पीपल को संस्कृत भाषा में पिप्पल:, अश्वत्थ:, हिन्दी में पीपली, गुजराती में पीप्पलो और पीपुलजरी व बंगाली में अश्वत्थ,असुद और असवट, पंजाबी में भोर और पीपल जैसे कई नामो से जाना जाता है।
परिचय — पीपल का पेड किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इस वृक्ष का विस्तार, फैलाव तथा ऊंचाई व्यापक और विशाल होती है। यह सौ फुट से भी ऊंचा पाया जाता है। हजारों पशु और मनुष्य इसकी छाया के नीचे विश्राम कर सकते हैं। पौराणिक काल से ही पीपल को पवित्र और पूज्य मानने की आस्था रही है। इसे देववृक्ष यानी देवताओं का वृक्ष माना गया है। यह किसी अंधविश्वास या आडंबर के चलते नहीं है बल्कि इसके अनेक दिव्य गुणों के चलते ही है।
पीपल को प्राणवायु यानी ऑक्सीजन को शुद्ध करने वाले वृक्षों में सर्वोत्तम माना जा सकता है। पीपल फेफडों के रोग जैसे तपेदिक, अस्थमा, खांसी तथा कुष्ठ, प्लेग, भगन्दर आदि रोगों पर बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है। संपूर्ण भारतवर्ष में पीपल से लोगों की आस्था जुडी है। श्रद्धा, आस्था, विश्वास और भक्ति का यह पेड वास्तव में बहुत शक्ति रखता है। पवित्र और पूज्य पीपल का पेड बहुत परोपकारी गुणों से भरा होता है।
पीपल का वृक्ष रक्तपित्त और कफ के रोगों को दूर करने वाला होता है। पीपल की छाया बहुत शीतल और सुखद होती है। इसके पत्ते कोमल, चिकने और हरे रंग के होते हैं जो आंखों को बहुत सुहावने लगते हैं। औषधि के रूप में इसके पत्र, त्वक्, फल , बीज और दुग्ध व लकडी आदि इसका प्रत्येक अंग और अंश हितकारी लाभकारी और गुणकारी होता है। पीपल को सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय माना जा सकता है।
फलों का गुण — पीपल वृक्ष के पके हुए फल ह्वदय रोगों को शीतलता और शांति देने वाले होते हैं। इसके साथ ही पित्त, रक्त और कफ के दोष को दूर करने वाले गुण भी इनमें निहित हैं। दाह, वमन, शोथ, अरूचि आदि रोगों में यह रामबाण है। पीपल का फल पाचक, आनुलोमिक, संकोच, विकास -प्रतिबंधक और रक्त शोषक है। पीपल के सूखे फल दमे के रोग को दूर करने में काफी लाभकारी साबित हुआ है। महिलाओं में बांझपन को दूर करने और सन्तानोत्पत्ति में इसके फलों का सफल प्रयोग किया गया है।
पीपल का दूध — पीपल का दूध अति शीघ्र रक्तशोधक , वेदनानाशक, शोषहर होता है। दूध का रंग सफेद होता है। पीपल का दूध आंखों के अनेक रोगों को दूर करता है। पीपल के पत्ते या टहनी तोडने से जो दूध निकलता है उसे थोडी मात्रा में प्रतिदिन सलाई से लगाने पर आँखों के रोग जैसे पानी आना, मल बहना, फोला, आंखों में दर्द और आंखों की लाली आदि रोगों में आराम मिलता है।
पीपल की छाल — पीपल की छाल स्तम्भक, रक्त संग्राहक और पौष्टिक होती है। सुजाक में पीपल की छाल का उपयोग किया जाता है। इसके छाल के अंदर फोडों को पकाने के तत्व भी होते हैं। इसकी छाल के शीत निर्यास का इस्तेमाल गीली खुजली को दूर करने में भी किया जाता है। पीपल की छाल के चूर्ण का मरहम एक शोषक वस्तु के समान सूजन पर लगाया जाता है। इसकी ताजा जलाई हुई छाल की राख को पानी में घोलकर और उसके निथरे हुए जल को पिलाने से भयंकर हिचकी भी रूक जाती है। इसके छाल का चूर्ण भगन्दर रोग को भगाने में किया जाता है। श्रीलंका में तो इसके छाल का रस दांत मसूडों की दर्द को दूर करने में कुल्ले के रूप में किया जाता है। यूनानी मत में पीपल की छाल को कब्ज करने वाली माना गया है। इसकी ताजा छाल को जल में भिगोकर कमर में बांघने से ताकत आती है। यूनानी चिकित्सा में इसके छाल को वीर्य वर्धक माना गया है। इसका अर्क खून को साफ करता है। इसकी छाल पीने से पेशाब की जलन,पुराना सुजाक और हडडी की जलन मिटने की बात कही गयी है।
पीपल के पत्ते — पीपल के पत्ते आनुलोमिक होते हैं।पीपल के पत्तों को गर्म करके सूजन पर बाधने से कुछ ही दिनों में सूजन उतर आता है। खांसी के रोग में पीपल के पत्तों को छाया में सुखाकर कूट-छानकर समान भागकर मिसरी मिला लें तथा कीकर का गोंद मिलाकर चने के आकार समान गोली बना ले। दिनभर में दो से तीन गोलियां कुछ दिनों तक चूसें , खांसी में आराम मिलेगा।
पीपल की टहनियां — पीपल की टहनियों में से दातुन बना लें। प्रतिदिन पीपल का दातुन करने से लाभ होता है। यदि आप पित्त प्रकृति के हैं तो यह दातुन आपको विशेषकर लाभकारी होगा। पीपल के दातुन से दांतों के रोगों जैसे दांतों में कीडा लगना, मसूडों में सूजन, पीप या खून निकलना,दांतों के पीलापन,दांत हिलना आदि में लाभ देता है। पीपल का दातुन मुंह की दुर्गध को दूर करता है और साथ ही साथ आंखों की रोशनी भी बढती है।