Bay Leaf Benefits

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The bay leaf is an aromatic leaf commonly used in cooking. It can be used whole, either dried or fresh, in which case it is removed from the dish before consumption, or less commonly used in ground form

 bay leaf, also called laurel leaf, leaf of the sweet bay tree (Laurus nobilis), an evergreen of the family Lauraceae, indigenous to countries bordering the Mediterranean. A popular spice used in pickling and marinating and to flavour stews, stuffings, and fish, bay leaves are delicately fragrant but have a bitter taste. They contain approximately 2 percent essential oil, the principal component of which is cineole. The smooth and lustrous dried bay leaves are usually used whole and then removed from the dish after cooking; they are sometimes marketed in powdered form. Bay has been cultivated from ancient times; its leaves constituted the wreaths of laurel that crowned victorious athletes in ancient Greece

USES OF BAY LEAF:


Bay leaf is a leaf that is used in cooking mostly for its aromatic purpose. Bay leaves can be used fresh or dried for their distinctive taste and flavor. There are different types of bay leaves found and all of them are used in different types of cuisines.

It adds minimal calories to your food while boosting the amount of fiber, vitamins, minerals, and antioxidants.

Some notable health benefits of bay leaf include:

Immune system health. Bay leaf is a good source of vitamin A, vitamin B6, and vitamin C. These vitamins are all known to support a healthy immune system.

Bay leaf tea can help ease bouts of upset stomach. The tea is also very aromatic, which can help relieve sinus pressure or stuffy nose.

Reduces type 2 diabetes risk factors. A pair of small studies suggested that taking ground bay leaf capsules or drinking tea brewed from Turkish bay leaf may lower your blood sugar levels. However, one of the studies was small and the other tested bay leaves on healthy volunteers, not people with diabetes. 

Bay leaf is a good source of vitamin A, vitamin C, vitamin B6, calcium, iron, and manganese.

1. Bay leaves can be used either Fresh or dried. They are used in cooking due to their distinctive flavour and cinnamon like fragrance that they impart to the food.

2. In Indian cuisine especially, bay leaves are used to flavor rice dishes like biryanis and pulaos. Here they can either be added to the masala paste with the rice or added to the raw rice to imbibe the flavor while cooking.  

3. Bay leaves form one of the main ingredients for the Indian Spice Powder, Garam Masala, that is mainly used in a lot of Punjabi cooking. 

4. In Indian cuisine, the leaves are also often used whole while tempering for vegetable dishes like subzis or even dals and removed before serving. Some dishes that use bay leaf are Paneer Makhani and Gujarati Dal. 

5. They can also be used to flavor the filling of certain snacks like kachori as they impart a strong flavor to it. 

6. The leaves are often used to flavour soups like tomato soup, or stews that are mostly Mediterranean. 

7. The leaves also flavour classic French dishes such as bouillabaisse and bouillon.

मड़ुआ(रागी)आटे के यह हैं अद्भुत लाभ

 


मडुआ तकरीबन 4000 साल पहले भारत आया और अपने लाजवाब मेडिसिनल वैल्यू के कारण पूरे भारत में उत्पादित किया जाने लगा ! बीते कुछ वर्षों में जबसे अनाज के नाम पर सिर्फ चावल और गेहूं का प्रचलन बढ़ा तब बाजार ने इसे अनदेखा करना शुरू किया । मडुआ के किसान  हतोत्साहित होने लगे और धीरे-धीरे लोग ईसको भूल गए। अब यह विरले पर्व त्योहारों में जैसे जिउतिया के मौके पर  दिखता है। हालांकि  दुनिया आज भी इसके महत्व से अवगत है।

 वियतनाम मे तो इसे बच्चे के जन्म के समय औरतो को दवा के रूप मे दिया जाता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए यह रामबाण है 


ईसे अंग्रेजी में फिंगर मिलेट कहा जाता है और इसका वानस्पतिक नाम इलुसिन कोराकाना है। मड़ुआ की विशेषता यह है कि यह समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई पर भी उगाया जा सकता है और इसमें आयरन एवं अन्य पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में निहित हैं। इसमें सूखे को झेलने की अपार क्षमता है और इसे लंबे समय (करीब 10 साल) तक भंडारित किया जा सकता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि मड़ुआ में कीड़े नहीं लगते। इसलिए सूखा प्रवण क्षेत्रों के लिए मड़ुआ जीवन-रक्षक की भूमिका निभा सकता है। 


मड़ुआ की उत्पत्ति पूर्वी अफ्रीका (इथियोपिया और युगांडा के पर्वतीय क्षेत्र) में हुई थी जो ईसा पूर्व 2000 के दौरान भारत लाया गया। कनाडा स्थित नेशनल रिसर्च काउन्सिल की 1996 की रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीका के प्रारंभिक कृषि से संबंधित पुरातात्विक रिकार्ड्स में मड़ुआ को 5000 वर्ष पहले इथियोपिया में मौजूद होने का प्रमाण मिलता है। यह अफ्रीका के कई हिस्सों में प्रमुख खाद्य अनाज है और पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में लौह युग के प्रारंभ (करीब 1300 ईसा पूर्व) से उगाया जा रहा है।  इथियोपिया में मड़ुआ से शराब भी बनाई जाती है जिसे अराका कहा जाता है।



नेशनल रिसर्च काउन्सिल की 1996 की रिपोर्ट के अनुसार, मड़ुआ की घास मवेशियों के चारे के लिए भी उपयुक्त होता है क्योंकि इसमें करीब 61% सुपाच्य पोषक तत्व पाए जाते हैं। वर्ष 2000 में प्रकाशित पुस्तक पीपुल्स प्लांट्स : ए गाइड टू यूजफुल प्लांट्स ऑफ सदर्न अफ्रीका के लेखक बेन-इरिक वान विक और नाइजल जेरिक के अनुसार, मड़ुआ का इस्तेमाल कुष्ठ और यकृत संबंधी रोगों के उपचार के लिए पारंपरिक औषधि के तौर किया जाता है।


मड़ुआ में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, आयरन और फाइबर पाया जाता है इसलिए यह अन्य अनाजों की तुलना में अधिक ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम है। मड़ुआ के यही गुण इसे नवजात शिशुओं और बुजुर्गों के लिए उपयुक्त खाद्य पदार्थ बनाते हैं।


मड़ुआ से बने खाद्य पदार्थ नवजात शिशुओं और बुजुर्गों के लिए उपयुक्त माना गया है


तमिलनाडु में मड़ुआ को देवी अम्मन (मां काली का एक स्वरूप) का एक पवित्र भोजन माना जाता है। देवी अम्मन से जुड़े हर पर्व-त्योहार में महिलाएं मंदिरों में मड़ुआ का दलिया, जिसे कूझ कहा जाता है, बनाती हैं और गरीबों और जरूरतमंदों में बांटती हैं। कूझ कृषक समुदाय का मुख्य भोजन है जिसे कच्चे प्याज और हरी मिर्च के साथ खाया जाता है। 


उत्तर भारत में महिलाएं अपनी संतानों की लंबी उम्र की कामना को लेकर जितिया नामक व्रत रखती हैं। तीन दिवसीय इस व्रत के आखिरी दिन, जिसे पारण कहा जाता है, मड़ुआ के आटे की रोटी खाकर व्रत तोड़ने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि दो दिनों के व्रत के बाद मड़ुआ की रोटी शरीर में ऊर्जा को जल्दी से लौटा देती है।


नेपाल में मडुआ के आटे की मोटी रोटी बनाई जाती है। मड़ुआ का इस्तेमाल बीयर, जिसे नेपाली भाषा में जांड कहते हैं और शराब जिसे रक्शी के नाम से जाना जाता है, बनाई जाती है। इसका इस्तेमाल उच्च जाति के लोग हिन्दुओं के त्योहारों के दौरान करते हैं।


श्रीलंका में मड़ुआ को कुरक्कन के नाम से जाना जाता है। वहां नारियल के साथ इसकी मोटी रोटी बनाई जाती है और इसे काफी मसालेदार मांस के साथ खाया जाता है। वहां मड़ुआ का सूप भी बनाया जाता है, जिसे करक्कन केंदा के नाम से जाना जाता है। मड़ुआ से बने मीठे खाद्य पदार्थ को हलापे कहा जाता है। 


वियतनाम में मड़ुआ का इस्तेमाल औषधि के तौर पर महिलाओं के प्रसव के दौरान किया जाता है। कई जगहों पर मड़ुआ का इस्तेमाल शराब बनाने के लिए भी किया जाता है। ये खासकर हमोंग अल्पसंख्यक समुदाय का प्रमुख पेय है।

     

औषधीय गुण


मड़ुआ प्रोटीन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत है और यह न सिर्फ मानव शरीर के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्वों की पूर्ति कर सकता है बल्कि कई प्रकार के रोगों से बचाव में भी सहायक है। वर्ष 2005 में अमेरिकन डायबिटीज एसोशिएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार मड़ुआ को अपने दैनिक आहार में शामिल करने वाली आबादी में मधुमेह रोग होने की आशंका बहुत कम होती है। मड़ुआ में चावल और गेहूं के मुकाबले अधिक फाइबर पाया जाता है और यह ग्लूटन मुक्त भी होता है,जिसके कारण यह आंतों से संबंधित रोगों से बचाता है। 


न्यूट्रिशन रिसर्च नामक जर्नल में वर्ष 2010 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, मड़ुआ का सेवन हृदय संबंधी रोगों से बचाव में कारगर है क्योंकि यह खून में प्लाज्मा ट्रायग्लायसराइड्स को कम करता है। वर्ष 1981 में वान रेसबर्ग द्वारा किए गए शोध के अनुसार, मड़ुआ खाने वाली आबादी में खाने की नली के कैंसर होने की संभावना कम हो जाती है।

तेजपत्ता कितना है लाभकारी जान जाईये आप

 


भोजन करते समय अक्सर हमने तेजपत्ते को थाली से बाहर कर दिया होगा....पर जब आप इसके औषधीय मूल्य को जानेगे तो बड़े चाव दे इसका सेवन करेंगे...।

तेजपत्ता को तेजपत्र तेजपान तमालका,तमालपत्र,तेजपात , इन्डियन केसिया आदि आदि नामो से जाना जाता है.।

तेजपत्ता की खेती हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड , जम्मू- कश्मीर , सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश में की जाती है ...... ये हमेशा हरा रहने वाले  #तमाल_वृक्ष के पत्ते हैं ,जो कई सालों तक लगातार उपज देता रहता है ..इस पेड़ को यदि एक बार लगाया गया तो यह 50 से 100 सालों तक उपज देता रहता है ..... #रोपण करने के 6 साल बाद जब इसका पेड़ पूरी तरह से विकसित हो जाता है तो इसकी पत्तियों को इक्कठा कर लिया जाता है ..पत्तियों को इक्कठा करने के बाद इन्हें छाया में सुखाया जाता है ...तब ये पत्तियां उपयोग करने के लिए तैयार हो जाती है ......फसल की कटाई करने का बाद .. इसकी पत्तियों को छाया में सुखाया जाता है ....।

तेज पत्ते का #तेल निकालने के लिए आसवन यंत्र का प्रयोग किया जाता है ... इसकी पत्तियों से हमे 0. 6 % खुशबूदार तेल की प्राप्ति होती है .....इसका तेल भी एक बहुकिमती ओषधि है....।


औषधीय_गुण

तेजपत्ता मधुमेह, अल्ज़ाइमर्स, बांझपन, #गर्भस्त्राव, स्तनवर्धक, खांसी जुकाम , जोड़ो का दर्द, रक्तपित्त, रक्तस्त्राव, दाँतो की सफाई, सर्दी जैसे अनेक रोगो में उपयोगी है.....  तेजपत्ता में दर्दनाशक, एंटी ऑक्सीडेंट गुण हैं...........आयुर्वेद में अनेक गंभीर रोगो में इसके उपयोग किये जाते हैं..... चाय-पत्ती की जगह तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से #सर्दी-जुकाम,छींकें आना ,नाक बहना,जलन ,सिरदर्द आदि में शीघ्र लाभ मिलता है .तेजपात के पत्तों का बारीक चूर्ण सुबह-शाम दांतों पर मलने से #दांतों पर चमक आ जाती है ...... तेजपात के पत्रों को नियमित रूप से चूंसते रहने से #हकलाहट में लाभ होता है .

एक चम्मच तेजपात चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से #खांसी में आराम मिलता है

 *तेजपात के पत्तों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से पेट का फूलना व अतिसार आदि में लाभ होता है . .....कपड़ों के बीच में तेजपात के पत्ते रख दीजिए ,ऊनी,सूती,रेशमी कपडे कीड़ों से बचे रहेंगे...... #अनाजों के बीच में ४-५ पत्ते डाल दीजिए तो अनाज में भी कीड़े नहीं लगेंगे...... उनमें एक दिव्य सुगंध जरूर बस जायेगी।


*अनेक लोगों के मोजों से #दुर्गन्ध आती है ,वे लोग तेजपात का चूर्ण पैर के तलुवों में मल कर मोज़े पहना करें।..... पर इसका मतलब ये नहीं कि आप महीनों तक मोज़े धुलें ही न

*.तेजपात का अपने भोजन में लगातार प्रयोग कीजिए ,आपका ह्रदय मजबूत बना रहेगा ,कभी #हृदय रोग नहीं होंगे....इसके पत्ते को जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है....इसका धुँआ #मिर्गी रोगी के लिए काफी लाभदायक होता है..

तेज पत्ता की तासीर तीक्ष्ण और गर्म होती है। इसे ज्यादातर मशाले के रूप में हर जगह उपयोग किया जाता है लेकिन तेज पत्ता के उपयोग से कई तरह के रोगों का घरेलू इलाज भी किया जाता है क्योंकि इसमें चमत्कारिक औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसे अंग्रेजी में Bay leaf कहा जाता है

तेज पत्ता की चाय से आपका मेटाबॉलिज्म बूस्ट होता है.

इससे शरीर में जो भी एक्सट्रा फैट है वो बर्न हो जाता है.

इस चाय में प्रोटीन और फाइबर भी भरपूर होता है.

चाय में पड़ी दालचीनी से शरीर को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है.

इस चाय को पीने से स्ट्रेस लेवल भी कम हो जाता है और वजन घटाने में भी मदद करती है.

मखाने खाएं तंदरुस्त हो जायें



मखाना (phool makhana) को फॉक्ट नट या कमल का बीज भी कहा जाता है। प्राचीन काल से मखाना को धार्मिक पर्वों में उपवास के समय खाया जाता है। मखाना से मिठाई, नमकीन और खीर भी बनाई जाती है। मखाना पौष्टिकता से भरपूर होता है, क्योंकि इसमें मैग्ननेशियम, पोटाशियम, फाइबर, आयरन, जिंक आदि भरपूर मात्रा में होता है। आयुर्वेद में मखाना के बहुत सारे गुणों के बारे में विस्तार से उल्लेख किया गया है।

 तालाब, झीलों और दलदली क्षेत्र के पानी में उगने वाला मखाना पोषक तत्वों से भरपूर जलीय उत्पाद है। मखाने का इस्तेमाल तरह तरह के व्यंजन बनाने में किया जाता है। खाने में स्वादिष्ट मखाना कई तरह के आवश्यक तत्वों से भरपूर होता है। इसमें एक तरह का ऐसा एंजाइम पाया जाता है जो बुढ़ापे को कम करता है। मखाना प्रोटीन, विटामिन, फाइबर, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, आयरन और जिंक जैसे खनिज और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। मखाना तालाब, झील, दलदली क्षेत्र के शांत पानी में उगये जाते। मखाना पोषक तत्वों से भरपुर एक जलीय उत्पाद है। मखाने में 9.7% आसानी से पचनेवाला प्रोटीन, 76% कार्बोहाईड्रेट, 12.8% नमी, 0.1% वसा, 0.5% खनिज लवण, 0.9% फॉस्फोरस एवं प्रति 100g 1.4 mg लौह पदार्थ मौजूद होता है। इसमें औषधीय गुण भी होता है।

लाभ :

1कमजोरी दूर करे👉   मखाना ऊर्जा का अच्छा स्रोत है। इसके सेवन से तुरंत ही ऊर्जा मिलती है। इसके नियमति सेवन शारीरिक दुर्बलता खत्म होती है।

2.पेशाब करने में परेशानी👉 1 से 3 ग्राम मखाने को गर्म पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी) दूर हो जाती है।

3.मजबूत हड्डियाँ👉  कैल्शियम से लबरेज मखाना हड्डियों को मजबूत बनाता है। इसके नियमित सेवन से हड्डियों और जोड़ो के दर्द से मुक्ति मिलती है।

4.स्वस्थ त्वचा👉  मखाना में एंटीओक्सिडेंट और एंटी एजिंग तत्व पाए जाते हैं। इसे रोजाना खाने से चेहरे पर झुर्रियों नहीं आती तथा चेहरा लम्बे समय तक जवां और निखरा-निखरा रहता है।

5.शारीरिक शक्ति👉  मखाना के 3 से 6 ग्राम बीज तथा चीनी को एक साथ पीसकर मिश्रण तैयार करें, फिर इस मिश्रण को दूध के साथ दिन में 3 बार देने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है।

6.किडनी👉 मखाने के सेवन से शरीर से हानिकारक टॉक्सिक तत्व बाहर होते हैं जिस से किडनी में किसी भी तरह की समस्या उत्पन्न होने की संभावनाएं न के बराबर हो जाती हैं। मखाना के 3 से 6 ग्राम बीज तथा चीनी को एक साथ पीसकर मिश्रण तैयार करें, फिर इस मिश्रण को दूध के साथ दिन में 3 बार देने से पथरी के रोग में लाभ मिलता है।


7.नाभि के रोग और सूजन👉  ताल मखाना की जड़ का काढ़ा 40 ग्राम या बीज 2 से 4 ग्राम को दूध के साथ सुबह-शाम लेने से नाभि के रोग और सूजन दूर होती है।

8.शारीरिक दोष👉  मखाने को खीर के साथ चबायें या केवल मखाने को चबाकर खायें। इससे सम्भोग की कमी से हुई शारीरिक कमज़ोरी दूर हो जाती है।

9.मधुमेह👉 मधुमेह रोगियों के आहार में मखाना शामिल करना उनके लिए बहुत फायदेमंद होता है। मखाने के सेवन शरीर में इन्सुलिन का स्तर नियंत्रित रहता है।

10.दिल के लिए भी लाभदायक👉 मखाने के सेवन से शरीर का कोलेस्ट्रोल लेवल कम होता है। इसके नियमित सेवन से हृदय सम्बन्धी रोगों के होने का भी ख़तरा टलता है। ‘

11.मजबूत मांसपेशियां👉 मखाना प्रोटीन से भरपूर होता है। कसरत करने वालो या जिम जाने वालो को मखाना का सेवन तो अवश्य ही करना चाहिए। इसके सेवन से मसल्स का निर्माण होता है और मांसपेशियां मजबूत बनती है।

12.फीलपांव या गजचर्म👉  घी, शहद, मक्खन, पीपल, अदरक, मिर्च और सेंधानमक को मिलाकर पीने से फीलपांव का रोग दूर हो जाता है।

13.प्रसव के बाद महिलाओं को काफी दर्द होता है। यह असहनीय भी होता है। मखाना के गुण ऐसे दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है। मखाना के पत्तों को 10-15 मिली पानी में डालकर काढ़ा बना लें। इसे पीने से प्रसव के बाद होने वाले दर्द से राहत मिलती है।

14.गठिया आज एक आम बीमारी बन गई है। गठिया के कारण शरीर के जोड़ों, जैसे- पैर और हाथ आदि अंगों में बहुत दर्द होता है। मखाना के गुण से आप लाभ ले सकते हैं। इसके लिए मखाना पेड़ के पत्तों को पीसकर दर्द वाले जगह पर लगाएं। इससे आराम (makhane ke fayde) मिलता है।

15.मखाना दिल के लिए फायदेमंद होता है। इसके उचित मात्रा में सेवन से यह रक्त की आपूर्ति में सुधार करता है एवं हृदयाघात जैसी गंभीर समस्याओं के रोक थाम में भी सहयोगी होता है ।   

16.मखाने का उचित मात्रा में सेवन गुर्दो को भी स्वस्थ रखने में सहयोग देता है। यह गुर्दों की कार्य क्षमता को बढ़ा कर उनकी क्रिया को सामान्य बनाये रखने में मदद करता है।  

17.खानों का सेवन झुर्रियों से छुटकारा पाने में भी सहयोग देता है क्योंकि इसमें स्निग्ध गुण होता है। जो त्वचा में तैलीय तत्त्व बनाये रखने में सहयोग देता है, जो झुर्रियों को रोकने में मदद करता है ।  


मखाने लघु होने के कारण अच्छे पाचक होते हैं। साथ ही ये कार्बोहाइड्रेट्स, फाइबर्स और प्रोटीन्स से भरपूर होते हैं।