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गर्भस्राव और गर्भपात...

गर्भावस्था में मैथुन करने से,राह चलने से,हाथी घोड़े पर कूदने-फांदने से,म्हणत करने से,अत्यंत दबाव पड़ने से,मॉल-मूत्र आदि के वेगों को रोकने से या गर्भ गिराने वाले तेज़ और गर्म पदार्थ खाने से,विषम स्थानों पर सोने या बैठने से,डरने से,और गर्म,कडवे,तथा रूखे पदार्थ खाने-पिने आदि कारणों से 'गर्भपात'होता है|
गर्भ अकाल में ही क्यूँ गिरता है|
जिस परकार किसी वृक्ष में लगा हुआ फल चोट आदि लगने से अकाल या असमय में ही गिर पड़ता है,उसी प्रकार गर्भ भी चोट आदि लगने से और विषम आसन पर बैठने आदि कारणों से असमय में ही गिर पड़ता है|

गर्भपात या गर्भस्राव की चिकित्सा
  • अशोक की छालका क्वाथ अकेले ही अथवा उसमे लोधा की छाल और कमल गट्टे की गिरी इन तीनो के चूर्ण से सिद्ध किया हुआ दूध सुबह शाम सेवन करने से भी गर्भस्राव या गर्भपात नही होने पाता|
  • यदि गर्भपात हो जाता है तो अश्वगंध और श्वेत कटोरी की जढ़ इन दोनों का १०-१० ग्राम सवर्स निकाल प्रथम मॉस से पांचवे मॉस तक प्रतिदिन प्रात:सेवन कराने से अकाल गर्भपात होने का भय नही रहता|और गर्भपात के समय इसे सेवन करने से गिरता हुआ गर्भ थम जाता है|
  • जिस स्त्री को गर्भपात का विकार हो और कई बार गर्भस्राव हो गया हो तो गर्भधारण की अवस्था में प्रथम मॉस में आठवें मॉस तक गाजर के स्वरस आधा किलो में संभाग बकरी का दूध मिलकर मन्दाग्नि पर पकायें|थोडा सा दूध रहने पर ठंडा कर २-३ बार पिलाने से लाभ होता है|
  • जब गर्भवती को रक्तस्राव होने लगे तब हरी श्वेत डूब के ५ ग्रांम स्वरस में स्वर्णमाक्षिक भस्म तथा मुक्ता शुक्ति भस्म एक एक रति मिलकर दो बार सेवन कराने से गर्भस्राव या गर्भपात नही होता|