Mini Miracles when Applied Oatmeal Mask to skin

You probably know that oatmeal's a fiber-rich superfood that does an all-star job of sopping up cholesterol and speeding it out of the body. But do you also know that its grainy little flakes perform mini miracles when applied to skin? Oatmeal whisks away dead cells, irritation, and redness, leaving a soft, moist glow behind.

While this could be news to you, oatmeal's long been a staple among skin pros -- even ancient ones. Its skin-soothing powers were known as early as 2000 BC, and to this day, the FDA cites it as effective for relieving dryness and inflammation, including insect stings, rashes, and eczema. That's why finely powdered ("colloidal") oatmeal is sifted into soothing body soaks, moisturizers, and soaps. (Pulverizing the oats into powder makes it easier to disperse their healing goodness -- and in soaks it keeps them from collecting in the bottom of the tub.)

"There are four reasons why your skin adores oatmeal," explains New York City dermatologist Amy Wechsler, MD:

1. Dryness fighting: Oats contain polysaccharides, which become gelatinous in water and leave a fine protective film on the skin, preventing dull, flaky dryness.

2. Moisturizing: Oats are full of healthy, lubricating fats.

3. Defense building: The proteins in oatmeal help maintain the skin's natural barrier function, which ensures that the world outside the skin stays out, and what's inside the skin stays in.

4. Pore cleansing: Oats are filled with natural cleansers (called saponins) that gently remove dirt and oil from the pores.

To reap all of these benefits, Wechsler suggests treating your skin to a colloidal oatmeal mask every week or two. Here's her super simple recipe -- good bet the ingredients are already in your kitchen.

The Skin Doc's Smoothing, Soothing Oatmeal Mask

2 tablespoons old-fashioned oats
2 tablespoons hot water
1/2 tablespoon honey

1. Put the oats into a clean herb or coffee grinder on the finest setting, and process into powder.

2. Pour into a small bowl and stir in hot water and honey. Let stand for 5 minutes.

3. Wash face with warm water. While skin is still damp, massage paste onto face, circling around eyes and mouth. Leave on for 10 minutes.

4. Remove with tepid water and a washcloth. Apply your favorite moisturizer to seal the deal and set the glow.

P.S.: Don't stop eating oats just because you've transformed them into a beauty treatment! They're hard to beat as a source of health-protective soluble fiber -- and eating a high-fiber diet can make your RealAge up to 6 years younger.

Here's another beauty treatment to try, and it's made with the world's sexiest superfood.

विश्व ग्लूकोमा दिवस: आंखों के नियमित परीक्षण और उपचार से बचाए दृष्टि

हर वर्ष मार्च माह में ग्लूकोमा के संबध में जागरूकता बढाने के लिए विश्व ग्लूकोमा सप्ताह मनाया जाता है। ग्लूकोमा बड़े स्तर पर नजर न आने वाली बीमारी है, लेकिन यह अपरिवर्तनीय नेत्रहीनता का एक बड़ा कारण है, जो कि अंतर नेत्र दबाव में बढ़ोत्तरी के कारण आंख के ऑप्टिक तंत्रिका में पहुंचे नुकसान के कारण होता है। बिना उपचार के ग्लूकोमा कुछ ही वर्षों में पूर्ण नेत्रहीनता का कारण बन सकता है।



परिभाषा:

ग्लूकोमा आंखों की बीमारी के समूह को दिया गया एक नाम है, जिसमें आंख के पिछले हिस्से में स्थित नेत्र तंत्रिका धीरे-धीरे नष्ट हो जाती है। ज्यादातर मामलों में आंख के अंदर बढ़ते दबाव के कारण नुकसान होता है, जिसके पीछे आंख की पुतली के अंदर तरल तत्वों के प्रवाह में रुकावट या इसके बाहर जाने के कारण होता है। कुछ अन्य रोगियों में इसकी वजह महत्वपूर्ण नेत्र तंत्रिका फाइबर में खून की कमी, तंत्रिका के ढांचे में कमी या स्वयं तंत्रिका फाइबर की स्थिति में समस्या इसका कारण होती है। ज्यादातर मामलों में यह आयु बढ़ने के साथ नजर आती है, लेकिन यह किसी भी आयु वर्ग में हो सकती है।

आंखों में दबाव बढ़ने का कारण:

ग्लूकोमा सामान्य तौर पर आंखों के अंदर दबाव बढ़ने के कारण होता है। ऐसा आंखों के अंदर द्रव्य पदार्थ के सामने की ओर संचालित न होने के कारण होता है। सामान्य तौर पर यह द्रव्य जिससे एक्युवस ह्यूमर कहा जाता है, आंखों से गंदगी के रूप में निकलता है। यदि यह चैनल बंद हो जाता है तो द्रव्य पदार्थ बढ़ने के कारण ग्लूकोमा हो जाता है। इस रूकावट के सीधे कारण का पता नहीं चला है, लेकिन डॉक्टरों का मानना है कि यह अनुवांशिक हो सकता है अर्थात यह माता-पिता से बच्चों तक पहुंचता है।

ग्लूकोमा के अन्य कारणों में आंखों में नुकीली या रसायनिक चोट, गंभीर नेत्र संक्रमण, आंखों में रक्त कोशिकाओं में रूकावट, आंखों में जलन जैसी स्थिति और अन्य स्थिति को दूर करने के लिए नेत्र शल्यचिकित्सा। ग्लूकोमा सामान्य तौर पर दोनों आंखों में होता है, लेकिन यह दोनों आंखों को विभिन्न स्तरों तक प्रभावित कर सकता है।

ग्लूकोमा के प्रकार:

क्रोनिक (प्राथमिक खुला कोण) ग्लूकोमा सबसे सामान्य होने वाला ग्लूकोमा है। हालांकि इसके अन्य प्रकार भी हो सकते हैं-

  • कम दबाव या सामान्य दबाव ग्लूकोमा- सामान्य नेत्र दबाव वाले लोगों में नेत्र कोशिका नुकसान कभी-कभार हो सकता है। इस ग्लूकोमा का उपचार खुला कोण ग्लूकोमा के समान किया जाता है।

  • तीव्र (कोण-बंद) ग्लूकोमा – तीव्र ग्लूकोमा आंखों के अंदर तेजी से दबाव बढ़ने के कारण होता है, जब आंख की पुतली तरल प्रवाह को रोकती है। तीव्र ग्लूकोमा का हमला ज्यादातर समय घातक होता है। इसमें लोगों को दर्द, उबकाई, धुंधली दृष्टि या आंखों के लाल होने का सामना करना पड़ता है। इस अवसर पर तुरंत स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करनी चाहिए। यदि उपचार में देरी हो जाए तो बहुत ही कम समय में स्थायी दृष्टि बाधित हो सकती है। सामान्य तौर पर अवरोध को हटाने और दृष्टिबाधिता से बचने के लिए लेजर सर्जरी का प्रयोग किया जाता है।

  • अनुवांशिक ग्लूकोमा – यह एक दुर्लभ किस्म का ग्लूकोमा है जो असामान्य अवरोध प्रणाली के कारण होता है। यह जन्म के समय से या बाद में विकसित हो सकता है। इस रोग से पीड़ित बच्चे रोशनी के प्रति संवेदनशील, बड़ी और धूमिल आंखें और आंखों से अधिक पानी बहने की समस्या का सामना करते हैं। इन लक्षणों पर माता-पिता ध्यान रख सकते हैं। इसके उपचार के लिए सामान्य तौर पर सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है।

  • द्वितीय ग्लूकोमा – इस प्रकार का ग्लूकोमा आंखों के अन्य विसंगतियों जैसे चोट, मोतियाबिंद और आंखों के जलने के परिणामस्वरूप विकसित हो सकता है। स्टरॉइड के प्रयोग के कारण आंखों का दबाव बढ़ सकता है, इसलिए स्टरॉइड के प्रयोग के समय नियमित तौर पर दबाव की जांच की जानी चाहिए।


ग्लूकोमा के लक्षण:

ग्लूकोमा से पीड़िता ज्यादातर लोगों में इसके शुरूआती लक्षण या दबाव बढ़ने के कारण दर्द होने का पता न चलने के कारण नियमित रूप से नेत्र चिकित्सक से आंखों का परीक्षण कराना आवश्यक है, ताकि ग्लूकोमा की पहचान की जा सके और लंबी अवधि में दृष्टिहीन होने से बचने के लिए उपचार किया जा सके। यदि आपकी आयु 40 वर्ष से अधिक है और आपका ग्लूकोमा से पीड़ित होने का पारिवारिक इतिहास है तो आपको हर एक से दो वर्ष में अपनी आंखों का पूर्ण परीक्षण नेत्र चिकित्सक से करवाना चाहिए। यदि आपको स्वास्थ्य समस्याएं जैसे डायबिटीज या ग्लूकोमा का पारिवारिक इतिहास हो या अन्य आंखों की बीमारी का खतरा हो तो आपको अपने नेत्र चिकित्सक के पास अधिक परीक्षण करवानी चाहिए।

क्रोनिक (प्राथमिक खुला-कोण) ग्लूकोमा सामान्य तौर पर सबसे अधिक प्रभावित करने वाला है। इसके कोई लक्षण नहीं हैं, जब तक कि दृष्टि बाद के चरणों में बाधित न हो जाए। इसमें नुकसान बहुत धीरे-धीरे होता है और दृष्टि धीरे-धीरे नष्ट होती है, जिसकी शुरूआत कोने की दृष्टि से होती है। इसका पता किसी भी व्यक्ति को तब तक पता नहीं चलता, जब तक कि अधिकांश कोशिकाएं नष्ट नहीं हो जाती है और दृष्टि का एक बड़ा हिस्सा बाधित हो जाता है। इस नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है। यह तेजी से बढ़ता है और सामान्य तौर पर नहीं रूकता। उपचार से हो चुके नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती, लेकिन इससे नुकसान को कम किया जा सकता है। इसलिए इस समस्या का शुरूआती पता लगाना आवश्यक है ताकि दृष्टि को कम से कम नुकसान पहुंचे बिना उपचार की शुरूआत की जा सके।

हालांकि कोई भी व्यक्ति ग्लूकोमा से पीड़ित हो सकता है, लेकिन कुछ लोगों के इससे पीड़ित होने की ज्यादा संभावना होती है। इसमें ग्लूकोमा के पारिवारिक इतिहास, डायबिटीज, माइग्रेन, लघु दृष्टिबाधिता (मायोपिया), रक्त दबाव, पूर्व या वर्तमान में स्टरॉइड आदि का प्रयोग सम्मिलित है।

उपचार कैसे करें:

हालांकि ग्लूकोमा का कोई उपचार नहीं है, लेकिन इस पर नियंत्रण किया जा सकता है और दृष्टि के नुकसान से बचाव या इससे कम किया जा सकता है। उपचार के निम्नलिखित प्रकार हैं-
  • आई ड्रॉप्स

  • लेजर (लेजर ट्रैबीक्लुप्लास्टी) – जब आई ड्रॉप्स दृष्टि के क्षेत्र में गिरती स्थिति को नहीं रोक पाती, तब इसका प्रयोग किया जाता है। ज्यादातर मामलों में लेजर के बाद भी आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल जारी रखने की आवश्यकता होती है। लेजर में अस्पताल में रूकने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

  • सर्जरी (ट्रैबीक्लुस्ट्रोमी) – जब आई ड्राप्स और लेजर नेत्र दबाव को नियंत्रित करने में असफल साबित होते हैं, तब सर्जरी का प्रयोग किया जाता है। इसमें आंखों से द्रव्य पदार्थ को निकालने के लिए नया चैनल बनाया जाता है।

सरकारी पहल

दृष्टिबाधिता पर नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीबी) की शुरूआत वर्ष 1976 में 100 प्रतिशत केन्द्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम के रूप में की गई थी, जिसका लक्ष्य वर्ष 2020 तक दृष्टिबाधिता के प्रसार को 1.4 प्रतिशत से घटाकर 0.3 प्रतिशत करना है। वर्ष 2001-02 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार दृष्टिबाधिता 1.1 प्रतिशत के स्तर पर थी और वर्ष 2006-07 के दौरान यह एक प्रतिशत के स्तर पर थी।

दृष्टिबाधिता के प्रमुख कारणों में से ग्लूकोमा की भागीदारी 5.80 प्रतिशत है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान एनपीसीबी दृष्टिबाधिता को कम करने के लिए देश भर में दृष्टिबाधिता के आकलन के आधार पर इसकी पहचान करने और नेत्रहीनता का उपचार प्राथमिक, द्वितियक या तृतियक रूप से करने की संभावना पर कार्य कर रहा है। इसके अंतर्गत विस्तृत नेत्र देखभाल सेवाओं, देश के सभी जिलों में उच्च स्तर की नेत्र देखभाल सुविधा प्रदान करने के लिए अतिरिक्त मानव संसाधन और आधारभूत ढांचे का विकास करने, नेत्र देखभाल पर सामुदायिक जागरूकता बढ़ाने और बचाव के तरीकों पर जोर देने, दृष्टिबाधिता को रोकने के लिए अनुसंधान का विस्तार करने और इसे बढ़ाने, स्वयंसेवी संगठनों और निजी प्रैक्टिस करने वाले लोगों की अधिक भागीदारी पर जोर दिया जा रहा है।

नियमित तौर पर नेत्रों का परीक्षण विशेष तौर पर 40 वर्ष की आयु के बाद और तुरंत उपचार बची हुई दृष्टि को रोक सकता है, लेकिन इससे ग्लूकोमा के कारण प्रभावित दृष्टि में सुधार नहीं किया जा सकता है।

6 मार्च, ग्लूकोमा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

*डॉ.एच.आर. केशवमूर्ति, पत्र सूचना कार्यालय, कोलकाता में निदेशक हैं।