पीपल का वृक्ष हमारी आस्था का प्रतीक और पूजनीय है। इसमें अनेक औषधीय गुण विद्यमान हैं। किसी भी रोग में पीपल के उपयोग से पूर्व किसी आयुर्वेदाचार्य या विशेषज्ञ से सलाह के बाद ही इसका उपयोग करें। भारतीय ग्रंथों एवं उपनिषदों में ऎसे बहुत से वृक्ष हैं, जो पवित्र और पूजनीय माने जाते हैं।
इनकी पूजा श्रद्धा से की जाती है। इन वृक्षों में भी कुछ की पूजा गौणरूप से होती है और कुछ केवल पवित्र ही माने जाते हैं। प्राचीनकाल में जब लोगों का जीवन ही वृक्षों पर निर्भर था, तब वे वृक्षों का बहुत सम्मान करते थे, परंतु जब मनुष्य ने अपना बसेरा ईट-पत्थरों से बने घरों को बना लिया तब से वृक्षों के सम्मान और महत्व को हम भूलते जा रहे हैं। हमें कभी भी वृक्षों या वनस्पतियों की उपयोगिता नहीं भूलना चाहिए। यदि हम भूलते हैं तो यह हमारी गलती होगी।
भारतीय ग्रंथों में यज्ञों में समिधा के निमित्त पीपल, बरगद, गूलर और पाकर वृक्षों की काष्ठ को पवित्र माना गया है और कहा गया है ये चारों वृक्ष सूर्य की रश्मियों के घर हैं। इनमें पीपल सबसे पवित्र माना जाता है। इसकी सर्वाधिक पूजा होती है। क्योंकि इसके जड़ से लेकर पत्र तक में अनेक औषधीय गुण हैं। इसीलिए हमारे पूर्वज-ऋषियों ने उन गुणों को पहचान कर आम लोगों को समझाने के लिए उन्हीं की भाषा में कहा था "इन वृक्षों में देवताओं का वास है।" इन्हें कभी नष्ट न किया जाए। यह ब्रम्हा, विष्णु एवं महेश का एकीभूत रू प है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने "अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम्" कहकर पीपल को अपना स्वरूप बताया है।
पीपल के वृक्षों में अनेक औषधीय गुण हैं। जो गुणी होता है, लोग उसका आदर करते ही हैं। तुलसी का पौधा गुणों का भंडार है। लोग उसे पूजते हैं। पीपल की लकड़ी, पत्तियों के डंठल, हरे पत्ते एवं सूखी पत्तियां, सभी गुणकारी हैं और उनका उपयोग रोगों के निवारण के हेतु किस प्रकार किया जा सकता है देखें-
-पीलिया : पीलिया के रोगी को पीपल की नर्म टहनी (जो की पेंसिल जैसी पतली हो) के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर माला बना लें। यह माला पीलिया रोग के रोगी को एक सप्ताह धारण करवाने से पीलिया नष्ट हो जाता है।
-रतौंधी : बहुत से लोगों को रात में दिखाई नहीं पड़ता। शाम का झुट-पुटा फैलते ही आंखों के आगे अंधियारा सा छा जाता है। इसकी सहज औषध है पीपल। पीपल की लकड़ी का एक टुकड़ा लेकर गोमूत्र के साथ उसे शिला पर पीसें। इसका अंजन दो-चार दिन आंखों में लगाने से रतौंधी में लाभ होता है।
-मलेरिया : पीपल की टहनी का दातुन कई दिनों तक करने से तथा उसको चूसने से मलेरिया बुखार उतर जाता है।
-कान दर्द : पीपल की ताजी हरी पत्तियों को निचोड़कर उसका रस कान में डालने से कान दर्द दूर होता है। कुछ समय तक इसके नियमित सेवन से कान का बहरापन भी जाता रहता है।
-खांसी और दमा : पीपल के सूखे पत्ते को खूब कूटें। जब पाउडर सा बन जाए, तब उसे कपड़े से छान लें। लगभग 5 ग्राम चूर्ण को दो चम्मच मधु मिलाकर एक महीना सुबह चाटने से दमा और खांसी में लाभ होता है।
-सर्दी और सिरदर्द : सर्दी के सिरदर्द के लिए सिर्फ पीपल की दो-चार कोमल पत्तियों को चूसें। दो-तीन बार ऎसा करने से सर्दी जुकाम में लाभ होना संभव है। उपचार के लिए इसके उपयोग से पूर्व किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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