेना ही निरोगी काया का मूल मंत्र है।

एक भ्रम है कि पोषक तत्वों के लिए उच्च कोटि का आहार चाहिए। जैसे- प्रोटीन के लिए सोयाबीन, सूखे मेवे, वसा के लिए बादाम, अखरोट, पिस्ता, घी, विटामिन के लिए फल, दूध, दही इत्यादि। जिन खाद्य पदार्थों में ये तत्व पर्याप्त मात्रा में हैं, वे बहुत महंगे होने के कारण सर्वसाधारण के लिए सुलभ नहीं हो पाते। परन्तु यह जरूरी नहीं कि महंगे भोज्य पदार्थ ही पोषक हों।

साधारण भोजन को भी ठीक प्रकार से पकाया और खाया जाए तो उसमें भी पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्व मिल जाते हैं। गेहूं, ज्वार, बाजरा, चना, मक्का, आदि अनाज तथा शाक, सब्जियां भी पोषक तत्वों से भरपूर हैं। इनका प्रयोग कैसे किया जाए, यह महत्वपूर्ण है।

जरूरी नहीं महंगा खाद्य अच्छा हो

शोध निष्कर्ष के मुताबिक, 50 ग्राम अंकुरित चनों में 250 ग्राम दूध के बराबर पौष्टिक तत्व होते हैं। अंकुरित चनों में सेंधा नमक और नींबू का रस मिलाकर खाने पर प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण सभी प्राप्त हो सकते हैं। जरूरी नहीं कि अंगूर, सेब, अनार जैसे महंगे फलों से ही पोषक तत्वों की प्राप्ति होगी। यही तत्व हर मौसमी फल में भी मिलते हैं, जैसे- खीरा, ककड़ी, आम, जामुन, पपीता इत्यादि सस्ते भी होते हैं और आम आदमी के बजट में भी।


प्राकृतिक चिकित्सा में नींबू को सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य रक्षक फल कहा गया है। यदि इसका विधि पूर्वक प्रयोग किया जाए तो इससे पचासों रोग दूर हो सकते हैं। इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस काफी मात्रा में पाया जाता है। यह सिर से पैर तक खून को शुद्ध करता है। नींबू स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, किन्तु इसे भोजन के साथ खाना हानिकारक होता है, क्योंकि भोजन को पचाने के लिए मुंह में जो लार बनती है, नींबू का रस उसको नष्ट कर देता है। नींबू को सुबह या शाम पानी में मिलाकर पिएं। शक्कर और नमक भी न डालें।


टमाटर के फायदे: टमाटर पेट के समस्त रोगों, कब्ज-दस्त, मोटापा कम करने में फायदेमंद है। इसे कच्चा, अधपका और पका किसी भी रूप में खाया जा सकता है। कोलम्बिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. शर्मन का कहना है कि टमाटर विटामिन की दृष्टि से नींबू और संतरे के बराबर ही है। मक्खन में जितना विटामिन ‘ए’ होता है, उससे अधिक टमाटर में पाया जाता है।

इसका एक विशेष गुण और है, अगर किसी को खाने से कोई रोग हुआ हो, उसे टमाटर का सेवन करना चाहिए। बुखार आने पर टमाटर का सूप फायदेमंद होता है। गाजर को किसी भी रूप में खा सकते हैं। इसके सेवन से चर्म रोग और गुर्दे की बीमारी दूर होती है। अन्य की अपेक्षा आयरन की मात्रा इसमें अधिक होती है, जिससे रक्त शुद्ध तथा ताकतवर बनता है। गाजर का रस या सलाद में इसे खाने से त्वचा कान्तिमय होती है और नेत्र ज्योति बढ़ती है।

आंवला तो अमृत: आंवला को चिकित्सा शास्त्र में अमृत के समान लाभकारी बताया गया है। लोग कसैलेपन के कारण इसका उपयोग कम करते हैं। इसे चटनी बनाकर खाया जा सकता है। मुरब्बा न बनाकर खाएं। कच्चे आंवले में खांड मिलाकर खाने से अधिक लाभ मिलेगा।

मूंगफली का असर बादाम जैसा: खजूर, मूंगफली, पपीता, पालक सस्ते होते हैं और इनके विधिपूर्वक सेवन से हम निरोगी रह सकते हैं। कच्ची मूंगफली को भिगोकर और पीसकर खाया जाए तो यह बादाम की तरह ही है, शक्तिवर्धक और पुष्टिवर्धक होती है। पत्ता गोभी के पत्तों को सलाद में प्रयोग कर सकते हैं। पालक का रस या भाप पर पकाकर खाने से इसमें मौजूद विटामिन नष्ट नहीं होते।


जैसा खाइए अन्न, वैसा बनेगा मन

बहुत बार ऐसा देखने को मिलता है कि युवक-युवतियां लैपटॉप या कम्प्यूटर के सामने ही खाना खा लेते हैं। यह गलत है। मन का शरीर के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रत्यक्ष में तो सब प्रकार के कार्य हमारी इन्द्रियां ही करती हैं, पर संचालन मन से होता है। गीता में भी सात्विक, तामसिक, राजसिक भोजन का उल्लेख मिलता है। अत: भोजन करते समय शान्त और प्रसन्नचित्त रहना चाहिए।


क्रोध, व्यावसायिक चिन्ता अथवा आवेश से मानसिक विचलन होता है। ऐसे समय भोजन करने से शारीरिक व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। जिस भाव से भोजन करेंगे, शरीर पर वैसा प्रभाव पड़ेगा। इसीलिए भोजन को प्रसाद की तरह ग्रहण करना चाहिए। चोकर युक्त आटा, छिलके सहित दालें भोजन में शामिल करें। सादा और ताजा भोजन करें।

महिलाएं अधिक संवेदनशील होती हैं। उनके लिए पौष्टिक आहार के साथ मानसिक शान्ति भी जरूरी है। उन्हें समय पर योग, नाश्ता, भोजन और विश्राम करना चाहिए। आपकी जितनी अधिक मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक उन्नति होगी, उतना ही उन्नत परिवार होगा।

नित्य कर्म की तरह समय पर भोजन करना अच्छा होता है। असमय और कुछ भी खा लेना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। बिना भूख कभी खाना ही नहीं चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पाचन तंत्र पर अतिरिक्त भार न पड़े। किसी भी अन्न को अंकुरित करके नाश्ते में शामिल करें। भोजन में दही, दाल, चावल, हरी मौसमी, सस्ती सब्जियां खाएं। पैकेटबंद और तला-भुना बाजार का खाना बन्द करें। भुने हुए चने, मुरमुरे, चिउड़ा, मूंगफली के दाने चाय के साथ नाश्ते में लें। रात्रि भोजन बिल्कुल हल्का, मसाले रहित और सुपाच्य हो।

महिलाएं घर, परिवार की जिम्मेदारियों में इतनी उलझ जाती हैं कि उन्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रहता। 50 वर्ष की अवस्था पार करते-करते ऐसी महिलाएं कई बीमारियों से ग्रस्त हो जाती हैं। इसलिए उन्हें पूरे परिवार के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य के लिए भी समय निकालना होगा। महिलाएं अधिक संवेदनशील होती हैं। उनके लिए पौष्टिक आहार के साथ मानसिक शान्ति भी जरूरी है। उन्हें समय पर योग, नाश्ता, भोजन और विश्राम करना चाहिए। आपकी जितनी अधिक मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक उन्नति होगी, उतना ही उन्नत परिवार होगा।


  

श्री तुलसी पीए,निरोग जीए

  

तुलसी के पत्तों में कई तरह के औषधीय गुण मौजूद होते हैं। इसके रोजाना सेवन से आप कई तरह की शारीरिक समस्याओं से बचे रह सकते हैं। तुलसी शरीर के तापमान को कंट्रोल में रखती है। इसके सेवन से कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में रहता है। मौसम में होने वाले बदलावों के चलते होने वाले इंफेक्शन से बचे रहना चाहते हैं, तो हल्दी और तुलसी का काढ़ा रोजाना पिएं। ये काढ़ा सर्दी-जुकाम और गले में खराश की समस्या से भी राहत दिलाता है।

ऐसे करें प्रयोग तुलसी के पत्तों का:

1. एसिडिटी महसूस होने पर तुलसी के दो से तीन पत्ते चबाने से लाभ मिलता है। अगर आपको अकसर ही एसिडिटी रहती है तो खाने के बाद इसे पत्ते खाने की आदत बना लें।

2. पेट दर्द हो, तो नारियल पानी में तुलसी के पत्तों का रस और नींबू मिलाकर पी लें।

3. सुबह की शुरुआत चाय से होती है तो इसमें भी अदरक के साथ तुलसी के कुछ पत्ते डाल दें। काढ़ा बना रहे हैं तो उसमें भी तुलसी के पत्ते डालें। इससे पाचन संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिलता है और साथ ही मौसम बदलाव के साथ होने वाले संक्रमण में भी आराम मिलता है।

तुलसी के फायदे :

 तुलसी को रक्षा कवच माना जाता है। तुलसी के सभी हिस्सों का अपना - अपना अलग महत्व है। इसकी शाखाएँ, बीज, पत्ती और जड़ सभी के बहुत फायदे है। आइये जानते है श्री तुलसी के फायदे

१. सर्दी-खांसी में -

इसका उपयोग सर्दी खांसी में आराम देने के लिए किया जाता है। अगर आपको जुकाम सर्दी खांसी हो गई है तो तुलसी का काढ़ा बनाकर पीने से आराम मिलता है। तुलसी के साथ काली मिर्ची, लौंग और गुड़ मिलाकर काढ़ा तैयार किया जाता है।

२. मुँह की दुर्गंध -

तुलसी के पत्तों को चबाने से मुँह की दुर्गंध को दूर किया जा सकता है। अगर साँसों में से बदबू आती है तो तुलसी खाने के फायदे इसमें होते है। तुलसी के पत्ते चबाना चाहिए ऐसा करने पर दुर्गंध खत्म हो जाती है।

३. सिर की जूं लीख में -

यदि सिर में जूं लीख हो गई है तो ऐसे में तुलसी का तेल बालों में लगाना चाहिए। इसकी पत्तियों से आप तेल बना सकते है या बाजार में भी आपको तुलसी का तेल मिल सकता है।

४. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये -

तुलसी में रोगों से लड़ने की ताकत होती है। यह इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाती है। तुलसी का सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

. कान दर्द और सूजन में राहत -

यह कान के दर्द और सूजन को कम करने का काम करती है। तुलसी पत्र स्वरस को गर्म कर ले इसकी २ - २ बून्द कान में डालने पर दर्द से मुक्ति मिलेगी। कान के पीछे हो रही सूजन में तुलसी पत्ती के साथ एरंड की कोंपलों को पीस ले इसमें नमक मिला ले इस लेप को गुनगुना करके लगाएं।

६. तनाव से मुक्ति -

तुलसी में एंटीस्ट्रेस गुण पाए जाते है। शरीर में पाया जाने वाला कॉर्टिसोल हॉर्मोन जिसे स्ट्रेस हार्मोन कहते है उसे नियंत्रित करने में तुलसी सहायक होती है।

७. दस्त में आराम -

दस्त से परेशान होने पर आप इसका उपयोग जरूर करे। जीरे के साथ तुलसी के पत्तों को पीस ले। दिन में इसे ३ - ४ बार खाये इससे दस्त रुक जाएंगे।

८. चोट लगने पर -

इसमें एंटी-बैक्टीरियल तत्व पाए जाते है जो घाव को ठीक करने में मददगार साबित होते है। फिटकरी और तुलसी के पत्ते दोनों को साथ में मिलाकर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है।

९. वजन कम करने में सहायक -

तुलसी के पत्ते के फायदे में वजन कम करना भी शामिल है। तुलसी रस शरीर का वजन कम करने के साथ बीएमआई और शरीर में इन्सुलिन को नियंत्रित करता है।

१०. रतौंधी में लाभ -

तुलसी रस के फायदे रतौंधी में भी होते है। २ से ३ बून्द तुलसी पत्र स्वरस को आँखों में डालने से फायदा होता है। आप चाहे तो तुलसी ड्राप खरीदकर भी इसका इस्तेमाल कर सकते है। तुलसी ड्राप के फायदे रतौंधी ठीक करने में होते है।

११. चेहरे की आभा -

तुलसी की पत्तियों को पीसकर इसका लेप या रस चेहरे पर लगाने से चेहरे की चमक बढ़ती है और कील मुहांसे भी ठीक होते है।

१२. साँप के काटने पर -

अगर साँप ने काट लिया है तो तुलसी का रस पिलाना चाहिए और इसकी जड़ और मंजरी को पीसकर साँप के काटे हुए स्थान पर लगाना चाहिए। इसका रस नाक में टपकाने से बेहोश रोगी को आराम मिलता है।

१३. सिर दर्द में आराम -

सिर में दर्द होने पर तुलसी की पत्ती की चाय बनाकर पीने से फायदा होता है।

१४. हृदय रोग -

इसका सेवन करने से हृदय रोग का खतरा कम हो जाता है और हृदय को स्वस्थ बनाये रखता है।

१५. झड़ते बालों के लिए उपयोगी -

तुलसी की पत्तियां बालों को झड़ने से रोकती है और सिर में ठंडक बनाये रखती है। इससे सिर में ब्लड सर्कुलेशन भी अच्छे से होता है।


आँखों की रोशनी कैसे बढायें

 


चश्मा लगने का सबसे प्रमुख कारण आंखों की ठीक से देखभाल न करना, पोषक तत्वों की कमी या अनुवांशिक हो सकते हैं. लेकिन सही खानपान से इस समस्या का समाधान भी निकाला जा सकता है. जानिए ऐसे ही कुछ घरेलू उपाय जो आंखों की रोशनी बढ़ाने में आपकी सहायता करेंगे...


1. पैर के तलवों पर सरसों के तेल की मालिश करके सोएं. सुबह के समय नंगे पैर हरी घास पर चलें व नियमित रूप से अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें.

2. एक चने के दाने जितनी फिटकरी को सेंककर सौ ग्राम गुलाबजल में डालकर रख लें. रोजाना रात को सोते समय इस गुलाबजल की चार-पांच बूंद आंखों में डाले. साथ ही, पैर के तलवों पर घी की मालिश करें इससे चश्मे का नंबर कम होना शुरू हो जाएगा.

3. आंवले के पानी से आंखें धोने से या गुलाबजल डालने से आंखें स्वस्थ रहती हैं.

4. बादाम की गिरी, बड़ी सौंफ व मिश्री तीनों को समान मात्रा में मिला लें. रोज इस मिश्रण को एक चम्मच मात्रा में एक गिलास दूध के साथ रात को सोते समय लें.

5. आंखों के हर प्रकार के रोग जैसे पानी गिरना, आंखें आना, आंखों की दुर्बलता, आदि होने पर रात को आठ बादाम भिगोकर सुबह पीस कर पानी में मिलाकर पीने से आंखें स्वस्थ रहती हैं.

6. हल्दी की गांठ को तुअर की दाल में उबालकर, छाया में सुखाकर, पानी में घिसकर सूर्यास्त से पूर्व दिन में दो बार आंख में काजल की तरह लगाने से आंखों की लालिमा दूर होती है.

7. सुबह के समय उठकर बिना कुल्ला किए मुंह की लार अपनी आंखों में काजल की तरह लगातार 6 महीने लगाते रहने


पर चश्मे का नंबर कम हो जाता है.

8. कनपटी पर गाय के घी की हल्के हाथ से रोजाना कुछ देर मसाज करने पर आंखों की रोशनी बढ़ती है.

9. त्रिफला चूर्ण को रात्रि में पानी में भिगोकर, सुबह छानकर उस पानी से आंखें धोने से नेत्रज्योति बढ़ती है.

10. बादाम की गिरी, बड़ी सौंफ व मिश्री तीनों को समान मात्रा में मिला लें. रोज इस मिश्रण को एक चम्मच मात्रा में एक गिलास दूध के साथ रात को सोते समय लें 

पेंसिल को हाथ में सीधा खड़ा करके पकड़ें। फिर उसे धीरे-धीरे अपनी आंखों के सामने लाएं और फिर दूर ले जाएं। इस तरीके को रोजाना दिन में 5 से 10 बार आजमाएं। आंखों की रोशनी को बढ़ाने के लिए यह बेहद कारगर तरीका माना जाता है।

ताजा खीरा खाओ अच्छा स्वास्थ्य पाओ



बड़ी कमाल औषधि खीरा गुणों से ये भरपूर

भोजन की थाली से तुम रखो ना इसको दूर


पित्त और खून की गर्मी को करता है ये शांत

बहुत प्यार से स्वच्छ करता पेट की हर आंत


खीरे का रस सुबह के समय खाली पेट पीना

पथरी गलकर बाहर होगी सौ बरस तुम जीना




सलाद बनाकर खीरे को हर दिन खाते जाओ

गैस और कब्जी की समस्या जड़ से मिटाओ

निम्बू छिड़ककर खीरे पर सेंधा नमक लगाओ

निम्न रक्तचाप की समस्या से छुटकारा पाओ


खीरा निम्बू के रस के अंदर हल्दी भी मिलाओ

चेहरे पर लगाकर दाग धब्बों से मुक्त हो जाओ


धूप से हुए सांवले चेहरे को खीरे से चमकाओ

पानी में उबले खीरे से अपने चेहरे को धुलाओ


आंखों के काले धब्बों पर रस खीरे का लगाओ

दो हफ्तों में तुम काले धब्बों को अदृश्य पाओ

इलाइची है गुणकारी,गर्म पानी के साथ लेने से लाभ

 


भारतीय पकवानों में डलने वाला एक महत्वपूर्ण मसाला है इलायची। अगर अभी तक आपको लगता था कि इलायची खाने में इस्तेमाल करने से केवल खाने की महक और स्वाद ही बढ़ता है, तो आप गलत सोच रहे हैं। इलायची का इस्तेमाल आपके भोजन का स्वाद बढ़ाने के साथ ही आपकी सेहत और सुंदरता को भी बढ़ा सकता है। 


इलायची में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट और मूत्रवर्धक गुण ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करते हैं. आज की लाइफ स्टाइल में अपच, गैस, एसिडिटी और कब्ज़ जैसी दिक्कत होना बहुत ही नॉर्मल सी बात है. इस दिक्कत को दूर करने में भी इलायची अच्छी भूमिका निभा सकती है.


आइए जानते हैं कि कैसे -


 1. यदि आपको कील-मुंहासे की समस्या रहती है तो आप नियमित रात को सोने से पहले गर्म पानी के साथ एक इलायची का सेवन करें। इससे आपकी त्वचा संबंधी समस्या दूर होगी।

 2. यदि आपको पेट से संबंधित समस्या है, आपका पेट ठीक नहीं रहता या आपके बाल बहुत ज्यादा झड़ते है तो इन सभी समस्याओं से बचने के लिए आप इलायची का सेवन करें। इसके लिए आप सुबह खाली पेट 1 इलायची गुनगुने पानी के साथ खाएं।अन्य

 3. दिनभर की बहुत ज्यादा थकान के बाद भी अगर आपको नींद आने में परेशानी होती है तो इसका उपाय भी इलायची है। नींद नहीं आने की समस्या से निजात पाने के लिए आप रोजाना रात को सोने से पहले इलायची को गर्म पानी के साथ खाएं। ऐसा करने से नींद भी आएगी और खर्राटे भी नहीं आएंगे। 

अन्य लाभ:

 छोटी इलायची महज मीठे और नमकीन पकवानों का स्वाद और उनकी खुशबू ही नहीं बढ़ाती बल्कि ये आपकी हेल्थ के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

खराश दूर करने में ...

खांसी का इलाज ...

छाले दूर करने में ...

एसिडिटी ...

मुहं की दुर्गंध ...

मुंह का इंफेक्शन होगा दूर ...

हिचकी होगी दूर

सुबह खाली पेट इलायची खाने के क्या फायदे?

खाली पेट इलायची खाने से मिलते हैं ये 5 फायदे-

पेट के लिए फायदेमंद ...

ब्लड प्रेशर रहता है कंट्रोल ...

भूख बढ़ाने में मददगार ...

ब्लड सर्कुलेशन रहता है सही ...

सर्दी-जुकाम में फायदेमंद ...

पूजा से सम्बंधित आवश्यक नियम

सुखी और समृद्धिशाली जीवन के लिए देवी-देवताओं के पूजन की परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है। आज भी बड़ी संख्या में लोग इस परंपरा को निभाते हैं। पूजन से हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, लेकिन पूजा करते समय कुछ खास नियमों का पालन भी किया जाना चाहिए। 


अन्यथा पूजन का शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाता है। यहां 30  ऐसे नियम बताए जा रहे हैं जो सामान्य पूजन में भी ध्यान रखना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखने पर बहुत ही जल्द शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।


ये नियम इस प्रकार हैं…

1👉 सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।                                                         

2👉 शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।

3👉 मां दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास) नहीं चढ़ानी चाहिए। यह गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित की जाती है।

4👉 सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।

5👉 तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तों को तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं।

6👉 शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए। सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त में पूजन और आरती होनी चाहिए। इसके बाद प्रात: 9 से 10 बजे तक दूसरी बार का पूजन। दोपहर में तीसरी बार पूजन करना चाहिए। 

इस पूजन के बाद भगवान को शयन करवाना चाहिए। शाम के समय चार-पांच बजे पुन: पूजन और आरती। रात को 8-9 बजे शयन आरती करनी चाहिए। जिन घरों में नियमित रूप से पांच * पूजन किया जाता है, वहां सभी देवी-देवताओं का वास होता है और ऐसे घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।

7 प्लास्टिक की बोतल में या किसी अपवित्र धातु के बर्तन में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और लोहे से बने बर्तन। गंगाजल तांबे के बर्तन में रखना शुभ रहता है।

8👉 स्त्रियों को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए। यह इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती हैं।

9👉 मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए।

10👉 केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए।

11👉 किसी भी पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए। दक्षिणा अर्पित करते समय अपने दोषों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी छोड़ने पर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी।

12👉 दूर्वा (एक प्रकार की लंबी गांठ वाली घास) रविवार को नहीं तोडऩी चाहिए।

13👉 मां लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल अर्पित किया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुन:  चढ़ा सकते हैं।

14👉 शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक बासी नहीं माने जाते हैं। अत: इन्हें जल छिड़क कर पुन: शिवलिंग पर अर्पित किया जा सकता है।

15👉 तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है। इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन: भगवान को अर्पित किया जा सकता है।

16👉 आमतौर पर फूलों को हाथों में रखकर हाथों से भगवान को अर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढ़ाने के लिए फूलों को किसी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और इसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को अर्पित करना चाहिए।

17👉 तांबे के बर्तन में चंदन, घिसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।

18👉 हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगी होते हैं।

19👉  रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए।

20👉 पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखकर करनी चाहिए। यदि संभव हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में पूजा अवश्य करें।

21👉 पूजा करते समय आसन के लिए ध्यान रखें कि बैठने का आसन ऊनी होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।

22👉 घर के मंदिर में सुबह एवं शाम को दीपक अवश्य जलाएं। एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए।

23👉 पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद उसी स्थान पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएं अवश्य करनी चाहिए।

२४.👉 रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए।

25👉 भगवान की आरती करते समय ध्यान रखें ये बातें- भगवान के चरणों की चार बार आरती करें, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। इस प्रकार भगवान के समस्त अंगों की कम से कम सात बार आरती करनी चाहिए।

26👉 पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी,सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।

27👉 गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो,शालिग्राम दो,सूर्य प्रतिमा दो,गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें।

28👉 अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार,काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें। शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है। 

जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है।

29👉 मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता –पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें, उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें।

30👉  विष्णु की चार, गणेश की तीन,सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं।

दुबले लोग अपना वजन कैसे बढ़ाएं

 

आपका  वजन बढ़ जायेगा टेंशन ना लो 

दुबले-पतले शरीर को मोटा बनाने के लिए आप केला, ड्राई फ्रूट्स, दूध, शहद और सोयाबीन को अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं। नियमित रूप से इन चीजों को डाइट में शामिल करके वजन बढ़ाने में मदद मिल सकती


वजन बढ़ाने के लिए आपको हाई कैलोरी डाइट खाने की जरूरत है। इसके लिए आहार में बिना चोकर का आटा, रोटी, चावल, आलू, शकरकंद, फुल क्रीम दूध शामिल करना चाहिए। दही, पनीर, सूजी, गुड़, चॉकलेट खाएं। इसके अलावा फलों में केला, आम, चीकू, लीची, खजूर का सेवन करना चाहिए।

वजन ना बढ़ने का कारण सिर्फ मेटाबॉलिज्म का अच्छा होना नहीं होता है. इसके पीछे कई वजहें हैं. जैसे कि आनुवंशिकी, न्यूट्रिशन और यहां तक कि व्यवहार का तरीका भी बॉडी वेट बनाए रखने में मदद करता है. वजन का बढ़ना या ना बढ़ना हर व्यक्ति की अलग-अलग रुटीन पर भी निर्भर करता है 

1• शाम को काले चने ,खडे मूँग और मंगफाली  के दाने (8 ,9) गला दो । फिर सुबह जब उठो तो  वयायम  करने  के बाद

 खाली  पेट खा लो।

2• यहा सब खाने के 1 घन्टे बाद 1 गिलास दुध लिजिये और 2 या फिर 1 केला खाईये। 

3°फिर 11 12 बजे तक रोटि  का  सेवन करेंगे तो जितनी रोटी अभी खाते हे उससे 1 या 2 रोटी  ज्यादा खाए और तेल की चीजो का सेवन बन्द कर दे । सब्जी मे आप ज्यादा से ज्यादा दाल और हरी  सब्जी खाए। और रोटि को चबा चबा के खाना जिससे वो पच  सके । 

3• हफ्ते मे 2 बार चूरमा अवश्य खाए ।

4• फिर आप दिन मे फलो का सेवन करते रहिये और फलो का जूस पी लिजिये।

5• अब 5 से 6 बजे के लगभग आप कुछ भी अच्छी चिज खा लिजिये जेसे खरिक 2 ,3  या फिर 1 केला खा लो।बस तेल को और शक्कर को बन्द कर दो ।

6•अब शाम को जितना हो सके जल्दी खाना खाए शाम को भी सुबह जितनी रोटि खाई थी उतनी खा लो और खाने के बाद थोडा चल लो  आधा घन्टे।

7• फिर सोने से पहले हल्दी का या फिर अश्वगंधा का दुध ले लिजिये। फिर सो जाईये । 





ग्रीष्म ऋतु में कैसे स्वास्थ्य रहें


मौसम के रूप में यह ऐसा समय है जिसे लोग ज्यादा पसंद नहीं करते, वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन के कारण आजकल अधिकांश समय (कुछ महीनों को छोड़कर) वातावरण में गर्माहट बनी रहती है, लेकिन ग्रीष्म ऋतु का समय अन्य ऋतुओं की अपेक्षा सबसे अधिक गर्म व शरीर के लिए कष्टभरा रहता है।  

इस गर्मी के मौसम में सूर्य अपनी तेज़ किरणों से वातावरण व मानव शरीर में मौजूद स्नेह तत्वों का अधिक मात्रा में ग्रहण (आदान) करने लगता है, इस काल को आयुर्वेद में आदान काल भी कहा जाता है। जिससे शरीर में कफ का क्षय व वात की वृद्धि होने लगती है।

आइये जानतें है कैसे कुछ सामान्य सी चीज़ों को अपनाकर इस गर्मी से बच सकते हैं: 

इस ऋतु में सुबह नहाने से पहले हल्के हाथों से शरीर पर नारियल का तेल अवश्य लगायें,  अधिक व्यायाम / आसान न करें इससे शरीर में रूखापन और बढ़ता है। 

खाने में नमक (लवण), कड़वा (कटु) और खट्टा (अम्ल) रस से युक्त पदार्थों का बहुत ही कम मात्रा में या बिल्कुल सेवन न करें। 

गर्मी के मौसम में मीठे (मधुर), आसानी से पचने वाले (लघु),  वसा युक्त (स्निग्ध), ठन्डे (शीतल) एवं तरल (द्रव) पदार्थों का सेवन करना चाहिए। जिन व्यक्तियों को डायबिटीज हो या अन्य मेटाबोलिक सम्बन्धी विकार हों ऐसे लोगों को मीठे व वसा युक्त पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

इस मौसम में ठन्डे जल से स्नान करना चाहिए, शक्कर मिला जौ का सत्तू लेना चाहिए। इस मौसम में किसी भी रूप में मद्य (शराब) का सेवन न करें क्योंकि इस मौसम में ऐसा करने पर कृशता (कमजोरी), शरीर में गर्मी व मन में भ्रम उत्पन्न होता है।

पुराने चावल, नारियल पानी, अनार, आमला, आम का पना (पानक), खश (उशीर)-गुलाब का शर्बत, अधिक मात्रा में तरल पदार्थ, मौसमी फल जैसे अंगूर, आम, फालसा आदि का रस, गुलकंद, दूध, घी, मठ्ठा आदि का सेवन करें।

चाय-कॉफ़ी-कार्बोनेटेड पेय, तला-भुना-मिर्च-मसालेदार भोजन बिल्कुल न करें।

हल्के सूती (कॉटन से बने) कपड़ों को पहने, इस मौसम में समय होने पर दिन के समय में थोड़ी देर सो सकते हैं। सूर्य की सीधी किरणों से बचें, ऐसी स्थिति में बाहर निकलना आवश्यक हो तो शरीर को अच्छे से ढ़ककर व सूर्य की सीधी किरणों से बचने के लिए छाते का प्रयोग करें। कपूर-चन्दन जैसे ठन्डे द्रव्यों को मुल्तानी मिट्टी में मिलाकर नहाने के समय शरीर पर लेप कर सकते हैं, इससे शरीर में बेहतर तरावट महसूस होती!

अपने स्वास्थ्य के बारे में यह जरूर जान लें आप

स्वास्थ्य का  असली अर्थ है शारीरिक, सामाजिक, मानसिक और भावनात्मक तन्दुरुस्ती।



 1- 90 प्रतिशत रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोगों की कभी कमी नहीं रहेगी।

2- कुल 13 अधारणीय वेग हैं

3-160 रोग केवल मांसाहार से होते है

4- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।

5- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।

6- 48 रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।

7- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।

8- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।

9- ठंडेजल (फ्रिज)और आइसक्रीम से बड़ी आंत सिकुड़ जाती है।

10-

मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।

11- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।

12- बाल रंगने वाले द्रव्यों(हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन भी) होती है।

13- दूध(चाय) के साथ नमक (नमकीन पदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।

14- शैम्पू, कंडीशनर और विभिन्न प्रकार के तेलों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।

15- गर्म जल से स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो जाती हैं।

16- टाई बांधने से आँखों और मस्तिष्क हो हानि पहुँचती है।

17- खड़े होकर जल पीने से घुटनों(जोड़ों) में पीड़ा होती है।

18- खड़े होकर मूत्रत्याग करने से रीढ़ की हड्डी को हानि होती है।

19- भोजन पकाने के बाद उसमें नमक डालने से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ता है।

20- जोर लगाकर छींकने से कानों को क्षति पहुँचती है।

21- मुँह से साँस लेने पर आयु कम होती है।

22- पुस्तक पर अधिक झुकने से फेफड़े खराब हो जाते हैं और क्षय(टीबी) होने का डर रहता है।

23- चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है मलेरिया नहीं होता है।

24- तुलसी के सेवन से मलेरिया नहीं होता है।

25- मूली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अनेक रोगों से मुक्त रहता है।

26- अनार आंव, संग्रहणी, पुरानी खांसी व हृदय रोगों के लिए सर्वश्रेश्ठ है।

27- हृदयरोगी के लिए अर्जुनकी छाल, लौकी का रस, तुलसी, पुदीना, मौसमी,

सेंधा नमक, गुड़, चोकरयुक्त आटा, छिलकेयुक्त अनाज औषधियां हैं।

28- भोजन के पश्चात् पान, गुड़ या सौंफ खाने से पाचन अच्छा होता है। अपच नहीं होता है।

29- अपक्व भोजन (जो आग पर न पकाया गया हो) से शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है।

30- मुलहठी चूसने से कफ बाहर आता है और आवाज मधुर होती है।

31- जल सदैव ताजा(चापाकल, कुएंआदि का) पीना चाहिये, बोतलबंद (फ्रिज) पानी बासी और अनेक रोगों के कारण होते हैं।

32- नीबू गंदे पानी के रोग (यकृत, टाइफाइड, दस्त, पेट के रोग) तथा हैजा से बचाता है।

33- चोकर खाने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए सदैव गेहूं मोटा ही पिसवाना चाहिए।

34- फल, मीठा और घी या तेल से बने पदार्थ खाकर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए।

35- भोजन पकने के 48 मिनट के

अन्दर खा लेना चाहिए। उसके पश्चात् उसकी पोषकता कम होने लगती है। 12 घण्टे के बाद पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहता है।। 

36- मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने से पोषकता 100%, कांसे के बर्तन में 97%, पीतल के बर्तन में 93%, अल्युमिनियम के बर्तन और प्रेशर कुकर में 7-13% ही बचते हैं।

37- गेहूँ का आटा 15 दिनों पुराना और चना, ज्वार, बाजरा, मक्का का आटा 7 दिनों से अधिक पुराना नहीं प्रयोग करना चाहिए।

38- 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मैदा (बिस्कुट, ब्रेड , समोसा आदि) कभी भी नहीं खिलाना चाहिए।

39- खाने के लिए सेंधा नमक सर्वश्रेष्ठ होता है उसके बाद काला नमक का स्थान आता है। सफेद नमक जहर के समान होता है।

40- जल जाने पर आलू का रस, हल्दी, शहद, घृतकुमारी में से कुछ भी लगाने पर जलन ठीक हो जाती है और फफोले नहीं पड़ते।

41- सरसों, तिल,मूंगफली , सुरजमुखी या नारियल का कच्ची घानी का तेल और देशी घी ही खाना चाहिए है। रिफाइंड तेल और

वनस्पति घी (डालडा) जहर होता है।

42- पैर के अंगूठे के नाखूनों को सरसों तेल से भिगोने से आँखों की खुजली लाली और जलन ठीक हो जाती है।

43- खाने का चूना 70 रोगों को ठीक करता है।

44- चोट, सूजन, दर्द, घाव, फोड़ा होने पर उस पर 5-20 मिनट तक चुम्बक रखने से जल्दी ठीक होता है। हड्डी टूटने पर चुम्बक का प्रयोग करने से आधे से भी कम समय में ठीक होती है।

45- मीठे में मिश्री, गुड़, शहद, देशी(कच्ची) चीनी का प्रयोग करना चाहिए सफेद चीनी जहर होता है।

46- कुत्ता काटने पर हल्दी लगाना चाहिए।

47-बर्तन मिटटी के ही प्रयोग करने चाहिए।

48- टूथपेस्ट और ब्रश के स्थान पर दातून और मंजन करना चाहिए दाँत मजबूत रहेंगे।

(आँखों के रोग में दातून नहीं करना चाहिए)

49- यदि सम्भव हो तो सूर्यास्त के पश्चात् न तो पढ़ें और लिखने का काम तो न ही करें तो अच्छा है।

50- निरोग रहने के लिए अच्छी नींद

कैसे पाएं डिप्रेशन की मानसिक समस्या से छुटकारा


डिप्रेशन एक मानसिक समस्या है लेकिन यह मरीज को शारीरिक रूप से भी प्रभावित करती है जैसे थकावट, दुबलापन या मोटापा, हार्ट डिसीज़, सर दर्द, अपचन इत्यादि। इसी कारण कई बार मरीज इन शारीरिक लक्षणों का ईलाज करवाने के लिए भटकते है लेकिन इन लक्षणों की जड़ों में छुपे डिप्रेशन पर ध्यान नहीं जाता। 

 लक्षण:

दिन भर और खासकर सुबह के समय उदासी.

लगभग हर दिन थकावट और कमजोरी महसूस करना।

स्वयं को अयोग्य या दोषी मानना।

एकाग्र रहने तथा फैसले लेने में कठिनाई होना।

लगभग हर रोज़ बहुत अधिक या बहुत कम सोना।

सारी गतिविधियों में नीरसता आना।

बार-बार मृत्यु या आत्महत्या के विचार आना।

बैचैनी या आलस्य महसूस होना।

अचानक से वजन बढ़ना या कम होना।

अगर आपके किसी परिचित या आपको डिप्रेशन है तो आप इस तरह उस व्यक्ति और अपनी सहायता कर सकते है-

. खुद को सदा व्यस्त रखे

  _खुद को हलके फुल्के कार्यो में बिजी कर दे जिससे आपका मनोरंजन हो और आपको ख़ुशी मिले।

 _जैसे की कोई स्पोर्ट गेम ,अपनी रूचि के अनुसार धार्मिक ,सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा ले।

.अपना लक्ष्य निर्धारित करे।

 _डिप्रेशन का एक कारण सही वक्त पर लक्ष्य पुरे न होना भी होता है। इससे बचने के लिए अपना लक्ष्य निर्धारित करे, बड़े बड़े कार्यो को छोटे छोटे हिस्से में बांटे , कुछ काम की प्राथमिकता निर्धारित करे और ऐसा काम करे जिसकी आपमे पूरी क्षमता हो।

.सामाजिक रूप से सक्रिय हो।

 आपके करीबी लोगो के साथ समय बिताये।  किसी भरोसेमंद दोस्त या रिश्तेदार को अपनी गुप्त बातें बताये।

अपने आप को सबसे अलग करने की कोशिश न करे और दुसरो को अपनी हेल्प करने दे।

  राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास करने से सकारात्मक विचारों को बल मिलता है। पॉवर फूल मेडिटेशन से मन शांत रहता है और मेन्टल स्टेट मेन्टेन रहती है।

हो सके तो थोड़ी देर खुली हवा में टहले । प्रकृति का प्रभाव हमारे मन और तन दोनों पर पड़ता हैं।

ऎसे समय में घर वालो को पूरा सहयोग देना चाहिए। सपोर्ट ,लव और केअर करे।

.पॉजिटिव विचार

 हम पॉवरफुल मेडिटेशन और स्ट्रांग विल पॉवर से इस समस्या का समाधान कर सकते है।

 डिप्रेशन हमारी खुद की क्रिएशन जिस दिन हम ये ध्यान देने लगेंगे की मुझे इसे खुद से दूर करना है |

 


मुझे बहुत एक्टिव बनना है , मुझमे कोई कमी नहीं है, मैं बहुत परफेक्ट हूँ, मेरे अंदर ऐसी कोई कमी नहीं है। में हर जगह स्टैंड कर सकता हूँ।

 तब इस तरह की पॉजिटिव थॉट से हम अपने डिप्रेशन को ख़त्म कर सकते हैं।  क्यों , क्योंकि ये नेगेटिव चीज़े जो व्यक्ति सोच रहा होता है हालांकि होता ऐसा कुछ भी नहीं है ऐसी ऐसी बातों को सोच रहा होता है जिसका दूर दूर तक कोई कनेक्शन नहीं होता । 

हमें ऐसा लगता है की जैसा हम सोच रहे होते हैं वैसा होने वाला है तो बिलकुल वैसा होता है। क्योंकि जब बहुत बुरा सोचते हैं तो हमारे साथ बुरा होता है क्योंकि जो हम सोचते वही वापिस होता हैं । _ 

व्यक्ति पहले से ही अनुमान कर लेता है की ऐसा होने वाला है और होंगे भी तो कैसे किस मार्ग में तो वो हमेशा नेगेटिव में ही लेता है। वो अगर सोचता भी है पहले से किसी चीज़ को सोचता भी तो नेगेटिव ही सोचता है। और फिर वो REALITY में कन्वर्ट होती हैं तो वो डिप्रेशन में चला जाता है और कहता मुझे पता था ये चीज़े ऐसे ही होने वाली थी।

 सबसे पहले तो उसे खुद से प्यार करना होगा। खुद पर विश्वास करना होगा की उसके अंदर ऐसी एनर्जी है ऐसी शक्ति है जिसके द्वारा वो हर तरह की परेशानी से मुक्त हो सकता है!

  घर में भी अगर इस तरह का नेगेटिव वातावरण है तब जो डिप्रेशन से जुड़ा व्यक्ति है डिप्रेशन से कभी मुक्त नहीं हो सकता।

 क्योंकि लोग कहते है जो इंसान परेशान होता है वो इंसान कोई ऐसे हैप्पीएस्ट पर्सन से मिले जो बहुत ज्यादा खुशमिजाज़ हो, बहुत ज्यादा जॉय नेचर का हो, बहुत ज्यादा खुशदिल हो, जिसको हँसने की हमेशा आदत हो, हमेशा मुस्कुराता हो। तो हो सकता है की व्यक्ति अगर 5 मिनिट भी उस व्यक्ति के संपर्क में आए तो 24 घंटे में 5 मिनिट वो उस व्यक्ति के साथ हँसेगा ज़रूर।

 डिप्रेशन वाला व्यक्ति ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में आता है जो बहुत पॉजिटिव है ,उसको उसकी वाइब्रेशन मिलती है 5 मिनिट खुश होता है और उसको अच्छा फील होता है। क्योंकि पॉजिटिव एनर्जी की यही ख़ास बात है।

बिना दवाई के ठीक करें थायरॉइड



थायरॉइड गले में पाई जाने वाली तितली के आकार की एक ग्रंथि होती है। ये सांस की नली की ऊपर होती है। यह मानव शरीर में पाई जाने वाली सबसे बड़ी अतस्रावी ग्रंथियों में से एक होती है। इसी थायरॉइड ग्रंथि में गड़बड़ी आने से ही Thyroid से संबंधित रोग होते हैं। Thyroid ग्लैंड थ्योरिकसिन नाम का हार्मोन बनाती है। ये हार्मोन हमारे शरीर के मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है और बॉडी में सेल्स को नियंत्रित करने का काम करता है। थायरॉइड हार्मोन हमारे शरीर की सभी प्रक्रियाओं की गति को नियंत्रित करता है। शरीर की चयापचय क्रिया में भी Thyroid ग्रंथि खास योगदान होता है। इस बीमारी में धनिये का पानी पी सकते हैं। धनिये के पानी को बनाने के लिए शाम को तांबे के बर्तन में पानी लेकर उसमें 1( एक ) से 2 चम्मच धनिये को भिगो दें और सुबह इसे अच्छी तरह से मसल कर छान कर धीरे-धीरे पीने से फायदा होगा।

लक्षण:

घबराहट

अनिद्रा

चिड़चिड़ापन

हाथों का काँपना

अधिक पसीना आना


दिल की धड़कन बढ़ना

बालों का पतला होना एवं झड़ना

मांसपेशियों में कमजोरी एवं दर्द रहना

अत्यधिक भूख लगना

वजन का घटना

महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता

उपाय:

- इन रोगियों को नियमित रूप से 1 गिलास दूध का सेवन करना चाहिए। 

-इन रोगियों को अगर फल खाने हैं तो आम, शहतूत, तरबूज़ और खरबूजे  का सेवन कर सकते 

- खाने में दालचीनी, अदरक  का प्रयोग बढ़ा देना चाहिए।

- इन रोगियों को खाना पकाने के लिए नारियल तेल का प्रयोग करना चाहिए। 

-इन रोगियों को लघु और सुपाच्य भोजन करना चाहिए, खिचड़ी का प्रयोग कर सकते हैं।

- ऐसे रोगियों को सुबह 10 से 15 मिनट गुनगुनी धूप भी लेनी चाहिए

- उन चीज़ों का परहेज करना चाहिए जिसे पचाने में परेशानी होती हो।

-. बहुत ज़्यादा ठंडे, खुष्क पदार्थो का सेवन नहीं करना है ।

-. बहुत ज़्यादा मिर्च-मसालेदार, तैलीय, खट्टे पदार्थों का प्रयोग नहीं करना है।

-बहुत ज़्यादा शारीरिक परिश्रम नहीं करना चाहिये ।

रोजाना योग करना

वर्कआउट या शारीरिक श्रम

सेब का सेवन

रात में हल्दी का दूध पीना

धूप में बैठना

नारियल तेल से बना खाना खाना

पर्याप्त मात्रा में नींद लेना

ज्यादा फलों एवं सब्जियों को भोजन में शामिल करें

हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन

पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करें

अनार के यह गुण नहीं जानते होंगे आप

 


अनार अथवा दाड़िम (वानस्पतिक नाम-प्यूनिका ग्रेनेटम)[1] एक फल हैं, यह कुसुम्बी/लाल रंग का होता है। इसमें सैकड़ों लाल रंग के छोटे पर रसीले दाने होते हैं। अनार विश्व के गर्म देशों में पाया जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण फल है। भारत में अनार के पेड़ अधिकतर महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात में पाए जाते हैं। सबसे पहले अनार के बारे में रोमन भाषियों ने पता लगाया था। रोम के निवासी अनार को ज्यादा बीज वाला सेब कहते थे। भारत में अनार को कई नामों में जाना जाता है। बांग्ला भाषा में अनार को बेदाना कहते हैं, हिन्दी में अनार व दाड़िम, संस्कृत में दाडिम और तमिल में मादुलई कहा जाता है। अनार के पेड़ सुंदर व छोटे आकार के होते हैं। इस पेड़ पर फल आने से पहले लाल रंग का बडा फूल लगता है, जो हरी पत्तियों के साथ बहुत ही सुन्दर दिखता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह फल लगभग ३००० वर्ष पुराना है। यहूदी धर्म में अनार को जननक्षमता का सूचक माना जाता है, जबकि भारत में अनार अपने स्वास्थ्य सम्ब्न्धी गुण के कारण लोकप्रिय है।


एक अनार सौ बीमारी का काम तमाम :
                                                           

1) बुढापा आने से बचाए :- बहुत कम लोग ही इस तथ्य से परिचित हैं कि अनार एंटीऑक्सीडेंट का बहुत ही अच्छा स्रोत है। इसलिए यह शरीर की कोशिकाओं को फ्री रेडिकल्स से बचाता है, जिससे आप वक्त से पहले बूढ़े नहीं दिखते। 

  2) प्राकृतिक ब्लड थीनर :- खून दो तरह से जमते हैं। पहला तो कटने या जलने की स्थिति में खून जमता है, जिससे खून का बहाव रुक जाता है। वहीं दूसरे तरह का खून आंतरिक रूप से जमता है, जो बहुत ही खतरनाक होता है। अनार में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट गुण खून के लिए वही काम करता है, जो पेट के लिए थीनर करता है। यह शरीर में खून को जमने या थक्का बनने से रोकता है। 

  3) एथेरॉसक्लेरॉसिस से रोकता है :- बढ़ती उम्र और गलत खानपान से रक्तवाहिनी की दीवार कोलेस्ट्रोल व अन्य चीजों से कठोर हो जाती है, जिससे रक्त के बहाव में अवरोध पैदा होता है। अनार का एंटीऑक्सीडेंट गुण कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन और कोलेस्ट्रोल को ऑक्सीडाइजिंग से रोकता है। 

  4) अनार करता है ऑक्सीजन मास्क की तरह काम :- साधारण शब्दों में कहें तो अनार का जूस खून में ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाता है। इसका एंटीऑक्सीडेंट कोलेस्ट्रोल को कम करता है, फ्री रेडिकल्स से बचाता है और खून का थक्का बनने से रोकता है। 

  5) गठिया रोग से रोकथाम :- अनार गठिया रोग से पीड़ित व्यक्ति के कार्टिलेग को नुकसान पहुंचने से बचाता है। यह फल कार्टिलेग को नष्ट करने वाले एंजाइम से लड़ता है और जलन और सूजन से भी सुरक्षा प्रदान कराता है।

अनार का जूस आंतों की सूजन को कम करके पाचन में सुधार कर सकता है। हालांकि दस्त रोगियों को अनार का जूस का सेवन न करने की सलाह दी जाती है। गठिया: अनार का जूस जोड़ों के दर्द, अन्य प्रकार की गठिया के दर्द व सूजन में फायदेमंद होता है। दिल की बीमारी - अनार का जूस दिल की बीमारी के लिए फायदेमंद है

ऐसे करें गॉलब्लेडर में पथरी का इलाज



क्या होता है गॉल ब्लैडर पथरी 

पित्ताशय की थैली ऊपरी दाहिने पेट में लीवर के नीचे एक छोटा सा नाशपति के आकार का अंग है। इसका काम होता है पित्त को गाढ़ा करना। यह डाइजेशन में बहुत मदद करता है। यह लीवर में बनता है गॉल ब्लैडर में स्टोर होता है और फिर इंटेस्टाइन में जाकर खाने की डाइजेशन में मदद करता है।

पित्त की पथरी बनने के क्या कारण हैं?

यदि पित्ताशय में मौजूद पित्त में अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल एंजाइम नहीं घुला पाता है तो यह ठोस बन कर पत्थर का आकार ले लेता है। इसके अलावा अगर पित्त में बहुत अधिक बिलीरुबिन होता है, जैसे यकृत के सिरोसिस या कुछ रक्त विकारों में तो यह पत्थर के गठन का कारक होता है। अंत में, यदि पित्ताशय अच्छी तरह से खाली नहीं होता है, तो इससे ठहराव और पत्थर का गठन होता है।



गाल ब्लैडर स्टोन के लक्षण क्या है?

                                                        

बदहजमी

खट्टी डकार

उल्टी

बहुत ज़्यादा पसीना आना

पेट फुलाना

एसिडिटी

पेट में भारीपन

गॉलब्लेडर स्टोन / पित्तशमरी/ पित्ताशय की पथरी के कुछ इलाज:

पित्ताशय में कोलेस्ट्रोल, बिलीरुबिन और पित्त लवणों का जमाव होने लगता है या सख्त होने लगता है। तब ये धीरे-धीरे वे कठोर हो जाती हैं तथा पित्ताशय के अंदर सिस्ट या पत्थर का रूप ले लेती है।

लक्षण:- रोगी को असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है और साथ में खाना पचने में भी दिक्कत आने लगती है। बदहजमी,खट्टी डकार,पेट फुलाना, एसिडिटी, पेट में भारीपन, उल्टी, पसीना आना जैसे लक्षण नजर आते हैं।

उपचार:- 1) ताम्र भस्म 2gm, शंखबटी 30gm, काला जीरा 20gm, काला नमक 20 gm, बायविडंग 15gm, त्रिवंग भस्म 5gm, कुटकी 25gm, सिंघपर्णी के पत्ते सभी को कपड़छान चुंर्ण कर सुबह शाम 1gm - 1gm चुंर्ण गुनगुने जल से सेवन करें।

2) पुनर्नवा क्षार 1gm, तालमखाना क्षार 1gm व कासनी क्षार 1gm को 60ml आसुत जल में मिलाकर रख लें व आधे कप पानी मे 1ml मिलाकर भोजन के बाद दिन में 2 बार सेवन करें।

3) तिल क्षार 1gm व मकोय क्षार 1gm को 60ml आसुत जल में मिलाकर रख लें व आधे कप पानी मे 1ml मिलाकर भोजन से पहिले दिन में 2 बार सेवन करें।

परहेज:- प्रोटीन युक्त भोजन, घी, पनीर, चावल इत्यादि का सेवन बन्द कर दें।

किडनी या डायलिसिस के मरीज इसे बनाकर सेवन न करें।

गॉल ब्लैडर स्टोन से निजात पाने के लिए आयुर्वेदिक और  घरेलू उपाय

पत्थरचट्टा

पत्थरचट्टा का पौधा आसानी से कही पर भी मिल जाता है। जिसका सेवन करके आप आसानी से किडनी के स्टोन के साथ गॉल ब्लैडर के स्टोन से निजात पा सकते हैं। इसके लिए पत्थर चट्टा का 3-3 पत्तों दिन में 3 बार चबा कर खा लें।

कुलथ की दाल

गॉल ब्लैडर और किडनी के स्टोन से छुटकारा पाने के लिए कुलथ की दाल काफी फायदेमंद है। इसके लिए रात को पानी में कुलथ की दाल भिगो दें। सुबह इसका काढ़ा या फिर दाल बनाकर खा लें।