#Millets #मिलेट्स (सिरिधान्य) क्या है और क्या हैं इन्हें खाने के लाभ, पढ़िए पूरी जानकारी


मिलेट एक प्रकार का प्राचीन अनाज है जो दो तरह के अनाजों से बनता है एक तो मोटे अनाज वाला होता है जो Poaceae परिवार के अंतर्गत आता है, और दूसरा तरह छोटे दानों वाला अनाज (Millets in Hindi) होता है जो भी Poaceae परिवार से सम्बंधित होता है। अधिकांश लोगों को मिलेट से बाजरे का संबंध याद आता है, जो मिलेट में सबसे ज्यादा लोकप्रिय होने के कारण होता है।

यह भारत, नाइजीरिया और अन्य एशियाई और अफ्रीकी देशों जैसे देशों में उगाया जाता है यह एक छोटा, गोल और साबुत अनाज है जिसे बहुत कम पानी में उगाया जा सकता है मोटे अनाज भी रक्तचाप को कम कर सकते हैं और गैस्ट्रिक अल्सर और पेट के कैंसर के खतरे को कम कर सकते हैं बाजरा कब्ज, सूजन और मोटापे को कम करने में भी मदद कर सकता है।

बाजरा फाइबर, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम और फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जो इसे एक संपूर्ण अनाज बनाता है जो विभिन्न तरीकों से आपके स्वास्थ्य को लाभ पहुंचा सकता है।

भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समर्थन से 72 देशों के सहयोग से 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में घोषित किया है। इस अवसर पर दुनिया भर में कई आयोजन हो रहे हैं जिनमें मोटे अनाजों से जुड़े विषयों पर विस्तृत चर्चा हो रही है। भारत में भी इस अवसर को ध्यान में रखते हुए कई तैयारियां चल रही हैं।

अधिकतर राज्य सरकारें किसानों को मोटे अनाज उगाने के लिए प्रेरित कर रही हैं और साथ ही लोगों को थाली तक इसे पहुंचाने के लिए भी जागरूकता फैलाई जा रही है। इसका मुख्य उद्देश्य है लोगों को मिलेट जैसे पोषक अनाजों के बारे में जागरूक करना, खासतौर पर शहरों में जहां गेहूं और चावल की प्रचलनता ज्यादा होती है।

इस चुनौतीपूर्ण काम में थालियों तक 10 प्रकार के पोषक अनाजों को पहुंचाना एक महत्वपूर्ण कदम है। इसलिए, (Millets in Hindi) मिलेट के प्रोसेस्ड फूड उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन उत्पादों को बनाने के लिए भारत में कई संगठनों और कंपनियों ने काम शुरू किया है। इनमें से कुछ उदाहरण हैं – सोलरी, प्रथम दाना, इंडियन मिलेट अंडर्सटैंडिंग एंड डेवलपमेंट सोसाइटी (IMAD), आदि। इन संगठनों द्वारा मिलेट से बने प्रोसेस्ड फूड उत्पादों का विस्तार किया जा रहा है ताकि इसे लोगों तक आसानी से पहुंचाया जा सके।

इसके साथ ही, सरकार भी इस मुहीम में अहम भूमिका निभा रही है। कुछ राज्यों में मिलेट की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है और सरकार उन किसानों को भी सहायता प्रदान कर रही है जो मिलेट की खेती करते हैं इसके साथ ही, सरकार ने भी कुछ सुविधाएं प्रदान की हैं जैसे कि उत्पादन और परिपक्वता अनुदान आदि जिससे कि मिलेट से बने उत्पादों का विकास और उन्हें विश्व भर के बाजार में प्रवेश मिल सके।

इस तरह से, भारत अपनी ग्रामीण क्षेत्रों में मिलेट की खेती को बढ़ावा देने और उससे बने उत्पादों का विकास कर उन्हें विश्व भर में प्रवेश दिलाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है।

अनाज को तीन श्रेणी में रखा गया है।

Negative Grains : इनका लगातार सेवन करते रहने से भविष्य में कई तरह की बीमारियों की सम्भावना रहती है जैसे-  गेहूं, चावल।

Neutral Grains : ये मोटा अनाज कहलाता है। इनके सेवन से शरीर में न कोई बीमारी होती है और न ही कोई बीमारी हो तो वह ठीक होती है। यह शरीर को स्वस्थ रखता है ये अनाज ग्लूटेन मुक्त होते हैं जैसे- बाजरा, ज्वार रागी और प्रोसो।

Positive Grains : पॉजिटिव ग्रेन्स के अंतर्गत छोटे अनाज आते हैं। इन्हें सिरिधान्य भी कहा जाता है जैसे- कंगनी, सामा, सनवा, कोदो और छोटी कंगनी

Neutral grains और positive grains को संयुक्त रूप से मिलेट कहा जाता है। अब हम आगे मिलेट्स के प्रकार (Types of Millets in Hindi) के बारे में बात करेंगे।


पॉजिटिव मिलेट क्या है | What is Positive Millet in Hindi ?

पॉजिटिव मिलेट उन अनाज को कहा जाता है जो पॉजिटिव ग्रेन्स के अंतर्गत आते हैं। इन्हें सिरिधान्य भी कहा जाता है। सभी पॉजिटिव मिलेट पोएसी फैमिली के अंतर्गत आते हैं। ये अनाज कई प्रकार की बीमारियों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं। ये अनाज आकार में बहुत छोटे होते हैं। पॉजिटिव मिलेटस फाइबर से भरपूर होते हैं। इन्हें पकाने से पहले 6 से 8 घंटे पानी में भिगोकर रखना होता है ताकि उनके फाइबर नरम हो सके। इन मिलेट्स को मिक्स करके नहीं पकाया जाता पॉजिटिव मिलेट के अंतर्गत पांच मिलेट आते हैं-

1. Foxtail Millet ( कंगनी)

2. Little Millet ( सामा, कुटकी)

3. Barnyard Millet ( सांवा, सनवा)

4. Kodo Millet ( कोदो)

5. Browntop Millet (छोटी कंगनी हरी कंगनी )


 विभिन्न प्रकार के मिलेटस | Different Types of Millets in Hindi | Millet in hindi name

यहाँ 9 तरह के पाए जाने वाले मिलेटस (9 Types of Millets in Hindi) के बारे में बताया गया है जिनको Siridhanya (सिरिधान्य) भी कहते हैं


1. ‘पुनर्वा’ बाजरा (Proso Millet) 

2. ज्वार (Sorghum Millet)

3. बाजरा  (Pearl Millet)

4. रागी (Finger Millet)

5. सांवा या सनवा बाजरा  (Barnyard Millet)

6. कोदो बाजरा (Kodo Millet)

7. छोटी कंगनी हरी कंगनी बाजरा  (Browntop Millet)

 8. कंगनी बाजरा (foxtail millet)

 9. कुटकी बाजरा (Little millet)


पुनर्वा बाजरा (Proso Millet):

पुनर्वा बाजरा (Proso Millet) एक प्रकार का अनाज होता है जो धान के समान उत्पादित किया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम “Panicum miliaceum” है। इसकी खेती दक्षिण एशिया, यूरोप और अफ्रीका में व्यापक रूप से की जाती है प्रोसो बाजरा के दाने छोटे होते हैं और सफ़ेद रंग के होते हैं। इसमें कई पोषक तत्व और विटामिन्स होते हैं जैसे कि प्रोटीन, फाइबर, विटामिन B6, फॉलिक एसिड और नियासिन। इसके अलावा, कुछ मिनरल्स जैसे कि कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम और सोडियम होते हैं।

ज्वार (Sorghum):

ज्वार एक अहम खाद्य फसल है जो कि कई प्रजातियों में उगाई जाती है। इसमें से अधिकतर प्रजातियों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में होता है। हालांकि, sorghum bicolor नाम की एक ज्वार प्रजाति को खाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। ज्वार अनेक पोषक तत्वों से भरपूर होता है जैसे विटामिन बी, मैग्नेशियम, फ्लेवोनॉइड, फेनोलिक एसिड और टैनेन।

बाजरा (Pearl Millet):

बाजरा (Pearl Millet) एक मोटा अनाज है जो सबसे ज्यादा उगाया जाता है और सबसे ज्यादा खाया जाता है। भारत और अफ्रीका में बाजरे की सबसे अधिक खेती होती है। इसे बजरी या कंबू के नाम से भी जाना जाता है। बाजरा को कम सिंचाई वाले इलाकों में भी उगाया जा सकता है और यह उन इलाकों के लिए एक वरदान है बाजरे के दाने को अलग करने के बाद, इसे पशुओं के चारे के रूप में भी उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, बाजरे के फसल अवशेषों से जैव ईंधन बनाया जाता है।

बाजरे में प्रोटीन, फाइबर, अमीनो एसिड जैसे कई न्यूट्रिएंट्स होते हैं जो स्वस्थ आहार के रूप में उपयोगी होते हैं। बाजरे से ब्रेड, दलिया, कुकीज और अन्य विभिन्न व्यंजन बनाए जाते हैं।

रागी (Finger Millet):

रागी (Finger Millet) एक प्रकार का अनाज है रागी को मडुआ और नाचनी नाम से भी जाना जाता है। इसे इंग्लिश में Finger Millet कहते हैं। यह राई के दाने की तरह गोल, गहरे भूरे रंग का चिकना दिखता है। आयरन से भरपूर रागी रेड ब्ल्ड सेल्स में हीमोग्लोबिन का उत्पादन करने के लिए एक जरूरी ट्रेस मिनरल है अन्य अनाजों की तुलना में कम जगह लेता है

इसमें विटामिन सी, कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन और फाइबर जैसे विभिन्न पोषक तत्व मौजूद होते हैं। रागी का सेवन शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। यह हृदय रोगों को रोकता है, मधुमेह को नियंत्रित रखता है, रक्त शर्करा को कम करता है और डाइजेस्टिव सिस्टम को स्वस्थ रखता है।

सांवा या सनवा बाजरा (Barnyard Millet):

बार्नयार्ड को हिंदी में सांवा या सनवा कहते हैं। यह बार्नयार्ड के नाम से ज्यादा प्रचलित है। यह पांच पॉजिटिव मिलेट में से एक है। यह कम समय में तैयार होने वाली फसल है। 45 से 60 दिन के अंदर यह काटने के लिए तैयार हो जाता है। इसमें फाइबर, प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, और आयरन जैसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं। बरनीर्ड बाजरा ग्लूटेन-फ्री होता है, जिससे यह ग्लूटेन एलर्जी वाले लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प होता है।

इसके अलावा बरनीर्ड बाजरा आयुर्वेदिक दवाओं में उपयोग होता है और मधुमेह के मरीजों के लिए एक अच्छी खाद्य पदार्थ होता है। इसके सेवन से वजन घटाने में मदद मिलती है और साथ ही यह शरीर के कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। बरनीर्ड बाजरा की खीर, उपमा, और दोसा जैसी विभिन्न पकवान बनाए जाते हैं।

कोदो बाजरा (Kodo Millet):

कोदो बाजरा (Kodo Millet) एक प्रकार का अनाज है जो पांच पॉजिटिव मिलेट में से एक है। हिंदी में इसे कोदों या केद्रव कहा जाता है। इसका रंग लाल होता है और इसमें औषधीय गुण पाए जाते हैं जो कफ और पित्त दोष को शांत करते हैं। कोदो मिलेट को ब्लड प्यूरीफायर कहा जाता है क्योंकि इससे डायबिटीज, हार्ट डिजीज, कैंसर और पेट संबंधी समस्याओं से निजात पाया जा सकता है। इसका सेवन लिवर और किडनी के लिए भी फायदेमंद होता है और किडनी संबंधी रोगों के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है।

छोटी कंगनी / हरी कंगनी बाजरा  (Browntop Millet):

ब्राउनटॉप एक पॉजिटिव मिलेट है जिसकी ऊपरी परत ब्राउन रंग की होती है, जिसे इसके नाम के रूप में उल्लेख किया जाता है। इसे हरी कंगनी और छोटी कंगनी भी कहा जाता है क्योंकि इसकी धातुओं का रंग हल्का हरा होता है। यह फाइबर और पोषक तत्वों से भरपूर होता है और ग्लूटेन मुक्त होने के कारण इसे अलर्जी वाले लोग भी सेवन कर सकते हैं।

इसके विटामिन ए और विटामिन सी के साथ-साथ विटामिन B 17 भी होता है जो कैंसर से लड़ने में मदद करता है। ब्राउनटॉप के सेवन से डायबिटीज, हृदय रोग और पेट संबंधी समस्याएं ठीक होती हैं। इसका सेवन एडिक्शन से रिकवरी करने में भी मदद करता है।

कंगनी बाजरा (Foxtail Millet):

कंगनी बाजरा, जिसे Foxtail Millet भी कहा जाता है, एक पॉजिटिव मिलेट होता है जो प्राचीन फसलों में से एक है। इसकी खेती दक्षिण भारत में की जाती है। इस छोटे पीले दाने वाले अनाज में फाइबर की मात्रा अच्छी होती है और यह प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत होता है। कंगनी में एमिनो एसिड्स, प्लांट कंपाउंड्स, विटामिन्स और कई मिनरल्स भी पाए जाते हैं। इसके सेवन से शरीर को विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता पूरी होती है और कई फायदों का लाभ मिलता है।

कुटकी बाजरा (Little Millet):

कुटकी बाजरा एक प्रकार का पॉजिटिव मिलेट होता है जो भारत में प्रचलित है। यह एक छोटा दाना होता है जो सफेद रंग का होता है। इसकी खेती भारत में की जाती है और इसे मुख्य रूप से जंगली भूमि में उगाया जाता है। कुटकी बाजरा ग्लूटेन-फ्री होता है जो उन लोगों के लिए उपयोगी होता है जो ग्लूटेन से पीड़ित होते हैं। इसमें फाइबर, प्रोटीन और भी अनेक पोषक तत्व होते हैं जो इसे स्वस्थ खाद्य पदार्थ बनाते हैं। यह विभिन्न बीमारियों से बचाव करने में मदद करता है जैसे कि मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर।

Fatty liver

 Fatty liver is also known as hepatic steatosis. It happens when fat builds up in the liver. Having small amounts of fat in your liver is normal, but too much can become a health problem.

Fatty liver can progress through four stages, including:

Simple fatty liver: There’s a buildup of excess fat in the liver. Simple fatty liver is largely harmless if it doesn’t progress.

Steatohepatitis: In addition to excess fat, there’s also inflammation in the liver.

Fibrosis: Persistent inflammation in the liver has now caused scarring. However, the liver can still generally function normally.

Cirrhosis: Scarring of the liver has become widespread, impairing the liver’s ability to function. This is the most severe stage and is irreversible.

Symptoms

Abdominal swelling (ascites)

Enlarged blood vessels just beneath the skin's surface.

Enlarged spleen.

Red palms.

Yellowing of the skin and eyes (jaundice)

Bay Leaf Benefits

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The bay leaf is an aromatic leaf commonly used in cooking. It can be used whole, either dried or fresh, in which case it is removed from the dish before consumption, or less commonly used in ground form

 bay leaf, also called laurel leaf, leaf of the sweet bay tree (Laurus nobilis), an evergreen of the family Lauraceae, indigenous to countries bordering the Mediterranean. A popular spice used in pickling and marinating and to flavour stews, stuffings, and fish, bay leaves are delicately fragrant but have a bitter taste. They contain approximately 2 percent essential oil, the principal component of which is cineole. The smooth and lustrous dried bay leaves are usually used whole and then removed from the dish after cooking; they are sometimes marketed in powdered form. Bay has been cultivated from ancient times; its leaves constituted the wreaths of laurel that crowned victorious athletes in ancient Greece

USES OF BAY LEAF:


Bay leaf is a leaf that is used in cooking mostly for its aromatic purpose. Bay leaves can be used fresh or dried for their distinctive taste and flavor. There are different types of bay leaves found and all of them are used in different types of cuisines.

It adds minimal calories to your food while boosting the amount of fiber, vitamins, minerals, and antioxidants.

Some notable health benefits of bay leaf include:

Immune system health. Bay leaf is a good source of vitamin A, vitamin B6, and vitamin C. These vitamins are all known to support a healthy immune system.

Bay leaf tea can help ease bouts of upset stomach. The tea is also very aromatic, which can help relieve sinus pressure or stuffy nose.

Reduces type 2 diabetes risk factors. A pair of small studies suggested that taking ground bay leaf capsules or drinking tea brewed from Turkish bay leaf may lower your blood sugar levels. However, one of the studies was small and the other tested bay leaves on healthy volunteers, not people with diabetes. 

Bay leaf is a good source of vitamin A, vitamin C, vitamin B6, calcium, iron, and manganese.

1. Bay leaves can be used either Fresh or dried. They are used in cooking due to their distinctive flavour and cinnamon like fragrance that they impart to the food.

2. In Indian cuisine especially, bay leaves are used to flavor rice dishes like biryanis and pulaos. Here they can either be added to the masala paste with the rice or added to the raw rice to imbibe the flavor while cooking.  

3. Bay leaves form one of the main ingredients for the Indian Spice Powder, Garam Masala, that is mainly used in a lot of Punjabi cooking. 

4. In Indian cuisine, the leaves are also often used whole while tempering for vegetable dishes like subzis or even dals and removed before serving. Some dishes that use bay leaf are Paneer Makhani and Gujarati Dal. 

5. They can also be used to flavor the filling of certain snacks like kachori as they impart a strong flavor to it. 

6. The leaves are often used to flavour soups like tomato soup, or stews that are mostly Mediterranean. 

7. The leaves also flavour classic French dishes such as bouillabaisse and bouillon.

मड़ुआ(रागी)आटे के यह हैं अद्भुत लाभ

 


मडुआ तकरीबन 4000 साल पहले भारत आया और अपने लाजवाब मेडिसिनल वैल्यू के कारण पूरे भारत में उत्पादित किया जाने लगा ! बीते कुछ वर्षों में जबसे अनाज के नाम पर सिर्फ चावल और गेहूं का प्रचलन बढ़ा तब बाजार ने इसे अनदेखा करना शुरू किया । मडुआ के किसान  हतोत्साहित होने लगे और धीरे-धीरे लोग ईसको भूल गए। अब यह विरले पर्व त्योहारों में जैसे जिउतिया के मौके पर  दिखता है। हालांकि  दुनिया आज भी इसके महत्व से अवगत है।

 वियतनाम मे तो इसे बच्चे के जन्म के समय औरतो को दवा के रूप मे दिया जाता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए यह रामबाण है 


ईसे अंग्रेजी में फिंगर मिलेट कहा जाता है और इसका वानस्पतिक नाम इलुसिन कोराकाना है। मड़ुआ की विशेषता यह है कि यह समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई पर भी उगाया जा सकता है और इसमें आयरन एवं अन्य पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में निहित हैं। इसमें सूखे को झेलने की अपार क्षमता है और इसे लंबे समय (करीब 10 साल) तक भंडारित किया जा सकता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि मड़ुआ में कीड़े नहीं लगते। इसलिए सूखा प्रवण क्षेत्रों के लिए मड़ुआ जीवन-रक्षक की भूमिका निभा सकता है। 


मड़ुआ की उत्पत्ति पूर्वी अफ्रीका (इथियोपिया और युगांडा के पर्वतीय क्षेत्र) में हुई थी जो ईसा पूर्व 2000 के दौरान भारत लाया गया। कनाडा स्थित नेशनल रिसर्च काउन्सिल की 1996 की रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीका के प्रारंभिक कृषि से संबंधित पुरातात्विक रिकार्ड्स में मड़ुआ को 5000 वर्ष पहले इथियोपिया में मौजूद होने का प्रमाण मिलता है। यह अफ्रीका के कई हिस्सों में प्रमुख खाद्य अनाज है और पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में लौह युग के प्रारंभ (करीब 1300 ईसा पूर्व) से उगाया जा रहा है।  इथियोपिया में मड़ुआ से शराब भी बनाई जाती है जिसे अराका कहा जाता है।



नेशनल रिसर्च काउन्सिल की 1996 की रिपोर्ट के अनुसार, मड़ुआ की घास मवेशियों के चारे के लिए भी उपयुक्त होता है क्योंकि इसमें करीब 61% सुपाच्य पोषक तत्व पाए जाते हैं। वर्ष 2000 में प्रकाशित पुस्तक पीपुल्स प्लांट्स : ए गाइड टू यूजफुल प्लांट्स ऑफ सदर्न अफ्रीका के लेखक बेन-इरिक वान विक और नाइजल जेरिक के अनुसार, मड़ुआ का इस्तेमाल कुष्ठ और यकृत संबंधी रोगों के उपचार के लिए पारंपरिक औषधि के तौर किया जाता है।


मड़ुआ में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, आयरन और फाइबर पाया जाता है इसलिए यह अन्य अनाजों की तुलना में अधिक ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम है। मड़ुआ के यही गुण इसे नवजात शिशुओं और बुजुर्गों के लिए उपयुक्त खाद्य पदार्थ बनाते हैं।


मड़ुआ से बने खाद्य पदार्थ नवजात शिशुओं और बुजुर्गों के लिए उपयुक्त माना गया है


तमिलनाडु में मड़ुआ को देवी अम्मन (मां काली का एक स्वरूप) का एक पवित्र भोजन माना जाता है। देवी अम्मन से जुड़े हर पर्व-त्योहार में महिलाएं मंदिरों में मड़ुआ का दलिया, जिसे कूझ कहा जाता है, बनाती हैं और गरीबों और जरूरतमंदों में बांटती हैं। कूझ कृषक समुदाय का मुख्य भोजन है जिसे कच्चे प्याज और हरी मिर्च के साथ खाया जाता है। 


उत्तर भारत में महिलाएं अपनी संतानों की लंबी उम्र की कामना को लेकर जितिया नामक व्रत रखती हैं। तीन दिवसीय इस व्रत के आखिरी दिन, जिसे पारण कहा जाता है, मड़ुआ के आटे की रोटी खाकर व्रत तोड़ने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि दो दिनों के व्रत के बाद मड़ुआ की रोटी शरीर में ऊर्जा को जल्दी से लौटा देती है।


नेपाल में मडुआ के आटे की मोटी रोटी बनाई जाती है। मड़ुआ का इस्तेमाल बीयर, जिसे नेपाली भाषा में जांड कहते हैं और शराब जिसे रक्शी के नाम से जाना जाता है, बनाई जाती है। इसका इस्तेमाल उच्च जाति के लोग हिन्दुओं के त्योहारों के दौरान करते हैं।


श्रीलंका में मड़ुआ को कुरक्कन के नाम से जाना जाता है। वहां नारियल के साथ इसकी मोटी रोटी बनाई जाती है और इसे काफी मसालेदार मांस के साथ खाया जाता है। वहां मड़ुआ का सूप भी बनाया जाता है, जिसे करक्कन केंदा के नाम से जाना जाता है। मड़ुआ से बने मीठे खाद्य पदार्थ को हलापे कहा जाता है। 


वियतनाम में मड़ुआ का इस्तेमाल औषधि के तौर पर महिलाओं के प्रसव के दौरान किया जाता है। कई जगहों पर मड़ुआ का इस्तेमाल शराब बनाने के लिए भी किया जाता है। ये खासकर हमोंग अल्पसंख्यक समुदाय का प्रमुख पेय है।

     

औषधीय गुण


मड़ुआ प्रोटीन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत है और यह न सिर्फ मानव शरीर के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्वों की पूर्ति कर सकता है बल्कि कई प्रकार के रोगों से बचाव में भी सहायक है। वर्ष 2005 में अमेरिकन डायबिटीज एसोशिएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार मड़ुआ को अपने दैनिक आहार में शामिल करने वाली आबादी में मधुमेह रोग होने की आशंका बहुत कम होती है। मड़ुआ में चावल और गेहूं के मुकाबले अधिक फाइबर पाया जाता है और यह ग्लूटन मुक्त भी होता है,जिसके कारण यह आंतों से संबंधित रोगों से बचाता है। 


न्यूट्रिशन रिसर्च नामक जर्नल में वर्ष 2010 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, मड़ुआ का सेवन हृदय संबंधी रोगों से बचाव में कारगर है क्योंकि यह खून में प्लाज्मा ट्रायग्लायसराइड्स को कम करता है। वर्ष 1981 में वान रेसबर्ग द्वारा किए गए शोध के अनुसार, मड़ुआ खाने वाली आबादी में खाने की नली के कैंसर होने की संभावना कम हो जाती है।

तेजपत्ता कितना है लाभकारी जान जाईये आप

 


भोजन करते समय अक्सर हमने तेजपत्ते को थाली से बाहर कर दिया होगा....पर जब आप इसके औषधीय मूल्य को जानेगे तो बड़े चाव दे इसका सेवन करेंगे...।

तेजपत्ता को तेजपत्र तेजपान तमालका,तमालपत्र,तेजपात , इन्डियन केसिया आदि आदि नामो से जाना जाता है.।

तेजपत्ता की खेती हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड , जम्मू- कश्मीर , सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश में की जाती है ...... ये हमेशा हरा रहने वाले  #तमाल_वृक्ष के पत्ते हैं ,जो कई सालों तक लगातार उपज देता रहता है ..इस पेड़ को यदि एक बार लगाया गया तो यह 50 से 100 सालों तक उपज देता रहता है ..... #रोपण करने के 6 साल बाद जब इसका पेड़ पूरी तरह से विकसित हो जाता है तो इसकी पत्तियों को इक्कठा कर लिया जाता है ..पत्तियों को इक्कठा करने के बाद इन्हें छाया में सुखाया जाता है ...तब ये पत्तियां उपयोग करने के लिए तैयार हो जाती है ......फसल की कटाई करने का बाद .. इसकी पत्तियों को छाया में सुखाया जाता है ....।

तेज पत्ते का #तेल निकालने के लिए आसवन यंत्र का प्रयोग किया जाता है ... इसकी पत्तियों से हमे 0. 6 % खुशबूदार तेल की प्राप्ति होती है .....इसका तेल भी एक बहुकिमती ओषधि है....।


औषधीय_गुण

तेजपत्ता मधुमेह, अल्ज़ाइमर्स, बांझपन, #गर्भस्त्राव, स्तनवर्धक, खांसी जुकाम , जोड़ो का दर्द, रक्तपित्त, रक्तस्त्राव, दाँतो की सफाई, सर्दी जैसे अनेक रोगो में उपयोगी है.....  तेजपत्ता में दर्दनाशक, एंटी ऑक्सीडेंट गुण हैं...........आयुर्वेद में अनेक गंभीर रोगो में इसके उपयोग किये जाते हैं..... चाय-पत्ती की जगह तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से #सर्दी-जुकाम,छींकें आना ,नाक बहना,जलन ,सिरदर्द आदि में शीघ्र लाभ मिलता है .तेजपात के पत्तों का बारीक चूर्ण सुबह-शाम दांतों पर मलने से #दांतों पर चमक आ जाती है ...... तेजपात के पत्रों को नियमित रूप से चूंसते रहने से #हकलाहट में लाभ होता है .

एक चम्मच तेजपात चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से #खांसी में आराम मिलता है

 *तेजपात के पत्तों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से पेट का फूलना व अतिसार आदि में लाभ होता है . .....कपड़ों के बीच में तेजपात के पत्ते रख दीजिए ,ऊनी,सूती,रेशमी कपडे कीड़ों से बचे रहेंगे...... #अनाजों के बीच में ४-५ पत्ते डाल दीजिए तो अनाज में भी कीड़े नहीं लगेंगे...... उनमें एक दिव्य सुगंध जरूर बस जायेगी।


*अनेक लोगों के मोजों से #दुर्गन्ध आती है ,वे लोग तेजपात का चूर्ण पैर के तलुवों में मल कर मोज़े पहना करें।..... पर इसका मतलब ये नहीं कि आप महीनों तक मोज़े धुलें ही न

*.तेजपात का अपने भोजन में लगातार प्रयोग कीजिए ,आपका ह्रदय मजबूत बना रहेगा ,कभी #हृदय रोग नहीं होंगे....इसके पत्ते को जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है....इसका धुँआ #मिर्गी रोगी के लिए काफी लाभदायक होता है..

तेज पत्ता की तासीर तीक्ष्ण और गर्म होती है। इसे ज्यादातर मशाले के रूप में हर जगह उपयोग किया जाता है लेकिन तेज पत्ता के उपयोग से कई तरह के रोगों का घरेलू इलाज भी किया जाता है क्योंकि इसमें चमत्कारिक औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसे अंग्रेजी में Bay leaf कहा जाता है

तेज पत्ता की चाय से आपका मेटाबॉलिज्म बूस्ट होता है.

इससे शरीर में जो भी एक्सट्रा फैट है वो बर्न हो जाता है.

इस चाय में प्रोटीन और फाइबर भी भरपूर होता है.

चाय में पड़ी दालचीनी से शरीर को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है.

इस चाय को पीने से स्ट्रेस लेवल भी कम हो जाता है और वजन घटाने में भी मदद करती है.

मखाने खाएं तंदरुस्त हो जायें



मखाना (phool makhana) को फॉक्ट नट या कमल का बीज भी कहा जाता है। प्राचीन काल से मखाना को धार्मिक पर्वों में उपवास के समय खाया जाता है। मखाना से मिठाई, नमकीन और खीर भी बनाई जाती है। मखाना पौष्टिकता से भरपूर होता है, क्योंकि इसमें मैग्ननेशियम, पोटाशियम, फाइबर, आयरन, जिंक आदि भरपूर मात्रा में होता है। आयुर्वेद में मखाना के बहुत सारे गुणों के बारे में विस्तार से उल्लेख किया गया है।

 तालाब, झीलों और दलदली क्षेत्र के पानी में उगने वाला मखाना पोषक तत्वों से भरपूर जलीय उत्पाद है। मखाने का इस्तेमाल तरह तरह के व्यंजन बनाने में किया जाता है। खाने में स्वादिष्ट मखाना कई तरह के आवश्यक तत्वों से भरपूर होता है। इसमें एक तरह का ऐसा एंजाइम पाया जाता है जो बुढ़ापे को कम करता है। मखाना प्रोटीन, विटामिन, फाइबर, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, आयरन और जिंक जैसे खनिज और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। मखाना तालाब, झील, दलदली क्षेत्र के शांत पानी में उगये जाते। मखाना पोषक तत्वों से भरपुर एक जलीय उत्पाद है। मखाने में 9.7% आसानी से पचनेवाला प्रोटीन, 76% कार्बोहाईड्रेट, 12.8% नमी, 0.1% वसा, 0.5% खनिज लवण, 0.9% फॉस्फोरस एवं प्रति 100g 1.4 mg लौह पदार्थ मौजूद होता है। इसमें औषधीय गुण भी होता है।

लाभ :

1कमजोरी दूर करे👉   मखाना ऊर्जा का अच्छा स्रोत है। इसके सेवन से तुरंत ही ऊर्जा मिलती है। इसके नियमति सेवन शारीरिक दुर्बलता खत्म होती है।

2.पेशाब करने में परेशानी👉 1 से 3 ग्राम मखाने को गर्म पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी) दूर हो जाती है।

3.मजबूत हड्डियाँ👉  कैल्शियम से लबरेज मखाना हड्डियों को मजबूत बनाता है। इसके नियमित सेवन से हड्डियों और जोड़ो के दर्द से मुक्ति मिलती है।

4.स्वस्थ त्वचा👉  मखाना में एंटीओक्सिडेंट और एंटी एजिंग तत्व पाए जाते हैं। इसे रोजाना खाने से चेहरे पर झुर्रियों नहीं आती तथा चेहरा लम्बे समय तक जवां और निखरा-निखरा रहता है।

5.शारीरिक शक्ति👉  मखाना के 3 से 6 ग्राम बीज तथा चीनी को एक साथ पीसकर मिश्रण तैयार करें, फिर इस मिश्रण को दूध के साथ दिन में 3 बार देने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है।

6.किडनी👉 मखाने के सेवन से शरीर से हानिकारक टॉक्सिक तत्व बाहर होते हैं जिस से किडनी में किसी भी तरह की समस्या उत्पन्न होने की संभावनाएं न के बराबर हो जाती हैं। मखाना के 3 से 6 ग्राम बीज तथा चीनी को एक साथ पीसकर मिश्रण तैयार करें, फिर इस मिश्रण को दूध के साथ दिन में 3 बार देने से पथरी के रोग में लाभ मिलता है।


7.नाभि के रोग और सूजन👉  ताल मखाना की जड़ का काढ़ा 40 ग्राम या बीज 2 से 4 ग्राम को दूध के साथ सुबह-शाम लेने से नाभि के रोग और सूजन दूर होती है।

8.शारीरिक दोष👉  मखाने को खीर के साथ चबायें या केवल मखाने को चबाकर खायें। इससे सम्भोग की कमी से हुई शारीरिक कमज़ोरी दूर हो जाती है।

9.मधुमेह👉 मधुमेह रोगियों के आहार में मखाना शामिल करना उनके लिए बहुत फायदेमंद होता है। मखाने के सेवन शरीर में इन्सुलिन का स्तर नियंत्रित रहता है।

10.दिल के लिए भी लाभदायक👉 मखाने के सेवन से शरीर का कोलेस्ट्रोल लेवल कम होता है। इसके नियमित सेवन से हृदय सम्बन्धी रोगों के होने का भी ख़तरा टलता है। ‘

11.मजबूत मांसपेशियां👉 मखाना प्रोटीन से भरपूर होता है। कसरत करने वालो या जिम जाने वालो को मखाना का सेवन तो अवश्य ही करना चाहिए। इसके सेवन से मसल्स का निर्माण होता है और मांसपेशियां मजबूत बनती है।

12.फीलपांव या गजचर्म👉  घी, शहद, मक्खन, पीपल, अदरक, मिर्च और सेंधानमक को मिलाकर पीने से फीलपांव का रोग दूर हो जाता है।

13.प्रसव के बाद महिलाओं को काफी दर्द होता है। यह असहनीय भी होता है। मखाना के गुण ऐसे दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है। मखाना के पत्तों को 10-15 मिली पानी में डालकर काढ़ा बना लें। इसे पीने से प्रसव के बाद होने वाले दर्द से राहत मिलती है।

14.गठिया आज एक आम बीमारी बन गई है। गठिया के कारण शरीर के जोड़ों, जैसे- पैर और हाथ आदि अंगों में बहुत दर्द होता है। मखाना के गुण से आप लाभ ले सकते हैं। इसके लिए मखाना पेड़ के पत्तों को पीसकर दर्द वाले जगह पर लगाएं। इससे आराम (makhane ke fayde) मिलता है।

15.मखाना दिल के लिए फायदेमंद होता है। इसके उचित मात्रा में सेवन से यह रक्त की आपूर्ति में सुधार करता है एवं हृदयाघात जैसी गंभीर समस्याओं के रोक थाम में भी सहयोगी होता है ।   

16.मखाने का उचित मात्रा में सेवन गुर्दो को भी स्वस्थ रखने में सहयोग देता है। यह गुर्दों की कार्य क्षमता को बढ़ा कर उनकी क्रिया को सामान्य बनाये रखने में मदद करता है।  

17.खानों का सेवन झुर्रियों से छुटकारा पाने में भी सहयोग देता है क्योंकि इसमें स्निग्ध गुण होता है। जो त्वचा में तैलीय तत्त्व बनाये रखने में सहयोग देता है, जो झुर्रियों को रोकने में मदद करता है ।  


मखाने लघु होने के कारण अच्छे पाचक होते हैं। साथ ही ये कार्बोहाइड्रेट्स, फाइबर्स और प्रोटीन्स से भरपूर होते हैं। 


शिलाजीत के यह लाभ नहीं जानते होंगे आप

 शिलाजीत क्या है:


 टेस्टोस्टेरोन (Low testosterone), भूलने की बीमारी (अल्जाइमर), क्रोनिक थकान सिंड्रोम, आयरन की कमी से होने वाला रक्ताल्पता, पुरुष प्रजनन क्षमता में कमी (पुरुष बांझपन /Male infertility) अथवा हृदय के लिए लाभदायक है ।

शिलाजीत एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला खनिज पदार्थ है जो भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालय और हिंदुकुश पर्वतमाला में पाया जाता है। यह एक दुर्लभ राल है जो पौधों और पौधों की सामग्री के हजारों वर्षों के अपघटन द्वारा बनाई गई है। यह फंसा हुआ पौधा पदार्थ फिर चट्टानों से भूरे से काले चिपचिपे गोंद जैसे पदार्थ के रूप में निकलता है। आयुर्वेद भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली लंबे समय से अपने स्वास्थ्य-निर्माण गुणों के लिए शिलाजीत का उपयोग कर रही है। शिलाजीत का उल्लेख चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में मिलता है जिसमें इसे "सोने की तरह धातु के पत्थर" और एक जिलेटिन पदार्थ के रूप में कहा जाता है। आयुर्वेद में शिलाजीत को समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में शिलाजीत के लाभों का चर्चा करते हुए एक "रसायन" (टॉनिक) माना जाता है। वास्तव में शिलाजीत नाम का अनुवाद "पहाड़ों को जीतने वाला और कमजोरी का नाश करने वाला" है। सदैव की भांति आधुनिक विज्ञान को अभी भी इस प्राकृतिक आश्चर्य का पता लगाने की आवश्यकता है।

 शिलाजीत कम 

शिलाजीत खाने के फायदे- 

खून की कमी में फायदेमंद ...

ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में फायदेमंद ...

डायबिटीज में फायदेमंद ...

कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करने में उपयोगी ...

थकान में फायदेमंद ...

टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन के स्तर में सुधार ...

अर्थराइटिस में फायदेमंद


सावधानियाँ:    

  👉 धातु भस्म, पारे से बनी दवाई, रत्न और अन्य उपरत्नों की भस्म को बहुत अधिक समय तक प्रयोग नही करना चाहिए। इनका प्रयोग एक माह तक करना पर्याप्त होता है, अतः शिलाजीत का भी प्रयोग एक साथ एक माह तक ही करना चाहिये। इसके बाद कुछ काल का अंतर देकर पुनः प्रयोग किया जा सकता है।   

   

👉 थेलिसिमिया के रोगी को सावधानी रखनी चाहिए ,क्योंकि इसमे आइरन (लौह) की मात्र पर्याप्त होती है। 

 

👉 जिनका URIC एसिड बढ़ा हो, सावधानी रखनी चाहिए।    

   

👉  कच्चा (RAW) शिलाजीत मानवीय प्रयोग के लिए अनुचित माना जाता है।   

👉बिना वैध्यकीय सलाह के इसका प्रयोग न करें ।

जानिए दुर्लभ पोई के साग के बारे में

 

आमतौर पर जब साग  की बात आती है तो हमारे ज़ेहन में पालक का नाम आता है। ज्यादातर लोगों को पता है कि पालक में आयरन की भरपूर मात्रा पाई जाती है जो स्वास्थ्य के लिए श्रेस्कर है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पोई साग में पालक की अपेक्षा कई गुना ज्यादा आयरनहोता है। इस साग का उपयोग बेहद कम है, क्योंकि लोग जानते ही नहीं इसके बारे में। आइए इस पोस्ट में इस बहुमूल्य साग की जानकारी जन-जन तक पहुंचाते हैं।


पोई एक सदाबहार बहुवर्षीय लता है। इसकी पत्तियाँ मोटी, मांसल तथा हरी होतीं हैं जिनका शाक-सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है। यह प्राकृतिक रूप से उगती है तथा वृक्षों और झाड़ियोंं का सहारा लेकर ऊपर चढ़ जाती है। इसके फल मकोय केे फलों जैसे दिखते हैैं जो पकने पर गाढ़े जामुनी रंग के हो जातेे है। इन पके फलों सेे गुलाबी आभा लिये वाल रंग का रस निकलता है।


पोई की लता और पत्तियाँ

पोई के पत्तों का पालक के पत्तों जैसे पकौड़ा बनाने, साग बनाने में उपयोग होता है। इसे दाल में डालकर भी खाया जाता है

पोई की दो किस्में हमारे आसपास मिलती हैं एक हरी और दूसरी लाल। लाल किस्म की टहनियां लाल होती हैं और पत्तियों का निचला हिस्सा भी हल्का जामुनी, लाल होता है। ऐसा इसमें पाए जाने वाले एन्टीऑक्सीडेन्ट पदार्थ एंथोसायनीन के कारण होता है। इसका एक नाम देसी पालक (इंडियन स्पीनेच) भी है। जो पालक हम अधिकतर बाजार से खरीदकर खाते हैं वह तो पर्सियन साग यानी ईरानी पालक है। यह देश के सभी प्रांतों में घर आंगन के बगीचे में बोई जाती है या फिर आसपास अपने आप भी उग जाती है। इसका फैलाव चिडिय़ा, बुलबुलों की मदद से होता है जो इसके पके जामुनी फल खाते हैं और बीजों को यहां- वहां बिखेरते हैं। मैंने सोचा चलो आज खनिज तत्वों, विशेषकर लौह तत्व को लेकर जरा देसी- विदेशी पालकों की तुलना करें। इसके परिणाम से मुझे तो आश्चर्य हुआ ही और आपको भी होगा। क्योंकि इस मामले में यह देसी पालक जिसके पत्ते दिल के आकार के हैं, हाथ के आकार के पत्तों वाले पालक से कहीं बेहतर है।

पालक में प्रति 100 ग्राम लौह तत्व 1.7 से 2.7 मिलीग्राम होता है, वहीं पोई में 10 मिलीग्राम होता है। फॉस्फोरस भी 100-100 ग्राम पालक और पोई में क्रमश: 21 में 35 मिलीग्राम होता है।

प्याज ,लहसुन न खाने के वैज्ञानिक और अध्यात्मिक कारण

 


अन्न का मन पर प्रभाव

कहते है जैसा अन्न वैसा मन अर्थात हम जो कुछ भी खाते है वैसा ही हमारा मन बन जाता है।अन्न चरित्र निर्माण करता है।इसलिए हम क्या खा रहे है इस बात को सदा ध्यान रखना चाहिये।


  भोजन भी तीन प्रकार का  होता है।

1. सात्विक अन्न

2. रजोगुणी अन्न मैदा से बनी आइटम्स

3. तमोगुणी आहार


इनमें से मुख्य दो आहार है :

1. सात्विक व 

2.तामसिक 

  योग पथ पर चलने वाले को सात्विक आहार ही लेना चाहिए। सात्विक आहार मानसिक पवित्रता को बढ़ाता है। हमारे इस दिव्य ज्ञान का ध्येय है-

"पवित्र बनो, योगी बनो "

पवित्रता ही सुख-शान्ति की जननी है......

"PURITY IS THE MOTHER OF ALL VALUES"

पवित्रता की धारणा मन्सा, वाचा, कर्मणा द्वारा होती है।मानसिक पवित्रता ही शारीरिक पवित्रता का आधार है।मानसिक पवित्रता अर्थात आत्मा के स्वधर्म की स्मृति शांति, सुख, ज्ञान, आनन्द, प्रेम के विचारों में रमण करना। सहज, सरल, मृदुभाव, आत्मिक भाव में रहना पवित्रता है।


 तामसिक भोजन मानसिक अपवित्रता है।अन्न की शुद्वता हो जिसमें तामसिक भोजन लहसुन, प्याज, तीखा मिर्च मसाला, नॉन वेज(मीट) आदि ना हो। आधिक भोजन भी वर्जित है।


कोई भी व्यसन स्मोकिंग शराब आदि नशे हमें हमारे मूल स्वभाव में ठहरने नहीं देते हैं। शारीरिक कमजोरी पैदा करते हैं। मन में भारीपन, डर, शंका, ईर्ष्या, घृणा, बदले की भावना पैदा करते हैं। काम , क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, कुद्दष्टि, कुवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। संकल्पों में वेग उत्पन्न कराते हैं।

   कहा जाता है कि जो भी प्याज और लहसुन खाता है उनका शरीर राक्षसों के शरीर की भांति मज़बूत हो जाता है लेकिन साथ ही उनकी बुद्धि और सोच-विचार राक्षसों की तरह दूषित भी हो जाते हैं। इन दोनों सब्जियों को मांस के समान माना जाता है। जो लहसुन और प्याज खाता है उसका मन के साथ-साथ पूरा शरीर तामसिक स्वभाव का हो जाता है।

  श्रीमद् भगवद्गीता में 17 वें अध्याय में भी कहा गया है व्यक्ति जैसा भोजन (लहुसन, प्याज..... तामसिक) खाता है, वैसी अपनी प्रकृति (शरीर) का निर्माण करता है।


 अनियन, मॉस, शराब या कोई भी प्रकार का नशा जिसे लेने से ये शरीर भी अस्वीकार करता है।आपने देखा होगा, कोई भी ऐसा भोजन जो इस देह के लिए नही है उसको ये देह में डालते ही देह उसके कणों को बाहर फेंकता है और मुख से दुर्गन्ध आती है।जैसे- अनियन, अण्डा, शराब, बीड़ी, सिगरेट आदि।

प्याज को तामसिक माना जाता है।इसलिए देवी- देवताओ को भी इसका भोग नही लगाया जाता।

जितने व्रत रखते है उसमे भी इसका परहेज बताया जाता है।

इसे तामसिक माना गया है।क्योंकि इससे तीव्र गंध आती है जो एकदम आसुरी लक्षण है। अभी हम देवता बन रहे है। देवियों की जड़ मूर्तियों के आगे भी कभी ऐसे तामसिक चढ़ावा नहीं रखते है। इसे खाने से मन पर कंट्रोल नहीं हो पाता और मन स्थिर न हो तो ध्यान नहीं लग सकता है।

जैसा होगा अन्न, वैसा होगा मन  अगर हम लहुसन और प्याज खाते रहे तो पुरुषार्थ में जो रूकावट आएगी वो हमें पता नही पड़ेगा इसलिए शुद्ध भोजन पर भी पूरा-पूरा ध्यान देना पड़ेगा। लहसुन और प्याज दोनों ही तामसिक भोजन की श्रेणी में आते हैं।

  जरा गौर करें जो प्याज काटने पर आँखों में आंसू ला देता है, जो लहुसन खाने पर या जीभ पर रखने पर ही मुख में दुर्गन्ध पैदा कर देता है, तो उसको हमारा पेट कैसे झेलता होगा?

  इनको खाने सेे गैस भी ज्यादा बनती है और सिर में दर्द भी पैदा होता है और मस्तिष्क में भी कमजोर हो जाता है।

  मन बड़ा भटकता है योग नहीं लगने देता और कर्मेन्द्रियाँ भी धोखा देती है क्योंकि जैसा की हम सब जानते है कि शास्त्रों में भी यह तामसिक पदार्थ की श्रेणी में ही आते है, इसलिए ही तो मंदिरों में देवताओं को भी इसका भोग नहीं लगता, यह भक्तिमार्ग में भी निषेध माना गया है। 

  तामसिक पदार्थ में अवगुण रूपी जहर होता है जो हमें धीरे-धीरे ज्ञान और योग से दूर ले जाता है। ब्राह्मण प्याज और लहसुन खाने से परहेज करते हैं ये देर से पचते है और योग साधना में हानिकारक है। इनसे चित की शांति और प्रसन्न्ता भंग होती है। यदि पवित्र बनना है तो इनका त्याग ही करना उचित हैं।

 जैसा होगा अन्न, वैसा होगा मन अगर हम लहुसन और प्याज खाते रहे तो पुरुषार्थ में जो रूकावट आएगी वो हमें पता नही पड़ेगा इसलिए शुद्ध भोजन पर भी पूरा-पूरा ध्यान देना पड़ेगा। लहसुन और प्याज दोनों ही तामसिक भोजन की श्रेणी में आते हैं।


चमत्कारी हल्दी का दूध,कैसे करें इसका सेवन

हल्दी दूध सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होता है. ये ही वजह है कि घरेलू नुस्खों के तौर पर हल्दी वाला दूध पीने की सलाह दी जाती है. आयुर्वेद में भी हल्दी को सबसे बेहतरीन नेचुरल एंटीबायोटिक माना गया है. अगर आप हल्दी वाला दूध पीते हैं, तो आपको कई तरह के स्वास्थ्य लाभ होते हैं. स्किन से लेकर पेट और शरीर के कई रोगों के लिए हल्दी वाला दूध लाभकारी होता है. हल्दी वैसे भी कई औषधीय गुणों से परिपूर्ण है.

बचपन में सर्दियों में नानी-दादी घर के बच्चों को सर्दी के मौसम में रोज हल्दी वाला दूध पीने के लिए देती थी। हल्दी वाला दूध जुकाम में काफी फायदेमंद होता है क्योंकि हल्दी में एंटीआॅक्सीडेंट्स होते हैं जो कीटाणुओं से हमारी रक्षा करते हैं। रात को सोने से एक दो घंटे पहले इसे पीने से तेजी से आराम पहुचता है. हल्दी में एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल प्रॉपर्टीज मौजूद रहती है जो की इन्फेक्शन से लडती है. इसकी एंटी इंफ्लेमेटरी प्रॉपर्टीज सर्दी, खांसी और जुकाम के लक्षणों में आराम पहुंचाती है.

चोट और दर्द के साथ ही सर्दी खांसी में बेहद लाभकारी होता है हल्दी और दूध.

2- हल्दी और दूध पीने से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.

3- हल्दी और दूध पीने से हड्डियों में होने वाला दर्द दूर होता है.

4-हल्दी और दूध पेट की समस्याओं से निजात दिलाता है.

5- हल्दी दूध पीने से शरीर के सारे विषैले टॉक्सिन बाहर निकल जाते हैं और पाचन क्रिया भी ठीक रहती है.

6- रोजाना हल्दी वाला दूध पीने से चेहरे पर निखार आता है.

7-हल्दी में एंटीसेप्टिक व एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो खुजली और मुंहासे में फायदेमंद होते हैं.

8- यहां तक कहा जाता है कि हल्दी वाला दूध पीने से अर्थराइटिस की बीमारी नहीं होती है.

9- हल्दी और दूध पीने से तनाव दूर होता है और अनिद्रा की समस्या भी दूर होती है.

10- गर्म हल्दी और दूध पीने से दमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों में कफ और साइनस जैसी समस्याओं में राहत मिलती है.

हल्दी में अमिनो एसिड अनिद्रा को दूर करता है.।

हल्दी का दूध पीरियड्स के दर्द को कम करता है।

हल्दी दूध कैंसर मरीज़ को भी पिलाया जाता है।

हल्दी दूध एक एंटी-माइक्रोबायल है, जो बैक्टीरियल इंफेक्शन और वायरल इंफेक्शन के साथ लड़ता है. ये दूध सांस संबंधी समस्याओं से निपटने में मदद करता है, क्योंकि इसे पीने से शरीर का तापमान बढ़ता है जिसकी वजह से लंग कंजेशन और साइनस में आराम पहुंचता है. ये अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी समस्याओं में भी राहत पहुंचाता है

एक कप दूध लें और इसे उबाल लें.  एक चुटकी हल्दी(एक capsule जितनी) और स्वाद के लिए थोड़ी चीनी / गुड़ मिलाएं.सुबह भी ले सकतें हैं, श्याम को भी ले सकते हैं।

गुम चोट ठीक करें

अंडे का पीला पार्ट और हल्दी का पेस्ट बना कर गुम चोट पर लगाने से गुम चोट ठीक हो जाती है।पहले हल्का तेल लगाएं फिर पेस्ट लगाएं फिर रुई लगाये फिर पट्टी करदे।

यदि व्यक्ति किडनी रोगी है यानि व्यक्ति को किडनी से जुड़ी कोई भी समस्या है तो ऐसे में हल्दी का दूध सेहत को नुकसान पहुंचा जा सकता है. खासतौर पर पथरी की समस्या होने पर, दरअसल हल्दी में ऑक्सालेट होता है, जो किडनी स्टोन की समस्या को ट्रिगर कर सकता है. ऐसे में किडनी की समस्या के दौरान इस ड्रिंक का सेवन न करें.


आयुर्वेद के छह रसों से कीजिये अपनी हर बिमारी दूर



अपने खान-पान को संतुलित रखकर हम अपनी स्वास्थ्य संबंधी बहुत-सी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। इसका ज्ञान हमारे पास है। जरूरत है बस उसके पन्नों पर पड़ी धूल को झाड़ने की

स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। यह बात जितनी जल्दी समझ में आए, उतना अच्छा। इसमें सबसे बड़ी भूमिका होती है आहार की। मनुष्य का शरीर हर क्षण कुछ न कुछ करता रहता है।

स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। यह बात जितनी जल्दी समझ में आए, उतना अच्छा। इसमें सबसे बड़ी भूमिका होती है आहार की। मनुष्य का शरीर हर क्षण कुछ न कुछ करता रहता है। गहरी नींद में सोते समय भी फेफड़े और हृदय लगातार काम करते हैं, जिससे शरीर में ‘सेल्स’ निरन्तर बनते और टूटते रहते हैं जिसकी जीवनी शक्ति द्वारा मरम्मत होती है जो आहार के माध्यम से ही संभव है। हमें यह जानने के लिए कहीं बाहर के शोध के इंतजार की जरूरत नहीं कि अगर खान-पान गलत होगा तो शरीर कष्ट में आएगा ही, मन भी बीमार होगा।

जानलेवा कैंसर

कैंसर समूची दुनिया में भयावह रूप लेता जा रहा है। इस मामले में दुनिया के 172 देशों की सूची में भारत का स्थान 155वां है। इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के मुताबिक भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या में तेजी आई है और इसके लगातार बढ़ने का अनुमान है। 2020 में कैंसर पीड़ित पुरुषों की संख्या 6,79,421 थी, जिसके 2025 में बढ़कर 7,63,585 हो जाने का अनुमान है।

महिला कैंसर रोगियों की संख्या 2020 में 7,12,758 थी, जिसके 2025 में बढ़कर 8,06,218 हो जाने का अनुमान है। भारत में प्रति लाख 70.23 लोग कैंसर से पीड़ित हैं। 1990 के मुकाबले देश में प्रोस्टेट कैंसर के मामले 22 प्रतिशत तथा महिलाओं में बे्रस्ट कैंसर के मामलों में 33 प्रतिशत, जबकि सर्वाइकल कैंसर के मामले करीब 3 प्रतिशत बढ़े हैं। अब तो ब्रेस्ट कैंसर के मामले 23 से 30 वर्ष की महिलाओं में अधिक पाए जा रहे हैं।

आंवला चिकित्सा शास्त्र में अमृत के समान लाभकारी बताया गया है। लोग कसैलेपन के कारण इसका उपयोग कम करते हैं। इसे चटनी बनाकर खाया जा सकता है। कच्चे आंवले में खांड मिलाकर खाने से अधिक लाभ मिलेगा।


छह रसों का महत्व:


देश के कैंसर विशेषज्ञों के मुताबिक, जिस तरह मधुमेह और हृदय रोग एक कारण से नहीं होते, उसी तरह कैंसर का भी एक कारण नहीं होता। इसके पीछे पश्चिमी जीवनशैली, डेयरी उत्पादों का गलत तरीके से सेवन, रासायनिक प्रदूषण, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, कब्ज व गैस्ट्रिक समस्या की भी अहम भूमिका है।


व्यक्ति की शारीरिक सक्रियता में कमी आना, दोषपूर्ण व असंतुलित तैलीय व मसाला युक्त खान-पान, व्यायाम नहीं करना, नशीले और मादक पदार्थों के अत्याधिक सेवन से कैंसर होने की संभावना अधिक होती है।

आहार-विहार के प्रति सजगता से न केवल बीमारियों से बचाव होता है, बल्कि स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। जन्म से मृत्युपर्यन्त प्राणी का पालन, संवर्धन और अनुवर्धन आहार के आधार पर ही होता है। इसीलिए अन्न को शास्त्रों में प्राण की संज्ञा दी गई है। प्राकृतिक दृष्टि से फल, शाक और अन्न को ही मनुष्य का भोजन माना गया है।


इन खाद्यानों को वैज्ञानिक दृष्टि से पांच भागों में बांटा गया है, जिसमें सभी पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज लवण और जल उचित मात्रा में हों तो शरीर स्वस्थ रहता है। जिस तरह पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने शरीर निर्माण वाले तत्वों को पांच भागों में बांटा है, उसी तरह भारतीय मनीषियों ने पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश के आधार पर छह रसों का सिद्धान्त बनाया है।


ये रस हैं-:

मधुर रस- इसमें पृथ्वी और जल का भाग अधिक रहता है। यह रस पौष्टिक और दूध को बढ़ाने वाला होता है। पुराने चावल, जौ, गेहूं, मूंग, शहद और खांड मधुर रस के स्रोत हैं।

अम्ल या खट्टा रस- इसमें पृथ्वी और अग्नि का भाग अधिक होता है। यह अग्नि-वर्धक, पाचक, कफ-पित्त, रक्त-पित्त उत्पन्न करने वाला है।

लवण रस- इसमें जल और अग्नि तत्व का भाग अधिक होता है। यह रक्त नलिकाओं को स्वच्छ करता है और स्वेद रन्ध्रों को खोलकर पसीना लाता है। यह अग्निवर्धक और तीखा होता है।

कटु रस- इसमें वायु और आकाश की अधिकता होती है। यह कृमि, तृष्णा, विष, मूर्च्छा का नाश करता है। यह हल्का और बुद्धि को बढ़ाने वाला होता है।

तिक्त अथवा चरपरा रस- इसमें वायु और अग्नि की अधिकता होती है। यह मलरोग, गलरोग, कोढ़, सूजन को नष्ट करने वाला होता है

कसैला रस- इसमें वायु और पृथ्वी तत्व की अधिकता होती है। यह पित्त और कफ का नाश करने वाला, घाव को भरने वाला, ठण्डा तथा त्वचा और वर्ण को सुन्दर बनाने वाला होता है।

खाना आधा, पानी दूना

भोजन करते समय कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए। जैसे- खाना आधा, पानी दोगुना, व्यायाम तिगुना और हंसी चौगुना होनी चाहिए। आमाशय को तीन भागों में विभाजित करके एक भाग को भोज्य पदार्थ से, एक भाग को पेय पदार्थ से और एक भाग को वात पित्त-कफ के विचरण के लिए खाली छोड़ना चाहिए। अन्न को पीना चाहिए, जल को खाना चाहिए अर्थात अन्न को खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए और पानी को घूंट-घूंट कर पीना चाहिए। महीने में एक बार उपवास या तरल पदार्थ लें, ताकि आमाशय को आराम मिल सके और शरीर के भीतरी विकार निकल सकें, जिसे आजकल ‘बॉडी डिटॉक्सीफाई’ कहते हैं। कम खाओ और अधिक काम करो। इसी सिद्धान्त को व्यावहारिक जीवन में कार्यान्वित करके अपना स्वास्थ्य सही रखें। आहार में सात्विकता का यदि समुचित ध्यान रखा जाए और उसमें तामसिकता की मात्रा नहीं बढ़ने दी जाए तो रोगों से सहज ही बचाव हो सकता है। यदि सात्विक, सुपाच्य, स्वल्प और स्वच्छ आहार करने की नीति अपनाई जाए, भूख से कम और नियत समय पर खाया जाए तथा निरंतर श्रम किया जाए, हंसते-खेलते दिन बिताया जाए तो निस्संदेह हम निरोगी जीवन प्राप्त कर सकते हैं। -प्रज्ञा शुक्ला (प्राकृतिक, एक्यूप्रेशर, सूजोक, कलर, वैकल्पिक चिकित्सक)

सादा और ताजा भोजन उत्तम

शरीर पंचतत्व से बना है। जब तक ये पांचों तत्व उचित परिमाण में रहते हैं, शरीर निरोगी बना रहता है। इसके कम-ज्यादा होने पर शरीर रोगों से ग्रस्त हो जाता है। वहीं, रस की कमी से शरीर में दुर्बलता आती है, जबकि अधिक मात्रा में सेवन से अनेक रोग शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जैसे-मधुर रस की अधिकता से रक्त विकार, श्वास, मधुमेह जैसे रोग होते हैं। खट्टे रस अथवा विटामिन सी की अधिकता से दांत, छाती, गला, कान, नाक आदि में विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कसैले रस की अधिकता से गैस बनना, हृदय की कमजोरी, पेट फूलना जैसी बीमारियां होती हैं।

व्यक्ति अपनी कार्यशैली में बदलाव नहीं ला सकता, किन्तु आहार के प्रति सजग रह कर ऊर्जावान हो सकता है। अच्छा आहार स्वास्थ्य और मन, दोनों को प्रफुल्लित करता है। अधिकांश लोग स्वाद को ही स्वस्थ आहार की कसौटी मानते हैं, वहीं बहुत से लोग महंगे और पौष्टिक पदार्थों के अत्यधिक सेवन को ही लाभप्रद मानते हैं। सच यह है कि स्वास्थ्य के लिए वही भोजन उत्तम होता है जो सादा और ताजा हो। फ्रिज भंडारण के लिए सही हो सकते है, किन्तु बने हुए भोजन को एक-दो दिन उसमें रखकर खाने से उसकी पौष्टिकता खत्म हो जाती है।

वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कम समय में पौष्टिक आहार को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। भोजन में आधा भाग साग और फल रहें और आधा भाग अन्न का हो। यही सन्तुलित और पौष्टिक आहार होगा।

वाग्भट का मंत्र

महर्षि वाग्भट के अनुसार ‘मित भुक’ अर्थात् भूख से कम खाना, ‘हित भुक’ अर्थात् सात्विक खाना और ‘ऋत भुक’ अर्थात् न्यायोपार्जित खाना। जो इन तीनों बातों का स्मरण रखेगा, वह बीमार नहीं पड़ेगा। सृष्टि के सभी प्राणी सजीव आहार ग्रहण करते हैं। प्रकृति प्रदत्त भोज्य उपहारों को उन्हीं रूप में ग्रहण करना स्वास्थ्यप्रद होता है। इनमें शरीर के पोषण के लिए आवश्यक तत्व विद्यमान होते हैं, परन्तु आजकल कीटनाशक दवाओं के अत्यधिक प्रयोग के कारण इन्हें गरम पानी में धोकर उपयोग में लाया जा सकता है।


शरीर को निरोगी बनाना कठिन नहीं है। आहार, श्रम एवं विश्राम का संतुलन हर व्यक्ति को आरोग्य एवं दीर्घजीवन दे सकता है। आलस्य रहित, श्रम युक्त, व्यवस्थित दिनचर्या का पालन किया जाना चाहिए। स्वाद रहित सुपाच्य आहार लेना ही निरोगी काया का मूल मंत्र है।

एक भ्रम है कि पोषक तत्वों के लिए उच्च कोटि का आहार चाहिए। जैसे- प्रोटीन के लिए सोयाबीन, सूखे मेवे, वसा के लिए बादाम, अखरोट, पिस्ता, घी, विटामिन के लिए फल, दूध, दही इत्यादि। जिन खाद्य पदार्थों में ये तत्व पर्याप्त मात्रा में हैं, वे बहुत महंगे होने के कारण सर्वसाधारण के लिए सुलभ नहीं हो पाते। परन्तु यह जरूरी नहीं कि महंगे भोज्य पदार्थ ही पोषक हों।

साधारण भोजन को भी ठीक प्रकार से पकाया और खाया जाए तो उसमें भी पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्व मिल जाते हैं। गेहूं, ज्वार, बाजरा, चना, मक्का, आदि अनाज तथा शाक, सब्जियां भी पोषक तत्वों से भरपूर हैं। इनका प्रयोग कैसे किया जाए, यह महत्वपूर्ण है।

जरूरी नहीं महंगा खाद्य अच्छा हो

शोध निष्कर्ष के मुताबिक, 50 ग्राम अंकुरित चनों में 250 ग्राम दूध के बराबर पौष्टिक तत्व होते हैं। अंकुरित चनों में सेंधा नमक और नींबू का रस मिलाकर खाने पर प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण सभी प्राप्त हो सकते हैं। जरूरी नहीं कि अंगूर, सेब, अनार जैसे महंगे फलों से ही पोषक तत्वों की प्राप्ति होगी। यही तत्व हर मौसमी फल में भी मिलते हैं, जैसे- खीरा, ककड़ी, आम, जामुन, पपीता इत्यादि सस्ते भी होते हैं और आम आदमी के बजट में भी।


प्राकृतिक चिकित्सा में नींबू को सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य रक्षक फल कहा गया है। यदि इसका विधि पूर्वक प्रयोग किया जाए तो इससे पचासों रोग दूर हो सकते हैं। इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस काफी मात्रा में पाया जाता है। यह सिर से पैर तक खून को शुद्ध करता है। नींबू स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, किन्तु इसे भोजन के साथ खाना हानिकारक होता है, क्योंकि भोजन को पचाने के लिए मुंह में जो लार बनती है, नींबू का रस उसको नष्ट कर देता है। नींबू को सुबह या शाम पानी में मिलाकर पिएं। शक्कर और नमक भी न डालें।


टमाटर के फायदे: टमाटर पेट के समस्त रोगों, कब्ज-दस्त, मोटापा कम करने में फायदेमंद है। इसे कच्चा, अधपका और पका किसी भी रूप में खाया जा सकता है। कोलम्बिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. शर्मन का कहना है कि टमाटर विटामिन की दृष्टि से नींबू और संतरे के बराबर ही है। मक्खन में जितना विटामिन ‘ए’ होता है, उससे अधिक टमाटर में पाया जाता है।

इसका एक विशेष गुण और है, अगर किसी को खाने से कोई रोग हुआ हो, उसे टमाटर का सेवन करना चाहिए। बुखार आने पर टमाटर का सूप फायदेमंद होता है। गाजर को किसी भी रूप में खा सकते हैं। इसके सेवन से चर्म रोग और गुर्दे की बीमारी दूर होती है। अन्य की अपेक्षा आयरन की मात्रा इसमें अधिक होती है, जिससे रक्त शुद्ध तथा ताकतवर बनता है। गाजर का रस या सलाद में इसे खाने से त्वचा कान्तिमय होती है और नेत्र ज्योति बढ़ती है।

आंवला तो अमृत: आंवला को चिकित्सा शास्त्र में अमृत के समान लाभकारी बताया गया है। लोग कसैलेपन के कारण इसका उपयोग कम करते हैं। इसे चटनी बनाकर खाया जा सकता है। मुरब्बा न बनाकर खाएं। कच्चे आंवले में खांड मिलाकर खाने से अधिक लाभ मिलेगा।

मूंगफली का असर बादाम जैसा: खजूर, मूंगफली, पपीता, पालक सस्ते होते हैं और इनके विधिपूर्वक सेवन से हम निरोगी रह सकते हैं। कच्ची मूंगफली को भिगोकर और पीसकर खाया जाए तो यह बादाम की तरह ही है, शक्तिवर्धक और पुष्टिवर्धक होती है। पत्ता गोभी के पत्तों को सलाद में प्रयोग कर सकते हैं। पालक का रस या भाप पर पकाकर खाने से इसमें मौजूद विटामिन नष्ट नहीं होते।


जैसा खाइए अन्न, वैसा बनेगा मन

बहुत बार ऐसा देखने को मिलता है कि युवक-युवतियां लैपटॉप या कम्प्यूटर के सामने ही खाना खा लेते हैं। यह गलत है। मन का शरीर के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रत्यक्ष में तो सब प्रकार के कार्य हमारी इन्द्रियां ही करती हैं, पर संचालन मन से होता है। गीता में भी सात्विक, तामसिक, राजसिक भोजन का उल्लेख मिलता है। अत: भोजन करते समय शान्त और प्रसन्नचित्त रहना चाहिए।


क्रोध, व्यावसायिक चिन्ता अथवा आवेश से मानसिक विचलन होता है। ऐसे समय भोजन करने से शारीरिक व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। जिस भाव से भोजन करेंगे, शरीर पर वैसा प्रभाव पड़ेगा। इसीलिए भोजन को प्रसाद की तरह ग्रहण करना चाहिए। चोकर युक्त आटा, छिलके सहित दालें भोजन में शामिल करें। सादा और ताजा भोजन करें।

महिलाएं अधिक संवेदनशील होती हैं। उनके लिए पौष्टिक आहार के साथ मानसिक शान्ति भी जरूरी है। उन्हें समय पर योग, नाश्ता, भोजन और विश्राम करना चाहिए। आपकी जितनी अधिक मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक उन्नति होगी, उतना ही उन्नत परिवार होगा।

नित्य कर्म की तरह समय पर भोजन करना अच्छा होता है। असमय और कुछ भी खा लेना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। बिना भूख कभी खाना ही नहीं चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पाचन तंत्र पर अतिरिक्त भार न पड़े। किसी भी अन्न को अंकुरित करके नाश्ते में शामिल करें। भोजन में दही, दाल, चावल, हरी मौसमी, सस्ती सब्जियां खाएं। पैकेटबंद और तला-भुना बाजार का खाना बन्द करें। भुने हुए चने, मुरमुरे, चिउड़ा, मूंगफली के दाने चाय के साथ नाश्ते में लें। रात्रि भोजन बिल्कुल हल्का, मसाले रहित और सुपाच्य हो।

महिलाएं घर, परिवार की जिम्मेदारियों में इतनी उलझ जाती हैं कि उन्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रहता। 50 वर्ष की अवस्था पार करते-करते ऐसी महिलाएं कई बीमारियों से ग्रस्त हो जाती हैं। इसलिए उन्हें पूरे परिवार के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य के लिए भी समय निकालना होगा। महिलाएं अधिक संवेदनशील होती हैं। उनके लिए पौष्टिक आहार के साथ मानसिक शान्ति भी जरूरी है। उन्हें समय पर योग, नाश्ता, भोजन और विश्राम करना चाहिए। आपकी जितनी अधिक मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक उन्नति होगी, उतना ही उन्नत परिवार होगा।


  

श्री तुलसी पीए,निरोग जीए

  

तुलसी के पत्तों में कई तरह के औषधीय गुण मौजूद होते हैं। इसके रोजाना सेवन से आप कई तरह की शारीरिक समस्याओं से बचे रह सकते हैं। तुलसी शरीर के तापमान को कंट्रोल में रखती है। इसके सेवन से कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में रहता है। मौसम में होने वाले बदलावों के चलते होने वाले इंफेक्शन से बचे रहना चाहते हैं, तो हल्दी और तुलसी का काढ़ा रोजाना पिएं। ये काढ़ा सर्दी-जुकाम और गले में खराश की समस्या से भी राहत दिलाता है।

ऐसे करें प्रयोग तुलसी के पत्तों का:

1. एसिडिटी महसूस होने पर तुलसी के दो से तीन पत्ते चबाने से लाभ मिलता है। अगर आपको अकसर ही एसिडिटी रहती है तो खाने के बाद इसे पत्ते खाने की आदत बना लें।

2. पेट दर्द हो, तो नारियल पानी में तुलसी के पत्तों का रस और नींबू मिलाकर पी लें।

3. सुबह की शुरुआत चाय से होती है तो इसमें भी अदरक के साथ तुलसी के कुछ पत्ते डाल दें। काढ़ा बना रहे हैं तो उसमें भी तुलसी के पत्ते डालें। इससे पाचन संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिलता है और साथ ही मौसम बदलाव के साथ होने वाले संक्रमण में भी आराम मिलता है।

तुलसी के फायदे :

 तुलसी को रक्षा कवच माना जाता है। तुलसी के सभी हिस्सों का अपना - अपना अलग महत्व है। इसकी शाखाएँ, बीज, पत्ती और जड़ सभी के बहुत फायदे है। आइये जानते है श्री तुलसी के फायदे

१. सर्दी-खांसी में -

इसका उपयोग सर्दी खांसी में आराम देने के लिए किया जाता है। अगर आपको जुकाम सर्दी खांसी हो गई है तो तुलसी का काढ़ा बनाकर पीने से आराम मिलता है। तुलसी के साथ काली मिर्ची, लौंग और गुड़ मिलाकर काढ़ा तैयार किया जाता है।

२. मुँह की दुर्गंध -

तुलसी के पत्तों को चबाने से मुँह की दुर्गंध को दूर किया जा सकता है। अगर साँसों में से बदबू आती है तो तुलसी खाने के फायदे इसमें होते है। तुलसी के पत्ते चबाना चाहिए ऐसा करने पर दुर्गंध खत्म हो जाती है।

३. सिर की जूं लीख में -

यदि सिर में जूं लीख हो गई है तो ऐसे में तुलसी का तेल बालों में लगाना चाहिए। इसकी पत्तियों से आप तेल बना सकते है या बाजार में भी आपको तुलसी का तेल मिल सकता है।

४. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये -

तुलसी में रोगों से लड़ने की ताकत होती है। यह इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाती है। तुलसी का सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

. कान दर्द और सूजन में राहत -

यह कान के दर्द और सूजन को कम करने का काम करती है। तुलसी पत्र स्वरस को गर्म कर ले इसकी २ - २ बून्द कान में डालने पर दर्द से मुक्ति मिलेगी। कान के पीछे हो रही सूजन में तुलसी पत्ती के साथ एरंड की कोंपलों को पीस ले इसमें नमक मिला ले इस लेप को गुनगुना करके लगाएं।

६. तनाव से मुक्ति -

तुलसी में एंटीस्ट्रेस गुण पाए जाते है। शरीर में पाया जाने वाला कॉर्टिसोल हॉर्मोन जिसे स्ट्रेस हार्मोन कहते है उसे नियंत्रित करने में तुलसी सहायक होती है।

७. दस्त में आराम -

दस्त से परेशान होने पर आप इसका उपयोग जरूर करे। जीरे के साथ तुलसी के पत्तों को पीस ले। दिन में इसे ३ - ४ बार खाये इससे दस्त रुक जाएंगे।

८. चोट लगने पर -

इसमें एंटी-बैक्टीरियल तत्व पाए जाते है जो घाव को ठीक करने में मददगार साबित होते है। फिटकरी और तुलसी के पत्ते दोनों को साथ में मिलाकर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है।

९. वजन कम करने में सहायक -

तुलसी के पत्ते के फायदे में वजन कम करना भी शामिल है। तुलसी रस शरीर का वजन कम करने के साथ बीएमआई और शरीर में इन्सुलिन को नियंत्रित करता है।

१०. रतौंधी में लाभ -

तुलसी रस के फायदे रतौंधी में भी होते है। २ से ३ बून्द तुलसी पत्र स्वरस को आँखों में डालने से फायदा होता है। आप चाहे तो तुलसी ड्राप खरीदकर भी इसका इस्तेमाल कर सकते है। तुलसी ड्राप के फायदे रतौंधी ठीक करने में होते है।

११. चेहरे की आभा -

तुलसी की पत्तियों को पीसकर इसका लेप या रस चेहरे पर लगाने से चेहरे की चमक बढ़ती है और कील मुहांसे भी ठीक होते है।

१२. साँप के काटने पर -

अगर साँप ने काट लिया है तो तुलसी का रस पिलाना चाहिए और इसकी जड़ और मंजरी को पीसकर साँप के काटे हुए स्थान पर लगाना चाहिए। इसका रस नाक में टपकाने से बेहोश रोगी को आराम मिलता है।

१३. सिर दर्द में आराम -

सिर में दर्द होने पर तुलसी की पत्ती की चाय बनाकर पीने से फायदा होता है।

१४. हृदय रोग -

इसका सेवन करने से हृदय रोग का खतरा कम हो जाता है और हृदय को स्वस्थ बनाये रखता है।

१५. झड़ते बालों के लिए उपयोगी -

तुलसी की पत्तियां बालों को झड़ने से रोकती है और सिर में ठंडक बनाये रखती है। इससे सिर में ब्लड सर्कुलेशन भी अच्छे से होता है।


आँखों की रोशनी कैसे बढायें

 


चश्मा लगने का सबसे प्रमुख कारण आंखों की ठीक से देखभाल न करना, पोषक तत्वों की कमी या अनुवांशिक हो सकते हैं. लेकिन सही खानपान से इस समस्या का समाधान भी निकाला जा सकता है. जानिए ऐसे ही कुछ घरेलू उपाय जो आंखों की रोशनी बढ़ाने में आपकी सहायता करेंगे...


1. पैर के तलवों पर सरसों के तेल की मालिश करके सोएं. सुबह के समय नंगे पैर हरी घास पर चलें व नियमित रूप से अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें.

2. एक चने के दाने जितनी फिटकरी को सेंककर सौ ग्राम गुलाबजल में डालकर रख लें. रोजाना रात को सोते समय इस गुलाबजल की चार-पांच बूंद आंखों में डाले. साथ ही, पैर के तलवों पर घी की मालिश करें इससे चश्मे का नंबर कम होना शुरू हो जाएगा.

3. आंवले के पानी से आंखें धोने से या गुलाबजल डालने से आंखें स्वस्थ रहती हैं.

4. बादाम की गिरी, बड़ी सौंफ व मिश्री तीनों को समान मात्रा में मिला लें. रोज इस मिश्रण को एक चम्मच मात्रा में एक गिलास दूध के साथ रात को सोते समय लें.

5. आंखों के हर प्रकार के रोग जैसे पानी गिरना, आंखें आना, आंखों की दुर्बलता, आदि होने पर रात को आठ बादाम भिगोकर सुबह पीस कर पानी में मिलाकर पीने से आंखें स्वस्थ रहती हैं.

6. हल्दी की गांठ को तुअर की दाल में उबालकर, छाया में सुखाकर, पानी में घिसकर सूर्यास्त से पूर्व दिन में दो बार आंख में काजल की तरह लगाने से आंखों की लालिमा दूर होती है.

7. सुबह के समय उठकर बिना कुल्ला किए मुंह की लार अपनी आंखों में काजल की तरह लगातार 6 महीने लगाते रहने


पर चश्मे का नंबर कम हो जाता है.

8. कनपटी पर गाय के घी की हल्के हाथ से रोजाना कुछ देर मसाज करने पर आंखों की रोशनी बढ़ती है.

9. त्रिफला चूर्ण को रात्रि में पानी में भिगोकर, सुबह छानकर उस पानी से आंखें धोने से नेत्रज्योति बढ़ती है.

10. बादाम की गिरी, बड़ी सौंफ व मिश्री तीनों को समान मात्रा में मिला लें. रोज इस मिश्रण को एक चम्मच मात्रा में एक गिलास दूध के साथ रात को सोते समय लें 

पेंसिल को हाथ में सीधा खड़ा करके पकड़ें। फिर उसे धीरे-धीरे अपनी आंखों के सामने लाएं और फिर दूर ले जाएं। इस तरीके को रोजाना दिन में 5 से 10 बार आजमाएं। आंखों की रोशनी को बढ़ाने के लिए यह बेहद कारगर तरीका माना जाता है।

ताजा खीरा खाओ अच्छा स्वास्थ्य पाओ



बड़ी कमाल औषधि खीरा गुणों से ये भरपूर

भोजन की थाली से तुम रखो ना इसको दूर


पित्त और खून की गर्मी को करता है ये शांत

बहुत प्यार से स्वच्छ करता पेट की हर आंत


खीरे का रस सुबह के समय खाली पेट पीना

पथरी गलकर बाहर होगी सौ बरस तुम जीना




सलाद बनाकर खीरे को हर दिन खाते जाओ

गैस और कब्जी की समस्या जड़ से मिटाओ

निम्बू छिड़ककर खीरे पर सेंधा नमक लगाओ

निम्न रक्तचाप की समस्या से छुटकारा पाओ


खीरा निम्बू के रस के अंदर हल्दी भी मिलाओ

चेहरे पर लगाकर दाग धब्बों से मुक्त हो जाओ


धूप से हुए सांवले चेहरे को खीरे से चमकाओ

पानी में उबले खीरे से अपने चेहरे को धुलाओ


आंखों के काले धब्बों पर रस खीरे का लगाओ

दो हफ्तों में तुम काले धब्बों को अदृश्य पाओ

इलाइची है गुणकारी,गर्म पानी के साथ लेने से लाभ

 


भारतीय पकवानों में डलने वाला एक महत्वपूर्ण मसाला है इलायची। अगर अभी तक आपको लगता था कि इलायची खाने में इस्तेमाल करने से केवल खाने की महक और स्वाद ही बढ़ता है, तो आप गलत सोच रहे हैं। इलायची का इस्तेमाल आपके भोजन का स्वाद बढ़ाने के साथ ही आपकी सेहत और सुंदरता को भी बढ़ा सकता है। 


इलायची में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट और मूत्रवर्धक गुण ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करते हैं. आज की लाइफ स्टाइल में अपच, गैस, एसिडिटी और कब्ज़ जैसी दिक्कत होना बहुत ही नॉर्मल सी बात है. इस दिक्कत को दूर करने में भी इलायची अच्छी भूमिका निभा सकती है.


आइए जानते हैं कि कैसे -


 1. यदि आपको कील-मुंहासे की समस्या रहती है तो आप नियमित रात को सोने से पहले गर्म पानी के साथ एक इलायची का सेवन करें। इससे आपकी त्वचा संबंधी समस्या दूर होगी।

 2. यदि आपको पेट से संबंधित समस्या है, आपका पेट ठीक नहीं रहता या आपके बाल बहुत ज्यादा झड़ते है तो इन सभी समस्याओं से बचने के लिए आप इलायची का सेवन करें। इसके लिए आप सुबह खाली पेट 1 इलायची गुनगुने पानी के साथ खाएं।अन्य

 3. दिनभर की बहुत ज्यादा थकान के बाद भी अगर आपको नींद आने में परेशानी होती है तो इसका उपाय भी इलायची है। नींद नहीं आने की समस्या से निजात पाने के लिए आप रोजाना रात को सोने से पहले इलायची को गर्म पानी के साथ खाएं। ऐसा करने से नींद भी आएगी और खर्राटे भी नहीं आएंगे। 

अन्य लाभ:

 छोटी इलायची महज मीठे और नमकीन पकवानों का स्वाद और उनकी खुशबू ही नहीं बढ़ाती बल्कि ये आपकी हेल्थ के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

खराश दूर करने में ...

खांसी का इलाज ...

छाले दूर करने में ...

एसिडिटी ...

मुहं की दुर्गंध ...

मुंह का इंफेक्शन होगा दूर ...

हिचकी होगी दूर

सुबह खाली पेट इलायची खाने के क्या फायदे?

खाली पेट इलायची खाने से मिलते हैं ये 5 फायदे-

पेट के लिए फायदेमंद ...

ब्लड प्रेशर रहता है कंट्रोल ...

भूख बढ़ाने में मददगार ...

ब्लड सर्कुलेशन रहता है सही ...

सर्दी-जुकाम में फायदेमंद ...

पूजा से सम्बंधित आवश्यक नियम

सुखी और समृद्धिशाली जीवन के लिए देवी-देवताओं के पूजन की परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है। आज भी बड़ी संख्या में लोग इस परंपरा को निभाते हैं। पूजन से हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, लेकिन पूजा करते समय कुछ खास नियमों का पालन भी किया जाना चाहिए। 


अन्यथा पूजन का शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाता है। यहां 30  ऐसे नियम बताए जा रहे हैं जो सामान्य पूजन में भी ध्यान रखना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखने पर बहुत ही जल्द शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।


ये नियम इस प्रकार हैं…

1👉 सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।                                                         

2👉 शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।

3👉 मां दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास) नहीं चढ़ानी चाहिए। यह गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित की जाती है।

4👉 सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।

5👉 तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तों को तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं।

6👉 शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए। सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त में पूजन और आरती होनी चाहिए। इसके बाद प्रात: 9 से 10 बजे तक दूसरी बार का पूजन। दोपहर में तीसरी बार पूजन करना चाहिए। 

इस पूजन के बाद भगवान को शयन करवाना चाहिए। शाम के समय चार-पांच बजे पुन: पूजन और आरती। रात को 8-9 बजे शयन आरती करनी चाहिए। जिन घरों में नियमित रूप से पांच * पूजन किया जाता है, वहां सभी देवी-देवताओं का वास होता है और ऐसे घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।

7 प्लास्टिक की बोतल में या किसी अपवित्र धातु के बर्तन में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और लोहे से बने बर्तन। गंगाजल तांबे के बर्तन में रखना शुभ रहता है।

8👉 स्त्रियों को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए। यह इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती हैं।

9👉 मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए।

10👉 केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए।

11👉 किसी भी पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए। दक्षिणा अर्पित करते समय अपने दोषों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी छोड़ने पर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी।

12👉 दूर्वा (एक प्रकार की लंबी गांठ वाली घास) रविवार को नहीं तोडऩी चाहिए।

13👉 मां लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल अर्पित किया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुन:  चढ़ा सकते हैं।

14👉 शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक बासी नहीं माने जाते हैं। अत: इन्हें जल छिड़क कर पुन: शिवलिंग पर अर्पित किया जा सकता है।

15👉 तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है। इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन: भगवान को अर्पित किया जा सकता है।

16👉 आमतौर पर फूलों को हाथों में रखकर हाथों से भगवान को अर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढ़ाने के लिए फूलों को किसी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और इसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को अर्पित करना चाहिए।

17👉 तांबे के बर्तन में चंदन, घिसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।

18👉 हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगी होते हैं।

19👉  रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए।

20👉 पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखकर करनी चाहिए। यदि संभव हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में पूजा अवश्य करें।

21👉 पूजा करते समय आसन के लिए ध्यान रखें कि बैठने का आसन ऊनी होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।

22👉 घर के मंदिर में सुबह एवं शाम को दीपक अवश्य जलाएं। एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए।

23👉 पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद उसी स्थान पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएं अवश्य करनी चाहिए।

२४.👉 रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए।

25👉 भगवान की आरती करते समय ध्यान रखें ये बातें- भगवान के चरणों की चार बार आरती करें, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। इस प्रकार भगवान के समस्त अंगों की कम से कम सात बार आरती करनी चाहिए।

26👉 पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी,सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।

27👉 गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो,शालिग्राम दो,सूर्य प्रतिमा दो,गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें।

28👉 अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार,काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें। शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है। 

जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है।

29👉 मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता –पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें, उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें।

30👉  विष्णु की चार, गणेश की तीन,सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं।